अंतरिक्ष में अगर इंसान की मौत हो जाए तो उसके शव के साथ क्या होगा?

Webdunia
शनिवार, 16 अक्टूबर 2021 (18:59 IST)
जल्द ही वह समय आ सकता है जब हम छुट्टियां मनाने के लिए या रहने के लिए अन्य ग्रहों की यात्रा करेंगे। वाणिज्यिक अंतरिक्ष कंपनी ब्लू ऑरिजीन ने भुगतान करने वाले ग्राहकों को उप कक्षीय उड़ानों से भेजना शुरू कर दिया है और उद्योगपति एलन मस्क को अपनी कंपनी स्पेस एक्स के साथ मंगल ग्रह पर एक बेस शुरू करने की उम्मीद है।

अब सवाल यह उठता है कि अंतरिक्ष में रहने में कैसा लगेगा या यदि किसी की मौत हो जाएगी तो वहां शव का क्या होगा। पृथ्वी पर किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसका शव सड़ने-गलने के कई चरणों से होकर गुजरता है। इस बारे में 1247 में सोंग सी की ‘द वाशिंग अवे ऑफ रॉंग्स’, प्रथम फोरेंसिक विज्ञान पुस्तिका में वर्णन किया गया था।
 
सबसे पहले रक्त का प्रवाह रुक जाता है (लिवोर मोर्टिस) और गुरूत्व के चलते यह जमा होने लगता है। इसके बाद शव ठंडा हो जाता है और मांसपेशिया अकड़ जाती है, जिस प्रक्रिया को रिगोर मोर्टिस कहते हैं। इसके बाद, रासायनिक प्रतिक्रिया को तेज करने वाला प्रोटीन कोशिका की दीवारों को तोड़ देता है और उसकी सामग्री को बाहर निकाल देता है।
 
इसके साथ-साथ, जीवाणु पूरे शरीर में फैल जाता है। वे नरम कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं और उनसे जो गैस निकलता है उससे शव फूल जाता है। इसके बाद दुर्गंध आने लगती है और नरम उत्तक टूट जाते हैं। शव के सड़ने-गलने की यह प्रक्रिया अंदरूनी कारक हैं लेकिन बाहरी कारक भी हैं जो सड़ने-गलने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं, उनमें तापमान, कीट की सक्रियता, शव को दफन करना या कपड़े आदि में लपेट कर रखना तथा आग और पानी की मौजूदगी शामिल है। शव को ममी में तब्दील करने का कार्य शुष्क परिस्थितियों में होता है, जो गर्म या ठंडा हो सकता है।
 
नम पर्यावरण में ऑक्सीजन के बगैर ऐसी स्थिति बनती है जिसमें पानी वसा को हाइड्रोलाइसिस प्रक्रिया के जरिए मोम जैसे पदार्थ में विखंडित कर सकता है। मोमीय परत त्वचा पर एक कवच बन जाता है और उसका संरक्षण करता है। हालांकि कई मामलों में नरम उत्तक आखिरकार खत्म हो जाते हैं और सिर्फ कंकाल बच जाता है। ये कठोर उत्तक हजारों वर्षों तक टिके रह सकते हैं।
 
सड़न को रोकना : अन्य ग्रहों पर अलग गुरूत्व रहने के चलते ‘लिवोर मोर्टिस’ चरण निश्चित तौर पर प्रभावित होगा और अंतरिक्ष में तैरते समय गुरुत्व का अभाव रहने पर रक्त नहीं जमेगा। स्पेससूट के अंदर ‘रिगोर मोर्टिस’ की प्रक्रिया जारी रहेगी। मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव भी शव के सड़ने -गलने में मदद करते हैं। हालांकि हमारे सौर मंडल के अन्य ग्रहों पर कीट और शव को खाने वाले अन्य जंतु मौजूद नहीं हैं।
 
सड़ने-गलने की प्रक्रिया में तापमान भी एक मुख्य कारक है। उदाहरण के तौर पर चंद्रमा पर तापमान 120 डिग्री सेल्सियस से 170 डिग्री सेल्सियस है। इससे शवों में ताप से प्रभावित बदलाव या ठंड से जमने के प्रभाव देखे जा सकते हैं। हालांकि मनुष्य के शव अंतरिक्ष में एलियन के समय होंगे। इसलिए संभवत: अंत्येष्टि का एक नया तरीका ढूंढने की जरूरत होगी।

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