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नोटा- विकल्प चुनने में भी आगे

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कमलेश सेन

चुनाव में यह भी जरूरी नहीं है कि सभी दलों द्वारा मैदान में खड़े उम्मीदवार मतदाता की पसंद के हों। अलग-अलग विचारधाराओं और सोच के उम्मीदवार मतदाता की कसौटी पर खरे उतरें। चूंकि मतदाताओं की अपेक्षाएं बढ़ गई हैं, अत: मत देना और उम्मीदवार का चयन करना मतदाता की इच्छा पर निर्भर रहता है।
 
चुनाव आयोग से मतदान अनिवार्य करने की मांग तो समय-समय पर की जाती रही है, पर भारत जैसे विशाल देश में जिसकी पृष्ठभूमि सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक हो, वहां यह संभव नहीं है। आखिर पार्टियां उम्मीदवार अपनी पसंद के चयन करती हैं तो मतदाता को भी अपनी पसंद के व्यक्ति के चयन का अधिकार होना चाहिए। कोई जरूरी नहीं है कि सभी मैदान में खड़े उम्मीदार पसंद के हों।
 
देश में चुनाव संपन्न करवाने वाली संस्था निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में नोटा विकल्प के प्रावधान के निर्देश दिए थे। 'नोटा' का अर्थ होता है कि 'इनमें से कोई भी नहीं'। मतदता को यह विकल्प दिया गया कि वह किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं करता है। वह वोट तो देना चाहता है, पर किसी भी दल को नहीं। इस तरह 2013 से नोटा का विकल्प मतदाताओं को प्राप्त हुआ है।
 
जब विधानसभा और लोकसभा में यह विकल्प प्राप्त हुआ है तो जाहिर है कि स्थानीय निकायों के चुनाव में नोटा का विकल्प मिलना ही था। इंदौर नगर निगम चुनाव 2015 में नोटा का विकल्प वोटिंग मशीन में उपलब्ध करवाया गया। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का उपयोग भी पहली बार 2015 के स्थानीय निकाय चुनाव में हुआ था।
 
2015 में प्रदेश में संपन्न नगर निगम चुनावों में सर्वाधिक नोटा विकल्प का प्रयोग इंदौर के मतदाताओं ने किया था। इंदौर में नोटा के पक्ष में 14,541 वोट दिए, वहीं जबलपुर में 6,948, भोपाल में 5,095 एवं छिंदवाड़ा में 1,299 मतदाताओं ने इसका प्रयोग किया। जाहिर है इंदौर में नोटा का विकल्प प्रदेश में महापौर के पद के लिए सर्वाधिक था।
 
इंदौर के मतदाता महापौर के पद में नोटा के विकल्प में आगे थे तो वार्डों में पार्षदों के चयन में भी नोटा के विकल्प को चुनने में आगे रहे थे। पिछले निकाय चुनाव में वार्ड क्रमांक 82, जहां भाजपा और कांग्रेस के 2 ही उम्मीदवार मैदान में थे, उस वार्ड में नगर के 85 वार्डों में से सर्वाधिक 519 मतदाताओं ने नोटा विकल्प को चुना था, वहीं वार्ड क्रमांक 81 में 395 मतदाताओं ने इस विकल्प को चुना था, जो 85 वार्डों में सर्वाधिक दूसरे स्थान पर था।
 
महापौर पद के लिए डाले गए कुल मतों में से नोटा का विकल्प चुनने वाले 1.42 हजार यानी करीब डेढ़ प्रतिशत मतदाताओं ने इस विकल्प चुना था। अब 2022 में इसी जुलाई माह में होने वाले प्रदेश के स्थानीय निकायों के चुनाव में नगर के कितने मतदाता नोटा का विकल्प चुनने का प्रयास करेंगे या पिछले निगम चुनावों जैसे प्रदेश में पुनः अव्वल रहने का? यह बात तो चुनाव के परिणाम ही बताएंगे।

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