...और लघुकथा जीत गई... !

प्रज्ञा पाठक
एक दिन लंबी कथा ने अपने वर्चस्व के एकाधिकार पर लघुकथा का खासा डाका पड़ते देख उसे 'कौन श्रेष्ठ' की प्रतिस्पर्धा का आमंत्रण दे डाला। लंबी कथा ने अपने स्वभावानुसार ही लंबा-चौड़ा आत्मपरिचय देते हुए स्वयं की महत्ता का विस्तृत वर्णन किया।उसने स्वयं के द्वारा विषय का सांगोपांग स्पष्टीकरण हो जाने का तर्क देते हुए अपने विराट अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करने का प्रयास किया।
 
जब वह बोलते-बोलते थक गई और थककर चुप हो गई,तब लघुकथा ने आत्मपरिचयार्थ मात्र तीन शब्द-'गागर में सागर' तथा स्वयं की महत्ता के विषय में महज चार शब्द-'वामन के तीन पग' कहे और वह प्रतिस्पर्धा जीत गई।

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