Jerusalem history in hindi: यरूशलेम की गणना दुनिया के प्राचीन शहरों में की जाती है। यहां पर यहूदी, ईसाई और मुसलमों के पवित्र टेंपल है। यही कारण है कि तीनों ही धर्म के लोग इस शहर पर अपना कब्जा चाहते हैं। यहां पर यहूदियों की पवित्र दीवार, ईसाइयों का चर्च ऑफ द होली स्कल्प्चर और मुसलमानों की अल अक्सा मस्जिद है। यरुशलम को इब्रानी में येरुशलयिम और अरबी में अल-कुद्स कहा जाता है। इसे जेरूसलम भी कहते हैं। अब जानते हैं कि इन तीनों धर्म में से किसका अधिकार है यरूशलेम पर।
इसराइल के 4 प्रमुख क्षेत्र हैं- तेल अवीव, यरुशलेम, हैफा और बीयर शेव। यरुशलेम इसराइल का सबसे बड़ा शहर है। इसे इसराइल की राजधानी बनाए जाने का विवाद चल रहा है। वर्तमान में इसराइल की राजधानी तेल अवीव है। यरुशलम के पास से जॉर्डन सीमा प्रारंभ होती है। इसराइल के तेल अवीव की सीमा भी इससे लगी हुई है। वर्तमान में फिलिस्तीन इस शहर को अपनी राजधानी बनाना चाहता है। फिलिस्तीन और इजरायल के बीच गाजा पट्टी, रामल्लाह और यरूशलेम विवाद का केंद्र है। गाजा पट्टी और रामल्लाह, वेस्ट बैंक और फिलीस्तीनी के अन्य क्षेत्रों में मुस्लिम लोग रहते हैं। ये लोग यरुशलम को इसराइल के कब्जे से मुक्त कराना चाहते हैं।
इतिहास के अनुसार यहां पर सबसे पहले यहूदियों की बसाहटह हुई थी।
यहूदी मान्यता के अनुसार यहां पर ही यहोवा (ईश्वर) ने मिट्टी रखी थी जिससे आदम का जन्म हुआ था।
पैगंबर नूह के पुत्र शेम के वंशज पैगंबर अब्राहम का जन्म इराक के ऊर शहर में हुआ था।
हजरत अब्राहम हारान शहर से निकलकर कनान पहुंचे और वहां से उनके दो बेटे के वंशज मिस्र पहुंच गए।
मिस्र में ही हजरत मूसा हुए जो यहूदियों के अंतिम व्यवस्थाकार माने जाते हैं।
जब यहूदियों को मिस्र से बेदखल किया गया तो हजरत मूसा के नेतृत्व में सभी यहूदी अपनी पुरानी भूमि यरुशलेम में एकत्रित हो गए।
शुरुआत से ही यहूदियों के प्राचीन राज्य इसराइल में यहूदियों के 10 कबीले रहा करते थे।
हजरत मूसा ईजिप्ट से जाकर अपने कबीलों के साथ यरुशलम में बस गए थे, क्योंकि यही उनका प्राचीन शहर था। यहूदियों के पवित्र राजा दाऊद और सुलेमान के बाद इस स्थान पर बाद में बेबीलोनियों तथा ईरानियों का कब्जा रहा।
ईसाई धर्म के उदय के बाद यहां पर कुछ समय तक ईसाइयों की सत्ता रही।
इसके बाद इस्लाम के उदय के बाद बहुत काल तक मुसलमानों ने यहां पर राज्य किया।
इस दौरान यहूदियों को इस क्षेत्र से कई दफे खदेड़ दिया गया, लेकिन वे पुन: आकर बस गए।
शुरुआत में उसका नाम लैंड ऑफ इजरायल रखा गया था। 1948 में इजरायल की दावेदारी का आधार यही लैंड ऑफ इजरायल बना।
ईसाई और ईस्लाम धर्म के उदय के बाद यरुशलेम 1948 तक कभी भी यहूदी शासन नहीं कर पाए।
यरुशलेम के लिए हुए युद्ध का इतिहास:
क्रूसेड : क्रूसेड अथवा क्रूस युद्ध। क्रूस युद्ध अर्थात ख्रिस्त धर्म की रक्षा के लिए युद्ध। ख्रिस्त धर्म अर्थात ईसाई या क्रिश्चियन धर्म के लिए युद्ध। अधिकतर लोग इसका इसी तरह अर्थ निकालते हैं लेकिन सच क्या है यह शोध का विषय हो सकता है। जेहाद और क्रूसेड के दौर में सलाउद्दीन और रिचर्ड ने इस शहर पर कब्जे के लिए बहुत सारी लड़ाइयां लड़ीं। ईसाई तीर्थयात्रियों की रक्षा के लिए इसी दौरान नाइट टेम्पलर्स का गठन भी किया गया था।
ईसाइयों ने ईसाई धर्म की पवित्र भूमि फिलिस्तीन और उसकी राजधानी यरुशलम में स्थित ईसा की समाधि पर अधिकार करने के लिए 1095 और 1291 के बीच सात बार जो युद्ध किए उसे क्रूसेड कहा जाता है। इसे इतिहास में सलीबी युद्ध भी कहते हैं। यह युद्ध सात बार हुआ था इसलिए इसे सात क्रूश युद्ध भी कहते हैं। उस काल में इस भूमि पर इस्लाम की सेना ने अपना आधिपत्य जमा रखा था।
पहला क्रूसेड : अगर 1096-99 में ईसाई फौज यरुशलम को तबाह कर ईसाई साम्राज्य की स्थापना नहीं करती तो शायद इसे प्रथम धर्मयुद्ध (क्रूसेड) नहीं कहा जाता। जबकि यरुशलम में मुसलमान और यहूदी अपने-अपने इलाकों में रहते थे। इस कत्लेआम ने मुसलमानों को सोचने पर मजबूर कर दिया। जैंगी के नेतृत्व में मुसलमान दमिश्क में एकजुट हुए और पहली दफा अरबी भाषा के शब्द 'जिहाद' का इस्तेमाल किया गया। जबकि उस दौर में इसका अर्थ संघर्ष हुआ करता था। इस्लाम के लिए संघर्ष नहीं, लेकिन इस शब्द को इस्लाम के लिए संघर्ष बना दिया गया।
दूसरा क्रूसेड : 1144 में दूसरा धर्मयुद्ध फ्रांस के राजा लुई और जैंगी के गुलाम नूरुद्दीन के बीच हुआ। इसमें ईसाइयों को पराजय का सामना करना पड़ा। 1191 में तीसरे धर्मयुद्ध की कमान उस काल के पोप ने इंग्लैड के राजा रिचर्ड प्रथम को सौंप दी जबकि यरुशलम पर सलाउद्दीन ने कब्जा कर रखा था। इस युद्ध में भी ईसाइयों को बुरे दिन देखना पड़े। इन युद्धों ने जहां यहूदियों को दर-बदर कर दिया, वहीं ईसाइयों के लिए भी कोई जगह नहीं छोड़ी।
लेकिन इस जंग में एक बात की समानता हमेशा बनी रही कि यहूदियों को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए अपने देश को छोड़कर लगातार दरबदर रहना पड़ा जबकि उनका साथ देने के लिए कोई दूसरा नहीं था। वह या तो मुस्लिम शासन के अंतर्गत रहते या ईसाइयों के शासन में रह रहे थे।
इसके बाद 11वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुई यरुशलम सहित अन्य इलाकों पर कब्जे के लिए लड़ाई 200 साल तक चलती रही, जबकि इसराइल और अरब के तमाम मुल्कों में ईसाई, यहूदी और मुसलमान अपने-अपने इलाकों और धार्मिक वर्चस्व के लिए जंग करते रहे।
17वीं सदी की शुरुआत में विश्व के उन बड़े मुल्कों से इस्लामिक शासन का अंत शुरू हुआ जहां पर इस्लाम नहीं था। अंग्रेजों का वह काल जब मुसलमानों से सत्ता छीनी जा रही थी। ब्रिटेन ने लगभग आधी से धरती पर अपने शासन को स्थापित कर दिया था। भारत से लेकर फिलिस्तीन तब कई क्षेत्रों में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत लोग रहते थे।
बहुत काल तक दुनिया चार भागों में बंटी रही, इस्लामिक शासन, चीनी शासन, ब्रिटेनी शासन और अन्य। फिर 19वीं सदी कई मुल्कों के लिए नए सवेरे की तरह शुरू हुई। कम्यूनिस्ट आंदोलन, आजादी के आंदोलन चले और सांस्कृतिक संघर्ष बढ़ा। इसके चलते ही 1939 द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ जिसके अंत ने दुनिया के कई मुल्कों को तोड़ दिया तो कई नए मुल्कों का जन्म हुआ। इसी दौर में ही फिलिस्तीन सहित दुनियाभर के यहूदियों ने भी अपने लिए एक अलग देश की मांग और उन्हें 1948 में उनकी भूमि का कुछ हिस्सा उन्हें लौटा दिया गया। लेकिन यरुशलेम पर संयुक्त राष्ट्र का कंट्रोल था। बाद में इस पर इजरायल ने कंट्रोल कर लिया।
द्वितीय विश्व युद्ध में यहूदियों को अपनी खोई हुई भूमि इसराइल वापस मिली। यहां दुनिया भर से यहूदी फिर से इकट्ठे होने लगे। इसके बाद उन्होंने मुसलमानों को वहां से खदेड़ना शुरू किया जिसके विरोध में फिलिस्तीन इलाके में यासेर अराफात का उदय हुआ। फिर से एक नई जंग की शुरुआत हुई जो अब तक चल रही है।