मलेरिया पर काबू पाने में कृत्रिम प्रकाश बन सकता है नया हथियार

Webdunia
शनिवार, 4 जून 2022 (20:09 IST)
प्रिटोरिया (दक्षिण अफ्रीका)। दुनिया अभी तक मलेरिया के खिलाफ जंग नहीं जीत पाई है। यद्यपि 2000 के बाद मलेरिया के मामलों की संख्या 1000 की आबादी पर लगभग 81.1 मामलों से घटकर 59 मामले प्रति हजार तक आ गई है, इसके बावजूद वैश्विक स्तर पर 2020 में मलेरिया के अनुमानित तौर पर 24 करोड़ मामले सामने आए और 6 लाख लोगों की मौत हुई।

पूरे अफ्रीका में मलेरिया एक खतरा बना हुआ है। दुनिया में सबसे अधिक 94 प्रतिशत मलेरिया के मामले और 96 प्रतिशत मौत अफ्रीका महाद्वीप में होती है। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 80 फीसदी मौत के शिकार पांच साल या इससे कम उम्र के बच्चे होते हैं।

संतुष्ट होने की कोई गुंजाइश नहीं है। यद्यपि टीकों से आशा जगती है, लेकिन विशेष रूप से पूर्वी अफ्रीका में मलेरिया-रोधी दवा प्रतिरोध में लगातार वृद्धि हो रही है। परजीवी नित नए स्वरूप बदल रहे हैं, जिससे नियमित जांच में वे पकड़ में नहीं आते। मच्छरों में भी कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है।

यह स्थिति विभिन्न रोगवाहक कीटाणुओं के नियंत्रण विकल्पों में तेजी लाने और नई रणनीतियों की तलाश करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। मेरा अनुसंधान एक ऐसी संभावित रणनीति की पड़ताल करता है जिसके तहत मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों की प्रजातियों को चकमा देने के लिए कृत्रिम रोशनी का उपयोग किया जाता है, जिससे रात में दिन जैसा प्रतीत होता है। यह लोगों को मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के डंक से सुरक्षित रखने में मदद करेगा।

मेरे अपने सहित नए अनुसंधानों में यह तर्क दिया गया है कि रात में कृत्रिम प्रकाश मच्छरों के व्यवहार को किस प्रकार बदल सकता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि घरों में इस्तेमाल होने वाली कृत्रिम रोशनी मच्छरों के जीव विज्ञान को बदल सकती है। उदाहरण के लिए प्रकाश उत्सर्जक डायोड (एलईडी) रोशनी का एक मामूली स्पंदन एनोफिल मच्छरों को घंटों तक डंक मारने से रोक सकता है और इस प्रकार मच्छरों के काटने और मलेरिया फैलने की दर कम हो सकती है।

ये विचार आशाजनक जरूर है, लेकिन रोगवाहक कीटाणुओं को नियंत्रित करने की रणनीति हमेशा बड़े पैमाने पर काम नहीं करती है, खासकर अगर उन रणनीतियों को ठीक से लागू न किया जाए तो। उदाहरण के तौर पर कभी-कभी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में मच्छर रोधी मच्छरदानियों का इस्तेमाल मछली पकड़ने के जाल के रूप में किया जाता है। नियंत्रित प्रयोगशाला सेटिंग्स में कृत्रिम प्रकाश के प्रभावों का प्रदर्शन करना एक बात है, लेकिन एक प्रभावी वेक्टर नियंत्रण रणनीति के रूप में उनका उपयोग करना बिलकुल अलग है।

भले ही सरकारें मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों से बचाव के लिए कई घरों में आसानी से एलईडी लाइट लगा सकती हैं, लेकिन इसके मानव स्वास्थ्य के लिए अनपेक्षित परिणाम भी हो सकते हैं। अनुसंधान का एक बढ़ता हुआ निकाय मानव स्वास्थ्य पर कृत्रिम प्रकाश के प्रभावों की जांच कर रहा है। शुरुआती संकेत हैं कि इससे नींद में खलल जैसे नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं।

कुल मिलाकर, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि मलेरिया संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए कृत्रिम रोशनी का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है, लेकिन इस मुद्दे पर काम बढ़ने से पता चलता है कि यह एक अवधारणा है, जिस ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य समूहों का अधिक ध्यान आकृष्ट करना चाहिए।(द कन्वर्सेशन)

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