मंगल पर जीवन के संकेत, जानिए क्या कहती है नासा की सबसे बड़ी खोज

राम यादव
अमेरिकी रोवर 'पर्सिविअरैंस' ने मंगल ग्रह पर अपनी खोजबीन के दौरान वहां अतीत में सूक्ष्म जीवन रहा होने का अब तक का सबसे स्पष्ट संकेत पाया है। कैलिफोर्निया के पसाडेना में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मिशन संचालकों ने यह जानकारी दी है। एक आधिकारिक बयान में उन्होंने इसे एक शानदार खोज बताया है।
 
'पर्सिविअरैंस' ने मंगल ग्रह पर अतीत में किसी प्रकार का जीवन रहे होने का संकेत देने वाले निशान 'जेज़ेरो' नाम के उस क्रेटर (बड़े-से गड्ढे) में पाए हैं, जहां उसे 18 फ़रवरी 2021 को उतारा गया था। यह क्रेटर साढ़े तीन अरब साल पहले एक ऐसी झील रह चुका है, जिसके एक सिरे पर से किसी नदी के डेल्टा का पानी उसमें बहा करता था। पानी अब वहां बिल्कुल नहीं है। रह गया है 48 किलोमीटर व्यास वाला एक विशाल क्रेटर।
 
चट्टानों में कार्बनिक पदार्थ के संकेत मिले : क्रेटर के जिस सिरे पर पहले कभी नदी का डेल्टा हुआ करता था, वहां की ज़मीन का रंग बाक़ी जगहों से अब भी कुछ अलग है। रोवर ने वहां की चट्टानों में बर्मे से छेद कर जो सामग्री निकाली और उसकी जांच-परख की, उससे इन चट्टानों में कार्बनिक पदार्थ होने के संकेत मिले। कार्बनिक पदार्थ होने का यही अर्थ है कि मंगल पर कभी न कभी और भले ही किसी बहुत सूक्ष्म रूप में सही, जीवन था।
 
पसाडेना में कैलिफ़ोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में 'पर्सिविअरैंस' परियोजना के एक वैज्ञानिक केन फ़ार्ले के अनुसार, जेज़ेरो क्रेटर के नदी-डेल्टा में मिली चट्टानों में कार्बनिक पदार्थों की इतनी उच्च मात्रा हमने इस मिशन में अब तक नहीं देखी थी। जेज़ेरो क्रेटर में नासा के शोधकर्ताओं को शुरू से ही विशेष दिलचस्पी रही है। उनका मानना था कि क्रेटर की तलछटी ही मंगल ग्रह के इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान कर सकती है।

ज्वालामुखी विस्फोट के संकेत भी : रोवर ने क्रेटर की सतह पर ऐसी पथराई हुई चीज़ें भी पाई हैं, जो दूर अतीत में पास के ही किसी ज्वालामुखी विस्फोट की ओर संकेत करती हैं। उनमें भी हाइड्रोजन और कार्बन के यौगिकों के रूप में बड़ी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ हैं। ये दोनों तत्व जीवन की ओर संकेत करती लगभग सभी कार्बनिक क्रियाओं में पाए जाते हैं। 
 
नासा के वैज्ञानिकों ने यह भी कहा कि इन खोजों का भले ही यह मतलब नहीं है कि मंगल ग्रह पर निश्चित रूप से जीवन था। लेकिन वहां पाए गए नमूनों में और उन नमूनों में भारी समानताएं हैं, जिन्हें हम पृथ्वी पर जानते हैं। मंगल ग्रह वाले नमूने तलछटी से बनी चट्टानों में मिले हैं। पृथ्वी पर इसी प्रकार की चट्टानो की परतें जीवाश्मों को संरक्षित करने के लिए जानी जाती हैं। यह एक और संकेत है कि मंगल ग्रह पर भी कभी जीवन रहा हो सकता है।
 
तब भी, कोई अचूक दावा मंगल ग्रह वाले नमूनों की पृथ्वी पर प्रयोगशाला-जांचों के बाद ही किया जा सकता है। ऐसा तभी हो सकता है, रोवर 'पर्सिविअरैंस' द्वारा एकत्रित चट्टानी नमूने, योजनानुसार 2030 में पृथ्वी पर लाए जा सकेंगे। इस के लिए नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी एसा (ESA) को मिल कर अभी एक ऐसा यान बनाना है, जो 'पर्सिविअरैंस' द्वारा कई कैप्सूलों में रखे गए नमूनों को मंगल की ज़मीन पर से उठा कर पृथ्वी पर लाए।
पृथ्वी को क्षुद्रग्रहों से बचाने का प्रयोग : नासा के वैज्ञानिक ठीक इस समय 'डार्ट' नाम के 33 करोड़ डॉलर मंहगे एक मिशन के अधीन 'डिमोर्फोस' नाम के एक क्षुद्र ग्रह का रास्ता बदलने में व्यस्त हैं। यह एक प्रयोग है कि भविष्य में पृथ्वी की दिशा में आ रहे क्षुद्र ग्रहों का रास्ता कैसे बदला जाए कि वे पृथ्वी के निकट नहीं आ सकें। शोधकर्ताओं ने पृथ्वी के पास लगभग 27,000 क्षुद्रग्रहों की पहचान की है, जिनमें से लगभग 10,000 का व्यास 140 मीटर से अधिक है।
 
लगभग 160 मीटर व्यास वाला डिमोर्फोस एक बड़े क्षुद्रग्रह 'डिडिमोस' की हर 12 घंटे में एक परिक्रमा करने वाला उसका एक प्रकार का चांद है। अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया से 'फाल्कन-9' रॉकेट की मदद से, पिछले नवंबर के शुरू में एक अंतरिक्षयान डिमोर्फोस की दिशा में रवाना हो चुका है।

यह यान सोमवार, 26 सितंबर को, डिमोर्फोस के पास पहुंचकर उससे इस तरह टकराएगा, कि वह 'डिडिमोस' के इतना निकट चला जाए कि 'डिडिमोस' की हर परिक्रमा पूरी करने में उसे लगने वाला समय, यथासंभव 73 सेकंड से लेकर 10 मिनट तक कम हो जाए। यह प्रयोग यदि सफल रहा है, तो इसका अर्थ यही होगा कि भविष्य में पृथ्वी के लिए ख़तरा बन सकने वाले आकाशीय पिंडों का रास्ता अंतरिक्ष में उन्हें टक्कर दे कर बदला जा सकता है। 
 

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