एक ओर आज हम ग्लोबल वार्मिंग जैसी भयानक स्थिति से निपटने के प्रयास ढूंढ रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर हम इसकी परवाह किए बगैर लगातार पेड़ों की कटाई करते हुए जंगल के जंगल तबाह कर रहे हैं। कुछ दिनों बाद होली का त्योहार है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार होली खेलने के एक दिन पूर्व हम होली जलाते हैं और उसमें लकड़ियों का प्रयोग करते हैं। इससे पर्यावरण तो दूषित होता ही है, साथ ही कई क्विंटल लकड़ी जलकर स्वाहा हो जाती है और न जाने इस दिन कितने पेड़ों की बलि चढ़ जाती है।
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हिंदू धर्म में लकड़ी को जलाना पाप माना गया है। आज जिस प्रकार धीरे-धीरे जंगल खत्म हो रहे हैं, यह चिंता का विषय है। आने वाली पीढ़ी को इसके बारे में गहन चिंतन करते हुए प्रतीकात्मक होली जलाकर देश प्रेम का परिचय देना चाहिए।
होलिका दहन के लिए किसी भी कीमत पर लकड़ी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। लोगों को चाहिए कि वह कंडे या घर में पड़ी बेकार लकड़ी से होली जलाएं।
होली हिंदुओं का त्योहार है। इसमें हर रीति-रिवाज को पूरा करना एक मान्यता है, इसलिए होलिका का सिर्फ प्रतीकात्मक दहन करते हुए पुरानी डलिया, घास व कंडे का प्रयोग करें। संभव हो तो बड़ी होली न जलाते हुए छोटी जलाएं।
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होली सौहार्दपूर्ण वातावरण में वैकल्पिक रूप से जलाना चाहिए। लकड़ी से प्रदूषण अधिक होता है, इसलिए कंडे का प्रयोग करना चाहिए। इससे गंदगी भी कम होगी, पेड़ बचेंगे और पर्यावरण प्रदूषित नहीं होगा।
गांवों-शहरों में अनेक जगह होलिका दहन किया जाता है। इसके बजाय अगर शहर के किसी मुख्य चौराहे पर एक या दो स्थान पर होलिका दहन किया जाए तो न जाने कितना प्रदूषण होने से बचेगा व लकड़ी बचेगी। यह एकता का भी प्रतीक होगा।
पर्यावरण को बचाना हर एक नागरिक का कर्तव्य है। इसमें फिर भी कोई पेड़ की कटाई कर होलिका दहन करता है तो वह संसार के साथ गद्दारी कर रहा है। हमें खराब आइटम से होलिका दहन कर पर्यावरण को बचाना चाहिए।
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वैसे ही हरियाली का अभाव हो रहा है। ऐसे में अगर हम होलिका दहन के लिए लकड़ी काटते हैं तो आने वाले समय में हम हरियाली देखने को तरस जाएंगे। लोगों को इसके बारे में गहन चिंतन की आवश्यकता है।
हमारे धार्मिक ग्रंथ कहते हैं कि तीज-त्योहार जरूर मनाएं, लेकिन ऐसे जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान न हो। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि प्रतीकात्मक होली जलाए और साथ ही सूखी होली खेलें। इससे आप पर्यावरण मित्र कहलाएंगे।