15 August Independence Day: भारत के ये 10 क्रांतिकारी जिनकी वजह से मिली हमें आजादी

WD Feature Desk
मंगलवार, 13 अगस्त 2024 (12:50 IST)
78th Independence Day 2024: भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले यूं तो हजारों क्रांतिकारी लोग थे। सैंकड़ों तो गुमनामी के अंधेरे में खो गए हैं। लेकिन यदि हम मोटे तौर पर देंखे तो भारत में क्रांति की अलख जगाकर चिंगारी को आग में बदलने वाले कुछ देशभक्त लोग थे जो हंसते हंसते फांसी के फंदे पर लटक गए या जिन्होंने लड़ते-लड़ते अपनी जान दे दी।
 
1. मंगल पांडे : सन् 1857 की क्रांति के अग्रदूत और आजादी की लड़ाई में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले क्रांतिकारी वीर सपूत मंगल पांडेय का 19 जुलाई 1827 को जन्म हुआ। सन् 1849 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए। कारतूस में गाय की चर्बी का उपयोग किये जाने की बात का पता चलते ही मंगल पांडे भड़क गए। 9 फरवरी 1857 को जब यह कारतूस देशी पैदल सेना को बांटा गया, तब मंगल पांडेय ने उसे न लेने को लेकर विद्रोह जता दिया। इस बात से गुस्साए अंग्रेजी अफसर द्वारा मंगल पांडे से उनके हथियार छीन लेने और वर्दी उतरवाने का आदेश दिया, जिसे मानने से मंगल पांडे ने इनकार कर दिया।  उन्होंने रायफल छीनने आगे बढ़ रहे अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन पर आक्रमण किया तथा उसे मौत के घाट उतार दिया, साथ ही उनके रास्ते में आए दूसरे एक और अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट बॉब को भी मौत के घात उतार दिया। इस तरह मंगल पांडेय ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया, अत: उन्हें आजादी की लड़ाई के अगदूत भी कहा जाता है। भारतीय इतिहास में इस घटना को ‘1857 का गदर’ नाम दिया गया। इसके घटना के बाद मंगल पांडे को अंग्रेज सिपाहियों ने गिरफ्तार किया गया तथा उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाया और फांसी की सजा सुनाई।ALSO READ: 15th August 2024: भारत के गुमनाम क्रांतिकारी, जानिए उनकी कहानी
 
2. चंद्रशेखर आजाद: चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ था। 1920-21 के वर्षों में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए। जहां उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को उनका निवास बताया। उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई। हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने, 'वंदे मातरम्' और 'महात्मा गांधी की जय' का स्वर बुलंद किया। जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी' से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए। 17 दिसंबर, 1928 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा। फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया। चंद्रशेखर आजाद ने संकल्प किया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी। इसी संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने 27 फरवरी, 1931 को इसी पार्क में स्वयं को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी। इस तरह चंद्रशेखर आजाद के रूप में देश का एक महान क्रांतिकारी योद्धा देश की आजादी के लिए अपना बलिदान देकर शहीद हो गया।ALSO READ: 15th August 2024 : 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराने में क्या अंतर है?
 
3. भगत सिंह : भगत सिंह का जन्म 27 या 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा (अब पाकिस्तान) में हुआ था। लाहौर में 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेजी अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चंद्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू तीनों ने मिलकर क्रांति की जो चिंगारी जलाई थी वो पूरे देश में भड़क उठी। निर्धारित योजना के अनुसार भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेंबली में एक खाली स्थान पर बम फेंका था। इसके बाद उन्होंने स्वयं गिरफ्तारी देकर अपना संदेश दुनिया के सामने रखा। उनकी गिरफ्तारी के बाद उन पर एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी सांडर्स की हत्या में भी शामिल होने के कारण देशद्रोह और हत्या का मुकदमा चला। 23 मार्च 1931 को शाम 7.23 पर भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी दे दी गई। और भार‍त के इन 3 वीर सिपाहियों ने देश के लिए अपना बलिदान दे दिया। 
Rajguru Bhagat Sukhdev
4. रानी लक्ष्मीबाई : झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी। एजेंट की सूचना पाते ही रानी के उनके मुख से 'मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी' का वाक्य प्रस्फुटित हुआ और यहीं से भारत की प्रथम स्वाधीनता क्रांति का बीज प्रस्फुटित हुआ। अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने की योजना बनाकर 23 मार्च 1858 को झांसी के ऐतिहासिक युद्ध में अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिए। और वीरतापूर्वक झांसी की सुरक्षा की और छोटी-सी सेना के साथ अंग्रेजों का बड़ी बहादुरी से मुकाबला किया। इस तरह युद्ध के दौरान अकेले ही अपनी पीठ के पीछे अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को कसकर बांधकर झांसी की सुरक्षा की और घोड़े पर सवार होकर अंग्रेजों से युद्ध करती रहीं और अपनी कुशलता का परिचय देती रहीं। फिर इस तरह तरह 18 जून 1858 को ग्वालियर के अंतिम युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए घायल हो गईं और उन्होंने अंततः वीरगति प्राप्त कीं। 
 
5. नेताजी सुभाषचंद्र बोस : नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्‍म 23 जनवरी, 1897 को हुआ था। 1916 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस को ब्रिटिश प्रोफेसर के साथ दुर्व्‍यवहार के आरोप में कॉलेज से निलंबित कर दिया गया। 1921 में सुभाषचंद्र बोस को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। 1 अगस्‍त, 1922 को वे जेल से बाहर आए। कांग्रेस के साथ जुड़कर भारतीय स्वतंत्रता की मांग करते रहे। 1930 उन्‍हें जेल भेज दिया गया। नेताजी ने भारत की आजादी के लिए विदेशी नेताओं से दबाव डलवाने के लिए इटली में मुसोलिनी, जर्मनी में फेल्‍डर, आयरलैंड में वालेरा और फ्रांस में रोमा रोनांड से मुलाकात की।  एक नाटकीय घटनाक्रम में वे 7 जनवरी, 1941 को गायब हो गए और अफगानिस्‍तान और रूस होते हुए जर्मनी पहुंचे। 21 अक्‍टूबर, 1943 को उन्होंने आजाद हिन्‍द सरकार की स्‍थापना की और इसकी स्‍थापना अंडमान और निकोबार में की गई, जहां इसका 'शहीद और स्‍वराज' नाम रखा गया। आजाद हिन्‍द फौज अराकान पहुंची और इम्फाल के पास जंग छिड़ी। फौज ने कोहिमा (इम्फाल) को अपने कब्‍जे में ले लिया। उन्होंने 4 जुलाई 1944 को 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा दिया। दूसरे विश्‍वयुद्ध में जापान ने परमाणु हमले के बाद हथियार डाल दिए। इसके कुछ दिनों बाद नेताजी की हवाई दुर्घटना में मारे जाने की खबर आई। 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। नेताजी का निधन 18 अगस्त 1945, ताइपे, ताइवान विमान दुर्घटना में हुआ था। ALSO READ: 78th independence day 2024: 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर जाएं घूमने, भारत में है वो सबकुछ जो नहीं मिलेगा किसी दूसरे देश में
 
6. अशफाक उल्ला खां : महान स्वतंत्रता सेनानी अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर 1900 ई. में हुआ था। बड़े होकर उन दिनों देश में चल रहे आंदोलनों और क्रांतिकारी घटनाओं से प्रभावित अशफाक के मन में क्रांतिकारी भावना जागी और उस समय उनकी मुलाकात मैनपुरी षड्यंत्र के मामले में शामिल रामप्रसाद बिस्मिल से हुई और वे भी क्रांति की दुनिया में शामिल हो गए। इसके बाद वे ऐतिहासिक काकोरी कांड में सहभागी रहे और पुलिस के हाथ भी नहीं आए। एक बार काम के संबंध में विदेश जाने के लिए वे अपने एक पठान मित्र के संपर्क में आए, जिसने उनके साथ छल किया और पैसों के लालच में अंग्रेज पुलिस को सूचना देकर अशफाक उल्ला खां को पकड़वा दिया। उनके पकड़े जाने के बाद जेल में उन्हें कई तरह की यातनाएं दी गई और सरकारी गवाह बनाने की भी कोशिश की गई। परंतु अशफाक ने इस प्रस्ताव को कभी मंजूर नहीं किया। अशफाक को फैजाबाद जेल में रखा गया और उन पर मुकदमा चलाया गया। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में यह मुकदमा काकोरी डकैती कांड के रूप में दर्ज हुआ। अशफाक उल्ला खां को 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गई।
Tatya Tope
7. तात्या टोपे : 16 फरवरी 1814 को जन्म हुआ। 1857 की क्रांति के दौरान रानी लक्ष्मीबाई का तात्या टोपे ने भरपूर साथ दिया था। उनके साथ मिलकर अंग्रेजों को हराने की पूरी नीति बनाई थी। तात्या टोपे ने अपने संपूर्ण जीवन में अंग्रेजों के खिलाफ करीब 150 युद्ध पूरी वीरता के साथ लड़े थे। इस दौरान युद्ध में उन्होंने करीब 10 हजार सैनिकों को मार गिराया था। विशेष कर सन् 1857 की क्रांति में अहम भूमिका निभाने वाले तात्या टोपे के प्रयासों को आज भी याद किया जाता है। अंग्रेजी लेखक रहे सिलवेस्टर ने लिखा कि, ‘तात्या टोपे का हजारों बार पीछा किया लेकिन वह कभी किसी के हाथ नहीं आए। कभी तात्या टोपे को पकड़ने में सफलता हासिल नहीं हुई। अंतत: त: 15 अप्रैल को तात्या टोपे का कोर्ट मार्शल किया गया था। जिसमें उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। 
 
8. नाना साहब पेशवा : सन्‌ 1857 में प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान 21 दिन तक कानपुर नगर पर नाना साहब पेशवा की हुकूमत रही और अंग्रेज दूर बैठे ताकते रहे। कानपुर में महान क्रांतिकारी नाना साहब द्वारा जलाई गई गदर की अलख धर्मगुरुओं, दस्तकारों, किसानों और सिपाहियों के विद्रोह के बाद आम जनता की बगावत में तब्दील हो गई और जनआंदोलन की लपटों से फिरंगियों का पहाड़ जैसा गुरुर बर्फ की तरह पिघल गया। नाना साहब की मृत्यु को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। माना जाता है कि नेपाल के देवखारी गांव में रहते हुए नाना साहेब भयंकर बुख़ार से पीड़ित हो गए और इसी के परिणामस्वरूप मात्र 34 साल की उम्र में 6 अक्टूबर, 1858 को इनकी मौत हो गई।
 
9. वीर सावरकर : स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को हुआ था। वीर सावरकर 1911 से 1921 तक अंडमान जेल में रहे। 1921 में वे स्वदेश लौटे और फिर 3 साल जेल में रहे। वे पहले ऐसे भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने सर्वप्रथम विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। उन्होंने ही सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य घोषित किया और राष्ट्रध्वज तिरंगे के बीच में धर्मचक्र लगाने का सर्वप्रथम सुझाव भी वीर सावरकर ने ही दिया था।  26 फरवरी 1966 को मुंबई में वीर सावरकर का निधन हुआ था। ऐसे भारत के अद्वितीय क्रांतिकारी कहे जाने वाले वीर स्वतंत्रता सेनानी को नमन। 
veer savarkar
10. महात्मा गांधी : महात्मा गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर को पोरबंदर में हुआ था। महात्मा गांधी ने देश की आजादी के लिए अहिंसक आंदोलन चलाया। अंग्रेजों ने उन्हें कई बार जेल में बंद किया। गांधी के कारण ही संपूर्ण देश एकजुट होकर आंदोलन करने लगा जिसके चलते अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। गांधी जी की हत्या बिरला भवन के बगीचे में 30 जनवरी 1948 को हुई थी। उनकी शवयात्रा में करीब दस लाख लोग साथ चल रहे थे और 15 लाख से ज्यादा लोग रास्ते में खड़े हुए थे। ALSO READ: स्वतंत्रता दिवस पर भ्रमण करें भारत के इन रॉयल किलों का, देश के इतिहास को जानने का ये है अद्भुत तरीका

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