नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म 15 अगस्त 1769 में फ्रांस के अजैक्यिो शहर में हुआ था। यह शहर कोर्सिका द्वीप पर है। नेपोलियन के चार भाई और तीन बहनें थीं। एक अमीर परिवार में पैदा होने के कारण नेपोलियन को बचपन में अच्छी शिक्षा मिली। उन्हें एक सैनिक अफसर बनने के लिए फ्रांस की सैन्य अकादमी में भर्ती किया गया। सैनिक स्कूल में शिक्षा के बाद उसने 1784 में तोपखाने से संबंधित विषयों का अध्ययन करने के लिए पेरिस के एक कॉलेज में प्रवेश लिया।
उसकी प्रतिभा को देखकर फ्रांस के राजकीय तोपखाने में उसे सबलेफ्टिनेन्ट की नौकरी मिल गयी थी। उसे ढाई सिलिंग का प्रतिदिन का वेतन मिला करता था, जिससे वह अपने 7 भाई-बहिनों का पालन-पोषण करता था। उसके व्यक्तिगत गुण और साहस को देखकर फ्रांस के तत्कालीन प्रभावशाली नेताओं से उसका परिचय प्रगाढ़ होता चला गया। अब उसे आन्तरिक सेना का सेनापति भी नियुक्त किया गया।
इसी बीच 9 मार्च 1796 को जोसेफाइन से उसका विवाह हो गया। नेपोलियन ने अपनी प्रथम पत्नी 'जोसेफिन' के निस्संतान रहने पर ऑस्ट्रिया के सम्राट की पुत्री 'मैरी लुईस' से दूसरा विवाह किया, जिससे उसे संतान प्राप्त हुई थी और पिता बन सका।
युद्ध : नेपोलियन ने अपने युद्ध-कौशल से फ्रांस को विदेशी शत्रुओं से मुक्ति दिलाई। अपने अदम्य साहस और वीरता के कारण वह 27 वर्ष की अवस्था में फ्रेंच आर्मी ऑफ इटली का सेनापति बनकर सार्डिनिया पर विजय प्राप्त करने हेतु गया। अपने युद्ध-कौशल से उसने सार्डिनिया को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया और सार्डिनिया का बहुत-सा जीता हुआ क्षेत्र फ्रांस को सौंप दिया। नेपोलियन का अगला विजय अभियान ऑस्ट्रिया पर आक्रमण करके वहां के सम्राट केंपोफोरमियो को सन्धि की अपमानजनक शर्तों को स्वीकार करने हेतु बाध्य करना था। इसके बाद नेपोलियन ने टोलेंन्टिन्ड की सन्धि पर पोप के हस्ताक्षर करवाकर फ्रांस की अधीनता स्वीकारने पर मजबूर कर दिया।
इसके बाद फ्रांस ने नेपोलियन को इंग्लैण्ड पर आधिपत्य करने हेतु भेजा, किन्तु इंग्लिश चैनल की बाधा ने नेपोलियन को पराजय का मुंह दिखाया। नेपोलियन ने मिश्र को विजित करके पूर्वी एशिया में स्थित ब्रिटिश उपनिवेशों को भी अपने अधीनस्थ करने का निश्चय कर 1798 में 35 हजार प्रशिक्षित सैनिकों के साथ कूच कर दिया। उसने रास्ते में माल्टा, पिरामिड, सिंकदरिया, नील नदी की सम्पूर्ण घाटी पर कब्जा कर लिया। अब वह भारत की ओर बढ़ रहा था लेकिन ब्रिटिश नौसेना की शक्ति के आगे नेपोलियन परास्त हो गया।
खुद बन बैठा राष्ट्र प्रमुख :
बाद में फ्रांस की भूमि पर लौटने पर उसने अपनी राजनीतिक कुशलता से नवीन कन्सुलेट सरकार की स्थापना कर स्वयं को वहां का शासक घोषित कर दिया। फ्रांसीसी जनता ने 15 दिसम्बर 1799 को उसे अपना सम्राट स्वीकार कर लिया। 25 दिसम्बर 1799 को उसने देश का नवीन संविधान लागू कर दिया। 1804 को सीनेट ने अपने प्रस्ताव में नेपोलियन को फ्रांस के सम्राट के रूप में स्वीकृति दे दी।
शासक बनते ही नेपोलियन ने देश की अर्थ व्यवस्था, शिक्षा़ प्रशासनिक, सैन्य और न्याय प्रणाली में आमूल सुधार किए। धार्मिक स्थिति में सुधार हेतु सर्वप्रथम नेपोलियन ने पादरियों के भ्रष्ट व अनैतिक चरित्र को सुधारने, चर्च के विशेषाधिकार को समाप्त करने, अंधविश्वास की आड़ में जनता को मूर्ख बनाकर लूटने वाले पादरियों की तथा चर्च की संपत्तियों को जप्त करने के लिए नवीन संविधान लागू किया।
माना जाता है कि 1814 तक नेपोलियन ने सम्राट के पद पर रहते हुए कई महत्त्वपूर्ण सुधार कार्य किए। लेकिन लिपिजिंग के युद्ध के पश्चात् उसे फ्रांस के सम्राट का पद त्यागकर देश निकाला मिलने पर एल्बा द्वीप में रहना पड़ा। वहां से भागकर आने पर देशवासियों ने उसे पुन: सम्राट के रूप में स्वीकार किया था।
मृत्यु : 1815 में मित्र-राष्ट्रों की मिली-जुली सेना से वाटरलू के युद्ध में उसे घोर पराजय का सामना करते हुए इंग्लैण्ड के समक्ष आत्मसमर्पण करना पड़ा, जिसके फलस्वरूप उसे सेंटहेलेना द्वीप में भेज दिया गया। 6 वर्षों का यातनामय जीवन बिताते हुए नेपोलियन ने मृत्यु से पहले अपनी वसीयत में यह लिखा था कि- 'मुझे सोन नदी के तट पर फ्रांस की जनता के बीच दफनाया जाये, जिससे कि मैं बहुत अधिक प्रेम करता हूं।'
हालांकि नेपोलियन बोनापार्ट की मौत को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। अधिकांश मानते हैं कि उसकी मौत पेट के कैंसर की वजह से हुई थी। हालांकि कुछ मानते हैं कि 'वॉटरलू की लड़ाई' में हार जाने के बाद नेपोलियन को 1821 में 'सेन्ट हैलेना द्वीप' निर्वासित कर दिया गया था, जहाँ 52 साल की उम्र में उसकी मृत्यु हो गई।
लेकिन सन 2001 में फ्रांसीसी विशेषज्ञों ने नेपोलियन के बाल का परीक्षण करके पाया कि उसमें 'आर्सनिक' नामक जहर था। यह माना जाता है कि संभवत सेन्ट हैलेना के तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर ने फ्रांस के काउंट के साथ मिलकर नेपोलियन की हत्या की साजिश रची थी। लेकिन अमेरिकी वैज्ञानिकों के अनुसार नेपोलियन की बीमारी का जो उपचार किया गया था, उसी ने उसे मार दिया।