होलिका-दहन मंत्र और पूजन विधि

पं. अशोक पँवार 'मयंक'

* जानिए होलिका-दहन मंत्र और पूजन विधि

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रविवार, 16 मार्च 2014 के दिन होलिका-दहन किया जाएगा। प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भद्रारहित काल में होलिका-दहन किया जाता है। 16 मार्च 2014 को भद्रा काल की समाप्ति पश्चात होलिका-दहन किया जा सकता है इसलिए होलिका-दहन से पूर्व और भद्रा के पश्चात होली का पूजन किया जाना चाहिए।

भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभ फलदायक सिद्ध होता है। पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि में मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है।

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होलिका में आहुति देने वाली सामग्रिया ं

होलिका-दहन होने के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उसमें नारियल, सप्तधान्य, गोबर के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग है। सप्त धान्य, गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर।

आगे पढ़ें होलिका-दहन की पूजा विध ि


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होलिका-दहन की पूजा विध ि

होलिका-दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है। इस पूजा को करते समय पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। पूजा करने के लिए निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए।

एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त नई फसल के धान्यों, जैसे पके चने की बालियां व गेहूं की बालियां भी सामग्री के रूप में रखी जाती हैं। इसके बाद होलिका के पास गोबर से बने खिलौने रख दिए जाते हैं।

होलिका-दहन मुहूर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड़ आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए। गोबर से बनाए खिलौनों की 4 मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती हैं। इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमानजी के नाम की, तीसरी शीतलामाता के नाम की तथा चौथी अपने घर-परिवार के नाम की होती है।

कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर 3 या 7 परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है। फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है। रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है। गंध-पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है। पूजन के बाद जल से अर्घ्य दिया जाता है।

सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्वलित कर दी जाती है। इसके बाद सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर घर में बनाई गई होली में अग्नि प्रज्वलित की जाती है। अंत में सभी पुरुष रोली का टीका लगाते हैं तथा महिलाएं भजन व गीत गाती हैं तथा बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है।

होली में सेंककर लाए गए धान्यों को खाने से निरोगी रहने की मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रातः घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है तथा इस राख का शरीर पर लेपन करने की भी प्रथा है।

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राख का लेपन करते समय निम्न मंत्र का जाप करना कल्याणकारी रहता है-

' वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्मणा शंकरेण च। इतस्त्वं पाहि मां देवी! भूति भूतिप्रदा भव’।

होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-

अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्

इस मंत्र का उच्चारण कम से कम 5 माला के रूप में करना चाहिए।


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