कुछ दिन पहले
लगभग ठूंठ हो चुके पेड़ पर
अचानक नजर पड़ी
तो
हैरान होकर मैंने पूछा
ये कैसे हुआ?
लाल-केसरिया पत्तियों की
तलियां पीट-पीटकर टेसू मुस्कुराया
'होली आई'।
हवा से बतियाना चाहा
खुशी से मेरे गालों को सहलाकर
उसने कहा
फागुन आया।
इमली लगी लटालूम
आम के पक गए बौर
कोयल का स्वर गा रहा फाग
रसवंती रंगप्रिया के मन में
उमड़ आया गहरा अनुराग।
मैंने भी
बरसों पहले होली पर मिला
रंग का एक कतरा सहेजकर रखा है
आज तक।
हर बरस
रंग के समंदर में नहाती मैं
अपने आप से कहती हूं
'होली आई, होली आई'।