संयुक्त राष्ट्र। भारत ने कहा है कि बच्चों के लिए विदेशी 'आतंकवादी लड़ाके' शब्द का इस्तेमाल करने से उन्हें कलंकित करने तथा उनके प्रति अमानवीयता बरतने जैसी परिस्थितियां बन सकती हैं। इसके साथ ही भारत ने सशस्त्र संघर्षों से प्रभावित किशोरवय बच्चों को उनके देश भेजने, उनके पुनर्वास तथा उनके परिवारों से उन्हें पुन: मिलाने जैसे पहले से तैयार एवं संघर्षों के लिहाज से संवेदनशील तरीकों को अपनाने पर जोर दिया।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी उप प्रतिनिधि राजदूत के नागराज नायडू ने संरा सुरक्षा परिषद की बच्चे एवं सशस्त्र संघर्ष विषय पर ओपन एरिया फॉर्मूला बैठक में कहा कि परिषद का संकल्प 2178 (2014) विदेशी आतंकवादी लड़ाके (एफटीएफ) शब्द को परिभाषित करता है।
नायडू ने कहा कि उनके परिवारों के लिए इस शब्द का इस्तेमाल करने का आम चलन है। हालांकि एफटीएफ शब्द का इस्तेमाल बच्चों के लिए करना उन्हें कलंकित करने तथा उनके प्रति अमानवीय रुख अपनाने के लिए प्रेरित करना होगा। एफटीएफ धारणा से प्रभावित बच्चों के साथ व्यवहार सम्मान, संरक्षण तथा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत परिभाषित उनके अधिकारों की पूर्ति पर आधारित होना चाहिए।
उन्होंने बैठक में कहा कि भारत मानता है कि विदेशी आतंकवादी लड़ाकों के बच्चों के अभियोजन, वापसी और पुनर्वास सुनिश्चित करने के लिए सदस्य देशों द्वारा अनुकूल, संघर्षों के संदर्भ में संवेदनशील प्रयासों की तत्काल जरूरत है। नायडू ने कहा कि एफटीएफ पर अभियोजन में संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों से स्थानीय कानूनों तथा अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत सदस्य देशों की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप साक्ष्य एकत्रित करने, उन्हें सुरक्षित रखने और संबंधित जानकारी साझा करने की चुनौती है।
उन्होंने कहा कि कई बच्चों का कानूनी दस्तावेजीकरण नहीं होने से स्थिति और जटिल हो गई है। ऐसा भी हो सकता है कि किसी सदस्य देश की कट्टरता को समाप्त करने या पुन: एकीकरण की कोई नीति ही नहीं हो। नायडू ने कहा कि कुछ सदस्य देशों ने विदेशी आतंकवादियों के बच्चों का पुनर्वास शुरू कर दिया है लेकिन रफ्तार धीमी है। उन्होंने कहा कि इसलिए यह स्पष्ट है कि परिस्थितियों के आधार पर तय होगा कि एफटीएफ के बच्चों को वापस ले जाया जा सकता है या नहीं। (भाषा)