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पंचक्रोशी यात्रा का इतिहास, नियम और मार्ग

हमें फॉलो करें पंचक्रोशी यात्रा का इतिहास, नियम और मार्ग
, गुरुवार, 20 अप्रैल 2023 (17:50 IST)
Panchkroshi Yatra Ujjain : देश की हर पवित्र नदी की पंचकोशी यात्रा का आयोजन सैंकड़ों सालों होता रहा है। मध्यप्रदेश में मां शिप्रा और नर्मदा मैया की परिक्रमा का प्रचलन है। प्रत्येक माह होने वाली पंचक्रोशी यात्रा की तिथि कैलेंडर में दी हुई होती है। शिप्रा या क्षिप्रा नदी की पंचकोसी यात्रा भी विशेष अवसरों पर आयोजित होती है। आओ जानते हैं इसका इतिहास, नियम और यात्रा का मार्ग।
 
क्षिप्रा पंचक्रोसी यात्रा का इतिहास :- ऐसा कहा जाता है कि यह यात्रा अनादिकाल से चली आ रही है। जब से महाकाल इस नगरी में विराजमान हुए हैं तभी से क्षिप्रा और महाकाल की परिक्रमा का प्रचलन है।
 
1. पंचकोसी यात्रा क्या है : पंचकोसी यात्रा नर्मदा परिक्रमा के कई रूप है जैसे लघु पंचकोसी यात्रा, पंचकोसी, अर्ध परिक्रमा और पूर्ण परिक्रमा। पंचकोशी यात्रा में सभी ज्ञात-अज्ञात देवताओं की प्रदक्षिणा का पुण्य इस पवित्र मास में मिलता है। यात्रा हर साल वैशाख पर 5 दिन के लिए होती है। अमावस्या पर इसका समापन होता है।
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2. पंचकोसी यात्रा मार्ग :-
  1. 118 किलोमीटर की यह यात्रा कुछ लोग रुद्रा सागर से प्रारंभ करते हैं।
  2. यात्रा पहला पड़ाव पिंग्लेश्वर मंदिर।
  3. दूसरा पड़ाव करोहन में कायावरोहणेश्वर मंदिर।
  4. तीसरा उप पड़ाव नलवा।
  5. चौथा पड़ाव अम्बोदिया में बिल्वकेश्वर मंदिर।
  6. पांचवां उप पड़वा कालियादेह।
  7. छठा दुर्देश्वर मंदिर।
  8. सातवां पिंग्लेश्वर।
  9. आठवां उंडासा उपपड़ाव के बाद अंत में क्षिप्रा घाट कर्क राज मंदिर पर समापन। 
 
  • कुल पांच मुख्य पड़ाव है बाकि उप पड़वा है। कहते हैं इस दौरान 33 करोड़ देवी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। यात्रा के दौरान पड़ावों और उपपड़ावों पर श्रद्धालुओं के लिए भोजन और चाय-नाश्ते की व्यवस्था भी की जाती है।
 
  • चौकोर आकार में बसे उज्जैन के मध्य में श्री महाकालेश्वर विराजमान हैं। 
  • इस सेंटर के अलग-अलग दिशा में शिव मंदिर स्थित हैं, जो द्वारपाल कहलाते हैं। 
  • इनमें पूर्व में पिंगलेश्वर, पश्चिम में बिल्वकेश्वर, दक्षिण में कायावरोहणेश्वर, उत्तर दिशा में दुर्देश्वर और नीलकंठेश्वर महादेव स्थित हैं।
  • इन पांचों मंदिरों की दूरी करीब 118 किलोमीटर है। यात्रा के दौरान इन्हीं पांचों शिव मंदिरों की परिक्रमा कर क्षिप्रा नदी में स्नान करते हैं।
 
पंचक्रोशी यात्री हमेशा ही निर्धारित तिथि और दिनांक से पहले यात्रा पर निकल पड़ते हैं। ज्योतिषाचार्यों का मत है कि तय तिथि और दिनांक से यात्रा प्रारंभ करने पर ही पंचक्रोशी यात्रा का पुण्य लाभ मिलता है। यात्रा का पुण्य मुहूर्त के अनुसार तीर्थ स्थलों पर की गई पूजा-अर्चना से मिलता है। इसे ध्यान में रखते हुए सभी यात्रियों को पुण्य मुहूर्त के अनुसार यात्रा प्रारंभ करनी चाहिए। इससे पुण्य फल की प्राप्ति होगी।
 
बताया जाता है कि अब तक यात्रा में 2.5 लाख श्रद्धालु जुड़ चुके हैं। यात्रा का पहला पड़ाव पिंग्लेश्वर महादेव मंदिर था। उज्जैन की नागनाथ की गली पटनी बाजार स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर से बल और जल लेकर यात्री 118 किलोमीटर की पंचक्रोशी यात्रा करते हैं। इस बार पंचक्रोशी यात्रा सिंहस्थ के बीच आने से इसका महत्व कई गुना बढ़ गया है।

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