Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

आज के शुभ मुहूर्त

(चतुर्दशी तिथि)
  • तिथि- मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त-मास शिवरात्रि, शिव चतुर्दशी
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

संत सूरदास कौन थे जानिए कथा और रोचक प्रसंग

हमें फॉलो करें संत सूरदास कौन थे जानिए कथा और रोचक प्रसंग

अनिरुद्ध जोशी

, शनिवार, 15 मई 2021 (11:43 IST)
जन्म- सन्‌ 1478 ई.
मृत्यु- सन्‌ 1573 ई. के लगभग
 
संत सूरदासजी का जन्म मथुरा के रुनकता नाम के गांव में हुआ। सुरदासजी जन्म से ही अंधे थे या नहीं इसमें मतभेद है। हालांकि वे श्रीकृष्‍ण के अनन्न भक्त थे। 17 May 2021 को सूरदासजी की जयंती मनाई जाएगी। इसी संदर्भ में आओ जानते हैं उनकी कथा और रोचक प्रसंग।
 
 
कथा : प्रारंभ में सूरदासजी मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। वहीं में दैन्य भाव से विनय के पद गाकर गुजर बसर करते थे। कहते हैं कि वे जन्म से सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्में थे। सूरदास के पिता रामदास भी गायक थे इसीलिए सूरदास भी गायक बने। अधिकतर विद्वान मानते हैं कि सूरदास का जन्म सीही नाम गांव में हुआ और वे बाद में गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। वहीं उनकी वल्लभाचार्य से भेंट हुई। जनश्रुति के अनुसार उनके बचपन का नाम मदनमोहन था।
 
वल्लभाचार्य जब आगरा-मथुरा रोड पर यमुना के किनारे-किनारे वृंदावन की ओर आ रहे थे तभी उन्हें एक अंधा व्यक्ति दिखाई पड़ा जो बिलख रहा था। वल्लभ ने कहा तुम रिरिया क्यों रहे हो? कृष्ण लीला का गायन क्यों नहीं करते? सूरदास ने कहा- मैं अंधा मैं क्या जानूं लीला क्या होती है? तब वल्लभ ने सूरदास के माथे पर हाथ रखा। विवरण मिलता है कि पांच हजार वर्ष पूर्व के ब्रज में चली श्रीकृष्ण की सभी लीला कथाएं सूरदास की बंद आंखों के आकाश पर तैर गईं। गऊघाट में गुरुदीक्षा प्राप्त करने के पश्चात सूरदास ने 'भागवत' के आधार पर कृष्ण की लीलाओं का गायन करना प्रारंभ कर दिया। अब वल्लभ उन्हें वृंदावन ले लाए और श्रीनाथ मंदिर में होने वाली आरती के क्षणों में हर दिन एक नया पद रचकर गाने का सुझाव दिया।
 
रोचक प्रसंग : जनश्रुति के अनुसार माना जाता है कि सूरदासजी जन्म से अंधे नहीं थे। वे कविताएं और गीत लिखा करते थे। एक दिन वे नदी किनारे गीत लिख रहे थे कि तभी उनकी नजर एक नवयुवती पर पड़ी। उसे देखकर वह आकर्षित हो गए और उसे निहारने लगे। कुछ देर बाद उस युवती की नजर सूरदाजी पर पड़ी तो वह उनके पास आकर बोलने लगी, आप मदन मोहन जी होना ना? इस पर सूरदासजी बोले हां, परंतु तुम कैसे मेरा नाम जानती हो। इस पर वह बोली आप गीत गाते हैं और लिखते भी हैं इसीलिए आपको सभी जानते हैं।
 
सूरदाजी बोले हां मैं गीत लिख रहा था तो अचानक आप पर नजर पड़ी तो मेरा गीत लिखना बंद हो गया, क्योंकि आप है ही इतनी सुंदर की मेरा कार्य रुक गया। यह सुनकर वह युवती शरमा गई। फिर यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा।
 
उस सुन्दर युवती का चेहरा उनके सामने से नहीं जा रहा था और एक दिन वह मंदिर में बैठे थे तभी वह एक युवती आई और मदन मोहन उनके पीछे-पीछे चल दिए। जब वह उसके घर पहुंचे तो उस युवती के पति ने दरवाजा खोला तथा पूरे आदर सम्मान के साथ उन्हें अंदर बिठाया। यह देख और सम्मान पाकर सूरदासजी को बहुत पछतावा हुआ। तब उन्होंने दो जलती हुई सिलाइयां मांगी तथा उसे अपनी आंख में डाल दी। इस तरह मदन मोहन बने महान कवि सूरदास।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi