इलाहाबाद। समय के साथ कुंभ के पारंपरिक स्वरूप पर आधुनिकता और महंगाई का असर साफ देखा जा रहा है। एक तरफ कुंभ से राजसी ठाट बाट नदारद हो रहे हैं तो दूसरी तरफ कुंभ आयोजकों और श्रद्धालुओं पर महंगाई का असर भी साफ देखा जा रहा है।
अब शाही अखाड़े तक जाने के लिए हाथी, घोड़े और उटों की सवारी के राजसी अंदाज की जगह ट्रैक्टर, ट्रॉलियों जैसी सवारी ने ली है। वहीं महंगाई का असर यह है कि अखाड़ों में मिलने वाले समष्टी भोज में पनीर और मेवों की जगह अब दाल ने ले ली है।
बड़े अखाड़े के कोठारी महंत सुंदर दास ने अखाड़ों की भोज व्यवस्था और महंगाई पर बातचीत करते हुए कहा कि अखाड़ों के समष्टी भोज से अब पुरानी शानोशौकत गायब हो रही है। महंगाई ने भंडारों पर काफी प्रभाव डाला है।
पहले अगर किसी भगत या संत का बजट दो लाख होता था तो वह बड़ी आसानी से भंडारा, दक्षिणा की व्यवस्था कर लेता था, लेकिन आज बहुत से लोगों की श्रद्धा भावना महंगाई की भेंट चढ़ जाती है। यदि कोई भंडारा करना चाहता है तो उसे महंगाई के कारण चाय नाश्ते तक ही सीमित रहना पड़ना है।
उन्होंने कहा कि ईंधन इस मामले में सबसे बड़ी समस्या बन गया है। एक सिलेंडर पर जहां 600 रुपए खर्च होते थे वहीं अब इसके लिए 1,500 रुपए तक खर्च करना पड़ता है। खर्च अब दोगुना तिगुना बढ़ गया है हालांकि सरकार ने गैस को छोड़कर आटा, चीनी, तेल को कम मूल्य पर उपलब्ध करा कर थोड़ी राहत दी है। (भाषा)