आध्यात्मिक गुरु, सूफी, वेदांत और रहस्यवादी दर्शन से प्रभावित मेहर बाबा एक रहस्यवादी सिद्ध पुरुष थे। कई वर्षों तक वे मौन साधना में रहे। मेहर बाबा के भक्त उन्हें परमेश्वर का अवतार मानते थे।
25 फरवरी 1894 में मेहर बाबा का जन्म पूना में पारसी परिवार में हुआ था। उनका मूल नाम मेरवान एस. ईरानी (मेरवान शेरियर ईरानी) था। वह एस. मुंदेगर ईरानी के दूसरे नंबर के पुत्र थे। जन्म से वे एक परसीयन थे। उनकी बचपन की पढ़ाई क्रिश्चियन हाईस्कूल, पूना तथा बाद में डेकन कॉलेज पूना में हुई थी।
मेहर बाबा एक अच्छे कवि और वक्ता थे तथा उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान था। 19 वर्ष की आयु में उनकी मुलाकात रहस्यदर्शी महिला संत हजरत बाबाजान से हुई और उनका जीवन बदल गया। इसके बाद उन्होंने नागपुर के हजरत ताजुद्दीन बाबा, केदगांव के नारायण महाराज, शिर्डी के सांई बाबा और साकोरी के उपासनी महाराज अर्थात पांच महत्वपूर्ण हस्तियों को अपना गुरु माना।
सात वर्षों तक उपासनी महाराज के पास ज्ञान प्राप्त करने के बाद वे ईरानी आध्यात्म के उच्च स्तर पर पहुंच गए। तभी से उनके चेलों ने उन्हें मेहर बाबा नाम दिया, मेहर जिसका अर्थ होता है महादयालु पिता।
उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले में बाबा के भक्त परमेश्वरी दयाल पुकर ने 1964 ई. में मेहर मंदिर का निर्माण करवाया था। 18 नवंबर 1970 ई. को मंदिर में अवतार मेहर बाबा की प्रतिमा स्थापित की गई थी। यहां पर प्रति वर्ष 18 और 19 नवंबर को मेहर प्रेम मेले का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा भी मेहर बाबा के कई मंदिर है। मेहर बाबा ने छ: बार विदेश यात्राएं भी की।
उनका विशालकाय आश्रम महाराष्ट्र के अहमदनगर के पास मेहराबाद में हैं, जो मेहर बाबा के भक्तों की गतिविधियों का केंद्र माना जाता है। मेहराबाद में आज भी बाबा की समाधि है। इसके पहले मुंबई में उनका आश्रम था। आखिरकार एकांत वास में उपवास और तपस्या करने के दौरान उन्होंने 31 जनवरी 1969 को मेहराबाद में अपनी देह छोड़ दी थी।
- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'