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Vallabhacharya Jayanti 2021: महाप्रभु वल्लभाचार्य की जयंती

हमें फॉलो करें Vallabhacharya Jayanti 2021: महाप्रभु वल्लभाचार्य की जयंती
Vallabhacharya Jayanti 2021
- शतायु
 
कृष्ण भक्त और पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक वल्लाभाचार्य की जयंती वैशाख कृष्ण एकादशी के दिन मनाई जाती है। वैशाख कृष्ण एकादशी को वरूथिनी एकादशी भी कहा जाता है। सोमयाजी कुल के तैलंग ब्राह्मण लक्ष्मण भट्ट के यहां जन्मे वल्लभाचार्य का अधिकांश समय काशी, प्रयाग और वृंदावन में ही बीता।
 
उनकी माता का नाम इलम्मागारू था। उनकी पत्नी का नाम महालक्ष्मी था। उनके दो पुत्र थे गोपीनाथ और विट्ठलनाथ।
 
जब इनके माता-पिता मुस्लिम आक्रमण के भय से दक्षिण भारत जा रहे थे तब रास्ते में छत्तीसगढ़ के रायपुर नगर के पास चंपारण्य में 1478 में वल्लभाचार्य का जन्म हुआ। बाद में काशी में ही उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई और वहीं उन्होंने अपने मत का उपदेश भी दिया।
 
रुद्र संप्रदाय के विल्वमंगलाचार्य जी द्वारा इन्हें अष्टादशाक्षर गोपाल मंत्र की दीक्षा दी गई और त्रिदंड संन्यास की दीक्षा स्वामी नारायणेंद्रतीर्थ से प्राप्त हुई। 52 वर्ष की आयु में उन्होंने सन् 1530 में काशी में हनुमानघाट पर गंगा में प्रविष्ट होकर जल-समाधि ले ली।
 
वल्लभाचार्य के शिष्य : ऐसा माना जाता है कि वल्लभाचार्य के 84 (चौरासी) शिष्य थे जिनमें प्रमुख हैं सूरदास, कृष्णदास, कुंभनदास और परमानंद दास।
 
वल्लभाचार्य का दर्शन : वल्लभाचार्य अनुसार तीन ही तत्व हैं ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा। अर्थात ईश्वर, जगत और जीव। उक्त तीन तत्वों को केंद्र रखकर ही उन्होंने जगत और जीव के प्रकार बताए और इनके परस्पर संबंधों का खुलासा किया।
 
उनके अनुसार भी ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है जो सर्वव्यापक और अंतर्यामी है। कृष्ण भक्त होने के नाते उन्होंने कृष्ण को ब्रह्म मानकर उनकी महिमा का वर्णन किया है। वल्लभाचार्य के अद्वैतवाद में माया का संबंध अस्वीकार करते हुए ब्रह्म को कारण और जीव-जगत को उसके कार्य रूप में वर्णित कर तीनों शुद्ध तत्वों की साम्यता प्रतिपादित की गई है। इसी कारण ही उनके मत को शुद्धद्वैतवाद कहते हैं।
 
प्रसिद्ध ग्रंथ : ब्रह्मसूत्र पर अणुभाष्य इसे ब्रह्मसूत्र भाष्य अथवा उत्तरमीमांसा कहते हैं, श्रीमद् भागवत पर सुबोधिनी टीका और तत्वार्थदीप निबंध। इसके अलावा भी उनके अनेक ग्रंथ हैं। सगुण और निर्गुण भक्ति धारा के दौर में वल्लभाचार्य ने अपना दर्शन खुद गढ़ा था लेकिन उसके मूल सूत्र वेदांत में ही निहित हैं।
 
उन्होंने रुद्र सम्प्रदाय के प्रवर्तक विष्णु स्वामी के दर्शन का अनुसरण तथा विकास करके अपना शुद्धद्वैत मत या पुष्टिमार्ग प्रतिष्ठित किया था।

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