कलाकार के रूप में आप अपने को कहाँ रखते हैं? - मैं इस तरह से सोचता ही नहीं। पेंटिंग में अपनी खुशी के लिए बनाता हूँ। कोई पसंद कर लेता है तो उसका शुक्रिया। मेरी पेंटिंग मेरे घर के कमरों की दीवारों पर हैं। अमृता के जाने के बाद, कमरे से सारा सामान हटा दिया गया है। बस पेंटिंग लगा दी गई हैं। इसमें मेरे दिल को खुशी मिलती है। अमृता के जाने के बाद मैंने नज्में लिखीं। 2002 में अमृता ने लिखना बंद कर दिया था। उसके बाद अमरजीत (अनुवादक) ने कहा कि वह एक पुस्तक का संपादन कर रही हैं। उसके लिए कविता लिखूँ। मैंने कविताएँ लिखीं भी। मेरी ही नज्म किताब के बाहर कवर पर है।
* श्रद्धांजलि देने आए लोगों ने साहित्य अकादमी में क्या कुछ कहा? - फुट्टा लेकर आए थे अमृता जी को नापने के लिए। एक सज्जन तो पका रहे थे अमृता का इंटरव्यू लिया था। कब लिया? पता नहीं। घर पर तो कभी आए ही नहीं थे। फिर इस तरह की असेसमेंट किसलिए। हमारे यहाँ सभी को जजमेंट देने की जल्दी रहती है। आदत सी है लोगों की। बंबई से राजेंद्र बेदी कहने लगे मैं शक्ल देखकर बता देता हूँ कि यह इंसान कैसा है। उनकी बेटी का तलाक हो चुका था। अमृता जी ने कहा, क्यों आपने अपने जँवाई की शक्ल नहीं देखी थी क्या। अपनी एक फिल्म के लिए - दलित के रोल के लिए एक लड़की को लाए थे।
उनसे उन्हें इश्क हो गया। एक फ्लैट लेकर उसके साथ रहने लगे। लड़की को लगा कि अब वह उसे शादी के लिए कहेंगे। बहाना बनाकर अपने घर गई और वहाँ उसने शादी कर ली। आप किसी का इस्तेमाल तो कर सकते हैं, जब तक दूसरा चाहे पर रिश्ता तो नहीं बना सकते।
* जीविका के लिए आप क्या करते हैं? किताबों के कवर बनाता हूँ। पेंटिंग मैंने कभी नहीं बेची। न ही उनकी प्रदर्शनी लगाई। मेरी ज्यादा जरूरतें भी नहीं हैं। कपड़े भी तीन-चार साल बाद जरूरत हो तो सिलवाता हूँ। किताबों के कवर बनाने के लिए कभी न तो काम माँगने और न ही पेमेंट लेने प्रकाशक के पास गया। प्रकाशन ने मेरा कवर रिजेक्ट नहीं किया। न ही कभी दूसरा बनाकर दिया। अगर प्रकाशक चाहता है कि दूसरा बनाऊँ तो पैसा भी दे। मैं पूछ भी लेता हूँ। कवर पसंद नहीं आया तो क्यों?
* इमरोज जी, आप इंसान से ज्यादा एक कल्पना, एक रूपक लगते हैं जिसकी इच्छा हर औरत रचनाकार अपने भीतर रखती है। - मैंने अमृता को लेखिका के रूप में नहीं एक सीधी-सादी अच्छी इंसान के रूप में चाहा। अमृता बोलती भी अधिक नहीं थी। हमने कभी एक-दूसरे से यह भी नहीं कहा कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ या करती हूँ। व्यवहार से ही पता चलता था कि हम प्यार करते हैं। मैंने तो कभी उसकी शक्ल की तरफ भी ध्यान नहीं दिया। वह एक खूबसूरत इंसान थीं यही जाना था।
मेरा कभी किसी ने जन्मदिन नहीं मनाया था। घर में बड़ा लड़का था, माँ गुड़ बाँट देती होगी। वेस्ट पटेल नगर में हमारा घर आसपास ही था। मिलने आता था अमृता से। दूसरी, तीसरी मुलाकात थी। अमृता को पता चला मेरा जन्मदिन है। वह केक लेकर आई और मेरा जन्मदिन मनाया। अमृता ने मेरा जन्मदिन मनाया और मेरे साथ जिंदगी भी मनाई।
सन् 58 की बात है। बच्चों को स्कूल से लाता था। अमृता को भी छोड़कर आता था। बच्चे शुरू से हमारे साथ रहे। लड़का भी अब हमारे साथ नीचे वाले हिस्से में रहता था। असल में मैं 'वन ट्रैक माइंड' वाला इंसान हूँ। बस अमृता ही नजर आती थी मुझको। अमृता उम्र में मुझसे सात साल बड़ी थी। रचनाकार को स्पेस और अपना समय चाहिए होता है। हमारे अलग-अलग कमरे थे। हम अपने-अपने कमरों में ही सोते थे। हाँ बाद में जब अमृता बीमार थी उनका ध्यान रखने के लिए एक कमरे में सोते थे।
* उनके जाने के बाद आप अकेले हो गए होंगे? - नहीं, बहू बेटा हैं। मैं सबका ध्यान रखता हूँ। सब मेरा ध्यान रखते हैं। मैं अकेला नहीं हूँ। कमरा वैसा ही है। अमृता का आसपास भी वही है बस उसका शरीर नहीं है। जब वह थी तो भी हम दोपहर को ही मिलते और सब बैठते थे। दोनों मिलकर खाना भी साथ बनाते थे। कभी अमृता आवाज देती, अगर वह लिख रही होती, तो खाना मैं ही बनाता। मैं उदास नहीं होता। उदास होना मेरी आदत ही नहीं।
मेरी आँखों में आँसू तब आते हैं जब कोई मुझसे अच्छा व्यवहार करे। अमृता की तबीयत खराब थी। आने वाले पूछते थे - तबीयत खराब है क्या? मैं कहता - नहीं। दरख्त अब बीज बन रहा है। एक कविता भी लिखी - कल तक जो एक दरख्त था, महक, फूल और फलों वाला, आज का एक जिक्र है वह, जिंदा जिक्र है, दरख्त जब बीज बन गया है, हवा के साथ उड़ गया है, किस तरफ अब पता नहीं। उसका अहसास है मेरे साथ।
* अमृता की रचनाधर्मिता में कहीं आप भी हैं? आपने तो अमृता की पेंटिंग्स बनाई हैं - अलग-अलग भाव भंगिमाओं में। भिन्न मुद्राओं में? - अमृता वही लिखती थी जो अनुभव करती थी। जो उसे लिखना होता था। हो सकता है किसी नायक में उसने वह लिखा हो जो उसको मुझमें अच्छा लगता था। अमृता ने मुझे एक बार कहा था - तब मैं शमा के दफ्तर में काम करता था। 'क्या कभी तुमने औरत विद माइंड भी बनाई है?' मैंने सोचा, खूबसूरत चेहरों वाली औरतें तो बनाई पर 'औरत विद माइंड' किसने बनाई। शायद वे औरत को माइंड के साथ जोड़कर देखते ही नहीं। शायद आदमी को औरत को माइंड के साथ होने की जरूरत ही नहीं होती होगी। तभी दूसरी औरत भी कर लेते हैं।
फिर मैंने उसके 6 साल बाद एक पेंटिंग बनाई 'वूमन विद माइंड'। मैंने एक नज्म भी लिखी - संपूर्ण औरत। आदमी जिस्म वाली औरत के साथ सो तो सकता है पर जाग नहीं सकता। क्योंकि औरत जिस्म से कहीं आगे होती है। 'नागमणि' पत्रिका में अमृता ने एक पन्ना मेरे लिए रखा था जिसमें मैं पाठकों के उत्तर देता था। एक व्यक्ति ने सवाल पूछा था -आदमी और औरत का रिश्ता ठीक क्यों नहीं बैठता (नहीं अगर वह अगर औरत के साथ जागकर देखता तो पूरी कला ही बदल जाती।
मैंने अमृता के प्रश्न के उत्तर में कला के बीहड़ में घुसकर भी देखा था। पेंटर की भी औरत के बारे में अधूरी सोच है। पश्चिमी यथार्थवादी कला (रियलिस्टिक पेंटिंग) में औरत (मॉडल) के न्यूड ही अधिकतर बनाए जाते हैं। हमारे यहाँ की स्टाइलिस्टिक पेंटिंग में भावहीन चेहरे होते हैं।
आपने विदेश यात्रा भी की है? अमृता को एक बार फ्रांस की सरकार ने पेरिस बुलाया था। वहाँ मैं अपना टिकट लेकर गया था। अमृता तो सरकारी खर्चे पर थी, मैं एक सस्ते होटल में ठहरा। फिर अमृता ने अथॉरिटी से पूछा कि क्या उसका दोस्त उसके साथ रह सकता है। उन्होंने इजाजत दी थी तब मैं उसके साथ रहा। उसके बाद हम चेकोस्लोवाकिया गए। इटली भी गए और सप्ताह भर वहाँ रहे।
अमृता में एक बात थी उसने कभी भी मनुपलेट या मैनेज नहीं किया जैसे आजकल लेखक करते हैं। उसने कभी अपनी पुस्तक का प्रीफेस नहीं लिखवाया और न कभी पुस्तक पर कार्यक्रम ही किया। हम पुस्तक लेते थे। अपनी गाड़ी में फूल लगाकर पुस्तक सेलीब्रेट भी करते थे।
* आपको कभी ईगो प्रॉब्लम नहीं हुई अमृता जी के साथ? - ईगो क्या है? ईगो एबसेंस ऑफ लव या रजनीश की भाषा में कहूँ तो एंटी विज्डम है। मुझे कभी कोई कॉम्प्लेक्स नहीं हुआ, न ही हमारे बीच कभी कोई कॉन्फिलिक्ट हुआ। अमृता को जो भी मिलने आते थे उन्हें चाय, पानी मैं ही देता था। जब अमृता जी राज्यसभा की सदस्य मनोनीत हुईं तो मैं उसे लेकर जाता था वह अंदर चली जाती थी मैं गाड़ी को पार्किंग में लगाकर या तो संगीत सुनता था या कोई किताब पढ़ता रहता था।
* इस सबके लिए। आप जैसे साथी के लिए क्या अमृता जी को भाग्यशाली मानूँ? आप इंसान कम फरिश्ता ज्यादा लगते हैं। - हम दोनों ही एक-दूसरे को पसंद करते थे। इंसान हूँ मैं सीधा-सादा। जब हमने एक साथ रहना शुरू किया था तो अमृता का पति से तलाक नहीं हुआ था। हमने शादी नहीं की थी। जरूरत ही नहीं थी। रिश्ते में कानून की जरूरत कहाँ होती है? कानून उनके लिए होता है जो गैर जिम्मेवार होते हैं।
अमृता के पति ने अलग होने के 12-15 साल बाद तलाक लिया था। कनाडा एक ऐसा देश है जहाँ दो साल अगर साथ रह लें तो उन्हें शादीशुदा ही मान लिया जाता है।
* उस समय जब आपने बिना शादी के साथ रहने का फैसला किया तो समाज में खलबली मची होगी। अपनों ने, रिश्तेदारों ने और दोस्तों ने बहुत कुछ कहा होगा? - समाज क्या है? हम साथ रहना और एक साथ जीना चाहते हैं तो किसी को इससे क्या। अमृता के साथ तो कोई भी प्रेम कर सकता था। अमृता को तब अमीर आदमी ढूँढना चाहिए था। अमृता उस समय रेडियो में पंजाबी प्रोग्राम देती थी। सप्ताह में एक बार।
उसे पाँच रुपए मिलते थे। महीने के 150 रुपए। यह बात सन् 48 से 57-59 के बीच की है। अमृता जब अपने पति के साथ थी। खुद्दार औरत थी। इसलिए उससे पैसे नहीं माँगना चाहती थी। इसलिए यह प्रोग्राम करती थी। मैं तब 'शमा' पत्रिका के साथ था मुझे 1400 रुपए मिलते थे।
* अमृता जी का साहिर लुधियानवी से भी प्रेम था? - साहिर अलग किस्म का आदमी था। अमृता उससे प्रेम करती थी। पर वह अमृता को दिखावे की चीज मानता था। वह उसके पास जाती थी तो वह अपने दोस्तों के बीच उसे ले जाता। यह दिखाने के लिए कि अमृता जैसी खूबसूरत लड़की उसे प्यार करती है। अमृता का प्यार एकतरफा था।
अमृता बहुत सीधी-सादी घरेलू किस्म की लड़की थी। साहिर फक्कड़ था वह प्यार नहीं कर सकता था। अमृता मेरे साथ रही बच्चे भी साथ थे। अमृता ने तभी खाना भी बनाना सीखा। हम मिलकर ही बनाते थे। पर वह मेरी माँ की तरह सबको बिठाकर खाना खिलाती भी थी। हमारा परिवार सबके साथ भी होता है और अपने साथ भी। इसे 'फैमिली ऑफ इंडिविजुअल्स' कहा जा सकता है।