एक जनवरी ग्यारह को, ग्यारह बजकर- ग्यारह मिनट और ग्यारह सेकंड को कुंभ लग्न का उदय हुआ था। इस लग्न में जन्मे जातक इकहरे शरीरवाले होते है। लग्न व द्वादश व्यय भाव का स्वामी अष्टम भाव में अपने मित्र बुध की राशि कन्या में होकर अष्टम भाव में होने से इसके कार्य में परेशानियों के बाद उत्तम सफलता रहेगी।
द्वादशेश यदि अष्टम में हो तो विपरीत राजयोग होने से सफलता तो देता है लेकिन परिश्रम के बाद। द्वितीय धन, कुटुंब, वाणी व एकादश आय भाव का स्वामी गुरु धन भाव में स्वराशि का होने से धन, कुटुंब, वाणी, आय के मामलों में सफलता के साथ सहयोग भी दिलाता है।
ऐसा बालक दादा-दादी का भी प्यारा रहता है, वो चाहे लड़की हो या लड़का। तृतीय पराक्रम, भाई, साझेदारी, संचार, शत्रु व दशम पिता, राज्य, नौकरी व्यवसाय भाव का स्वामी मंगल आय भाव में मित्र गुरु की राशि धनु में होकर सप्तमेश सूर्य व नीच के राहु के साथ होने से आय के मामलों में सावधानीपूर्वक भी चलने का रहेगा।
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वैसे अपने जीवन साथी से, दैनिक व्यवसाय से भी लाभ रहेगा। षष्ट भाव का स्वामी चन्द्र नीच का होकर, अष्टमेश आयु व दुःख स्थान के साथ-साथ पंचम भाव का स्वामी बुध है। जिसके परिणाम स्वरूप विद्या, सन्तान, मनोरंजन के मामलों मे थोड़ी सतर्कता रखने पर सफलता रहेगी। आयु के मामलों में देख जाए तो शनि की अष्टम में स्थिति अनुकूल होने से आयु उत्तम रहेगी।
शनि की तृतीय शत्रु दृष्टि से दशम भाव को देखने से पिता से, अधिकारी वर्ग से मतभेद भी रहेंगे। इधर सुख भाव का स्वामी शुक्र माता, भूमि-भवन, संपति, वाहनादि के साथ भाग्य धर्म, यश का स्वामी स्वराशि का नवम भाव में होने से इन सबका लाभ रहेगा।
वैसे देखा जाए तो यह बालक भाग्यशाली ही रहेगा। गुरु मंगल का दृष्टि संबंध भी इसे न्याय के मामलों में लोकप्रिय भी बनाएगा। मंगल की नीच दृष्टि षष्ट भाव पर होने से नाना, मामा पर भार पड़ेगा, शत्रुओं से भी परेशान रहेगा। मंगल की शांति किसी योग्य पंडित से करवाने पर दोष भी दूर होंगे।