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यूरोप में बढ़ा राष्ट्रवादी राजनीति का दबदबा

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, सोमवार, 27 जून 2016 (14:31 IST)
ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से हटने के फैसले से पहले और बाद में समूची दुनिया में एक राष्ट्रवादी धारा और दक्षिणपंथी रुझान का दबदबा बढ़ा है। ब्रिटेन की इस नई पहल का असर दिखने लगा है। ब्रिटेन के ही भागों, स्कॉटलैंड और उत्तर आयरलैंड में जनमत संग्रह कराए जाने की मांग की है। फिनलैंड में संसद एक विशेष सत्र बुलाने की मांग की जा रही है। फ्रांस के नेशनल फ्रंट (एक दक्षिण पंथी दल) की नेता मैरीन ली-पेन ने कहा है कि इसी तरह का जनमत संग्रह फ्रांस और जर्मनी में भी कराए जाएं ताकि लोगों की वरीयताओं का पता लगा कि आखिर वे क्या चाहते हैं?
   
हलचल का असर विश्व के अन्य देशों पर पड़ता है। इसलिए अब यह तय माना जा रहा है कि राष्ट्रवाद (दक्षिणपंथ) की राजनीति को विश्व स्तर पर बल मिलेगा और यह स्थिति वामपंथियों के विरोध में एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
 
लोकसभा चुनाव में मोदी की जीत के बाद से भारत में पहले से ही राष्ट्रवादी राजनीति केंद्र में हावी है। तो ब्रिटेन का जनादेश इस्लामिक विस्तार की मानसिकता के लिए अशुभ संकेत हैं। सबसे बड़ी चोट उस विचार को लगी है जिसमें कुछ लोग सीमा रहित विश्व (बाउंड्री लेस वर्ल्ड) की कल्पना कर रहे थे। ब्रिटेन के चुनावी नतीजों का असर अमेरिकन राष्ट्रपति पद के चुनाव पर पड़ना तय माना जा रहा है। वहां भी यह माना जाने लगा कि दक्षिणपंथ की राजनीति कर रहे डोनाल्ड ट्रंप की राह जीत की राह भी आसान हो सकती है।
 
ब्रिटेन में हुए जनमत संग्रह का परिणाम इस्लामी आतंकवाद पर फैसला समझा जा रहा है क्योंकि  विस्तार का मंसूबा देख रहे मुस्लिम देशों के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है। अब तक सीरिया और ईराक से जो शरणार्थी यूरोप और ब्रिटेन में प्रवेश करते रहे हैं, उनमें ज्यादातर मुस्लिम शरणार्थी है जो कि किसी भी यूरोपीय या पश्चिमी देशों की मुख्यधारा में स्वयं समायोजित नहीं कर पाते हैं।
 
उल्लेखनीय है कि अब से ठीक 10 माह पहले ब्रिटेन में हुए एक और जनमत संग्रह में स्कॉटलैंड की जनता ने ब्रिटेन के साथ बने रहने के पक्ष में मतदान किया था। स्काटलैंड की एक बड़ी नेता और प्रथम मंत्री निकोला स्टरजन का कहना है कि इन बदली हुई परिस्थितियों में स्कॉटलैंड को फिर से जनमत संग्रह का रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा। इस जनमत संग्रह में स्कॉटलैंड के भविष्य पर वोटिंग होगी। ब्रिटेन से जुड़े रहने या न जुड़े रहने को लेकर होने वाला यह जनमत संग्रह अगर होता है यह बहुत बड़ी बात होगी।
 
स्टरजन के मुताबिक स्कॉटलैंड के अधिकतर लोगों ने ब्रिटेन को यूरोपियन संघ से अलग होने के विरोध में मतदान किया है। इस कारण से स्कॉटलैंडवासियों की मर्जी के बिना ब्रिटेन का ईयू से अलग होना उचित नहीं है। समझा जा रहा है कि सीरिया और इराक के घटनाक्रम से चिंतित ब्रिटेन के लोगों की सोच बदल गई है। मानवीय पहल करते हुए ईयू के देशों ने सीरिया से भागे मुस्लिमों को संरक्षण तो दे दिया, लेकिन उसके बाद से डेमोग्राफिक बदलाव और स्थानीय निवासियों की नाराजगी की चिंता सताने लगी है। 
 
इस कारण से ब्रिटेन के लोगों को लगा है कि ईयू से अलग हटकर वे अपने देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ अस्तित्व भी बचा सकते हैं। आम जनता के अलावा ब्रिटेन की यूकेआईपी (यूनाइटेड किंगडम इंडिपेंडेंस पार्टी) के नेता नाइजेल फराज और उनके सहयोगियों ने जनमत संग्रह के दौरान ऐसा प्रचार किया मानो ईयू के साथ रहने से ब्रिटेन का भला किसी भी तरह से होने वाला नहीं है। इसलिए उनका ईयू से अलग होना ही बेहतर होगा।  
 
दक्षिणपंथी पार्टी के मुखिया फैराज वर्ष 1992 तक ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी के सदस्य थे लेकिन बाद में पार्टी से मतभेद होने के बाद उन्होंने ब्रिटेन को 'यूरोपीय नियंत्रण' से मुक्त कराने का अभियान शुरु कर दिया। पिछले छह सालों से यूके इंडिपेंडेंस पार्टी (यूकिप) के अध्यक्ष हैं, लंदन के एक नामी स्कूल से पढ़े हैं और नाइजेल राजनीति में आने से कमोडिटी एक्सचेंज में ब्रोकर थे। 
  
बाद में, नाइजेल फराज 1999 में पहली बार यूरोपीय संसद के सदस्य चुने गए थे जिसके बाद से अब तक वे साउथ इंग्लैंड से लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। एक ब्रितानी सांसद बनने के लिए उन्हें कई बार चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। लेकिन यह अपने आप में दिलचस्प बात है कि वे पिछले 17 सालों से उस सदन के सदस्य हैं जिसका वे लगातार विरोध करते रहे हैं और ब्रिटेन को उसके प्रभाव से मुक्त कराना चाहते हैं।
 
नाइजेल विवादास्पद बयानों और आप्रवासियों के खिलाफ बोलने के लिए जाने जाते रहे हैं, उन्हें ब्रितानी राजनीति के संदर्भ में अति-दक्षिणपंथी नेता कहा जाता है। वे उस वक़्त भी चर्चा में आए थे जब प्रिंस चार्ल्स यूरोपीय संसद में जलवायु परिवर्तन पर भाषण देने पहुंचे थे, भाषण के बाद सभी सांसदों ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया लेकिन एक ही व्यक्ति बैठा रहा और वे थे नाइजेल फराज।   
जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, तो जवाब में उन्होंने कहा कि प्रिंस चार्ल्स के 
सलाहकार मूर्ख हैं, यूरोपीय संसद को मजबूत करने की बात कहने की सलाह उन्हें किसने दी? वे ब्रिटेन को कमजोर करना चाहते हैं क्या? डेविड कैमरन पर जनमत संग्रह कराने के लिए उन्होंने लंबे समय से दबाव बना रखा था। यूरोपीय नियमों, कानूनों और नीतियों को मानने के लिए वे ब्रिटेन सरकार की कटु आलोचना करते रहे हैं। 
 
इसलिए जब 2015 में कैमरन पूर्ण बहुमत से चुनाव जीतकर आए तो उन्हें लगा कि वे जनता में खासे लोकप्रिय हैं और अगर जनमत संग्रह करा दिया जाए तो वे जीत जाएंगे और फराज जैसे अति दक्षिणपंथी नेताओं की हवा निकल जाएगी। कैमरन ने जहां लोगों से 'रिमेन इन ईयू' का प्रचार किया वहीं नाइजल ने 'लीव ईयू' कैम्पेन चलाया। उनका यह प्रचार इंग्लैंड और वेल्स में काफी प्रभावी रहा।
 
वर्ष 2014 में टाइम्स समाचारपत्र ने उन्हें ब्रिटेन का सबसे प्रभावशाली नेता माना था। अब ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने की अनौपचारिक घोषणा के बाद अगर कभी चुनाव होते हैं तो फराज की जीत आश्चर्यजनक नहीं होगी। लेकिन चूंकि प्रधानमंत्री कैमरन ने अक्टूबर में पद छोड़ने की घोषणा की है इसलिए मध्यावधि चुनावों की संभावना नहीं है और टोरी (कंजरवेटिव पार्टी) का नया नेता चुना जाएगा जो कि कैमरन के बाद ब्रिटेन का नया प्रधानमंत्री होगा।

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