वॉशिंगटन। अमेरिका के एक शीर्ष सीनेटर ने कहा कि देश में कानूनी स्थाई निवास के लिए जारी किए जाने वाले ग्रीन कार्ड की हर देश के लिए तय सीमा का दंड भारत के आव्रजकों को भुगतना पड़ता है और भारतीयों के लिए ग्रीन कार्ड का इंतजार 200 वर्षों तक का हो जाता है। उन्होंने इस भेदभाव को योग्यता आधारित आव्रजन प्रणाली के सिद्धांतों से असंगत बताया।
ग्रीन कार्ड अमेरिका आव्रजकों को दिया जाने वाला एक दस्तावेज है जिससे उन्हें देश में स्थाई रूप से निवास करने का अधिकार मिल जाता है। भारतीय आईटी पेशेवरों को मौजूदा आव्रजन प्रणाली से सबसे अधिक नुकसान होता है जिसके तहत हर देश को ग्रीन कार्ड जारी करने का सात प्रतिशत कोटा आवंटित किया गया है। ज्यादातर भारतीय आईटी पेशेवर उच्च कौशल वाले होते हैं और वे मुख्यत: एच-1बी कार्य वीजा पर अमेरिका आते हैं।
रिपब्लिकन सीनेटर माइक ली ने बुधवार को कहा कि हो सकता है कि इसके लिए कई दशकों पहले कुछ वैध कारण हो, लेकिन अब यह ऐसी व्यवस्था बन गई है जिससे एक देश के ग्रीन कार्ड आवेदकों से काफी भेदभाव होता है।
अभी अमेरिका में कानूनी रूप से निवास के लिए करीब दस लाख विदेशी नागरिकों और उनके परिवार के सदस्यों के आवेदन लंबित हैं। इनमें भारतीयों की सबसे अधिक संख्या है।(भाषा)