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धरती को बंजर होने से बचाएगा 'मोदी मैजिक', संयुक्त राष्ट्र को भी उम्मीदें

हमें फॉलो करें धरती को बंजर होने से बचाएगा 'मोदी मैजिक', संयुक्त राष्ट्र को भी उम्मीदें
, रविवार, 7 जुलाई 2019 (12:36 IST)
अंकारा। धरती को बंजर होने से बचाने से संबंधित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीसीडी) को इस मुद्दे पर दुनिया का ध्यान आकृष्ट करने के लिए 'मोदी मैजिक' से काफी उम्मीदें हैं।
 
यूएनसीसीडी के सदस्य देशों की 14वीं बैठक इस साल सितंबर में दिल्ली में होने वाली है। इसके प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. बैरन जोसेफ ओर ने कहा कि (नरेन्द्र) मोदी वैश्विक नेता हैं। वे सबको साथ लाने में सक्षम हैं। सदस्य देशों की बैठक दिल्ली में होने वाली है और हमें उम्मीद है कि यहां से सम्मेलन को काफी गति मिलेगी।
 
यूरोपीय संघ और 195 देश सम्मेलन के सदस्य हैं जिनमें 169 देशों के सामने जमीन के बंजर होने, भूमि की गुणवत्ता में गिरावट और सूखे की समस्या है। आंकड़ों के अनुसार हर साल दुनिया में 24 अरब टन उपजाऊ मिट्टी खराब हो रही है और जमीन की गुणवत्ता खराब होने से विकासशील देशों को उनके सकल घरेलू उत्पाद के 8 प्रतिशत का नुकसान होता है।
 
वैश्विक स्तर पर राष्ट्राध्यक्षों के यूएनसीसीडी में ज्यादा रुचि नहीं दिखाने के बारे में पूछे जाने पर डॉ. ओर ने कहा कि हमने स्वयं से हमेशा यह सवाल किया है। हमें पता है कि अन्य सम्मेलनों की तुलना में हमारी मौजूदगी ज्यादा नहीं है और हमारे पास उतना पैसा भी नहीं है। अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन के गठन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इसे देखते हुए यूएनसीसीडी को उनसे बंजर होती जमीनों के मसले पर भी ऐसा ही कुछ करने की उम्मीद है।
 
डॉ. ओर ने एक साक्षात्कार में कहा कि मोदी के व्यक्तित्व के अलावा इस मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए यूएनसीसीडी अपने रुख में भी बदलाव करेगा। कार्बन को वायुमंडल से हटाकर मिट्टी में इसकी मात्रा बढ़ाने के लिए शुरुआती निवेश की जरूरत होती है और यहीं पर मुख्य चुनौती है। अब हम सम्मेलन के सीमित फोकस को रेखांकित करने की बजाय बहुआयामी लाभों को रेखांकित कर रहे हैं ताकि राजनीतिक इच्छाशक्ति को अपने पक्ष में कर सकें। ऐसा करने से राजनीतिक नेतृत्व को अपने पक्ष में करना आसान होगा।
 
यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहीम थाईआव भी उम्मीद जता चुके हैं कि नई दिल्ली में होने वाली सदस्य देशों की बैठक सम्मेलन के लिए परिवर्तनकारी साबित होगी।
 
डॉ. ओर ने कहा कि वैश्विक आकलनों से जो साक्ष्य मिल रहे हैं, उनके अनुसार धरती की 25 प्रतिशत जमीन की गुणवत्ता खराब हो चुकी है। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि 75 प्रतिशत जमीन अब अपनी प्राकृतिक अवस्था में नहीं है। जरूरी नहीं कि उनकी गुणवत्ता भी खराब हो गई हो। हमने कृषि तथा अन्य कार्यों के लिए उनका इस्तेमाल कर लिया है और अब वे प्राकृतिक अवस्था में नहीं हैं इसलिए हम ऐसी स्थिति की तरफ बढ़ रहे हैं, जो बिलकुल टिकाऊ नहीं है।
 
यूएनसीसीडी के वैज्ञानिक ने कहा कि भारत उन देशों में से है, जो जमीन की गुणवत्ता खराब होने के मुद्दे को काफी गंभीरता से ले रहे हैं। इस समस्या के बारे में भारत का आकलन काफी विस्तृत है। इससे पता चलता है कि देश में 29 प्रतिशत जमीन की गुणवत्ता खराब हो चुकी है।
 
ओर ने कहा कि जमीन की गुणवत्ता दुबारा हासिल करने के लिए भारत में कई प्रगतिशील कार्यक्रम हैं, चाहे वे जंगल बढ़ाने के कार्यक्रम हों या कोई अन्य कार्यक्रम। मेरी समझ से जमीन के बंजर होने के क्रम में स्थिरता के बारे में उसकी अवधारणा काफी अच्छी है।
 
उन्होंने कहा कि भूमि को खराब होने से बचाने की दिशा में उसने काफी अच्छा काम किया है। वह एक तरफ जमीन की गुणवत्ता बचाने पर ध्यान दे रहा है और दूसरी तरफ पहले जो जमीन खराब हो चुकी है, उसे वापस उपजाऊ बनाने पर काम कर रहा है ताकि देश की खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सके।
 
भूमि के बंजर होने के मामले में स्थिरता हासिल करने के प्रयास के लिए उन्होंने चीन की सराहना की। यहां स्थिरता का मतलब है कि जितनी जमीन की गुणवत्ता खराब होती है, उतनी ही खराब हो चुकी जमीन को वापस उपजाऊ बनाया जाता है। इसमें इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि दोनों जमीन एक ही भौगोलिक क्षेत्र से हैं।
 
उन्होंने कहा कि चीन न सिर्फ जमीन को दुबारा उपजाऊ बनाने पर काम कर रहा है बल्कि इस बात पर भी ध्यान दे रहा है कि उस जमीन पर कौन सी फसलें हो सकती हैं और उनसे किसानों को कितनी आमदनी हो सकती है? (वार्ता)

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