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'इंदौर मदरसा' बना महाराजा शिवाजीराव हाईस्कूल

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अपना इंदौर

'इंदौर मदरसा' 'इंदौर मदरसा' सेंट्रल इंडिया में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनता जा रहा था। छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए इसका संबद्धीकरण मैट्रिक परीक्षा हेतु कलकत्ता विश्वविद्यालय व बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से करवाया गया।
 
1870 में ही इस मदरसे में एक व्यायाम शिक्षक की नियुक्ति पर छात्रों को खेलकूद के प्रति आ‍कर्षित किया गया। प्राकृतिक सौंदर्य व वृक्षारोपण के लिए छात्रों को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाता था। विद्यालय में ही एक उद्यान लगाकर छात्रों को उसमें पौधे लगाने व उनकी देखभाल के लिए प्रेरित किया गया।
 
1886-87 में इस विद्यालय में प्राकृतिक विज्ञान विभाग खोला गया और उसके लिए आवश्यक सामग्री क्रय करने हेतु राज्य की ओर से विशेष अनुदान दिया गया। 1894 में इस मदरसे को इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने 'इटरमीडिएट' परीक्षा के केंद्र के रूप में स्वीकृति प्रदान कर दी। प्रारंभ में ये परीक्षाएं डेली कॉलेज में हुईं तत्पश्चात् इनका संचालन केनेडियन मिशन महाविद्यालय (इंदौर क्रिश्चियन कॉलेज) के प्राचार्य की देखरेख में होने लगा।
 
1911 ई. तक इस विद्यालय की छात्र संख्या में काफी वृद्धि हो चुकी थी। विद्यार्थियों के खेलकूद के लिए चिमनबाग मैदान को विद्यालय के अधिकार में लेकर उसका विकास किया गया। विद्यालय के छात्रावास (जहां अब शिक्षा विभाग का ऑफिस है) के समीप ही नई व्यायामशाला भी बनाई गई। 1911 में इस विद्यालय में 761 विद्यार्थी पढ़ रहे थे। इतनी संख्या को पुराने भवन में समायोजित करना कठिन हो रहा था। 1912 में अनाथालय भवन को भी विद्यालय ने ले लिया और वहां हिन्दी कक्षाएं लगाई गईं। लेकिन इस परिवर्तन से भी व्यवस्था में कोई सुधार नहीं आया।
 
चिमनबाग मैदान के दक्षिणी छोर पर तब एक बड़े विद्यालय भवन का निर्माण किया गया। अगस्त 1918 ई. में इस नवीन भवन का उद्घाटन लॉर्ड चेम्सफोर्ड के द्वारा किया गया। उसी समय से 'इंदौर मदरसे' का नाम बदलकर महाराजा शिवाजीराव हाईस्कूल कर दिया गया।

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