Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

कवि जन्मजात नहीं होते : अशोक वाजपेयी

स्मृति आदित्य से विशेष बातचीत

हमें फॉलो करें कवि जन्मजात नहीं होते : अशोक वाजपेयी
अशोक वाजपेयी। एक विनम्र शख्सियत, बेबाक आलोचक और संवेदनशील कवि के रूप में प्रख्यात हैं। अशोक जी भारतीय प्रशासनिक सेवा में पूर्वाधिकारी रह चुके हैं। ललित कला, साहित्य और संस्कृति की दिव्य त्रिवेणी पर उनका समान अधिकार है। मध्यप्रदेश के भोपाल स्थित भारत भवन की स्थापना में उनकी उल्लेखनीय भूमिका रही है।

FILE


अपनी विलक्षण प्रेम कविताओं के लिए उनकी एक खास पहचान है। इन दिनों वे इंदौर प्रवास पर हैं। साहित्य की ‍विभिन्न गोष्ठियों में शिरकत करते हुए वेबदुनिया से उन्होंने संक्षिप्त बातचीत की। प्रस्तुत है एक छोटी सी काव्यात्मक मुलाकात, सुविख्यात साहित्यकार अशोक वाजपेयी के साथ-

* प्रेम क्या है?

अशोक वाजपेयी : एक-दूजे का निष्कवच और नि:संकोच स्वीकार ही प्रेम है।

:*...और कविता क्या है?

अशोक वाजपेयी : सच और सपने के बीच भाषा की एक जगह या कड़ी ही कविता है।

क्या प्रेम कविता लिखने के लिए प्रेम करना जरूरी है?

अशोक वाजपेयी : नहीं जरूरी तो नहीं पर अगर कर लिया जाए तो बेहतर है। यूं भी किसी भी कविता को लिखने के लिए संपूर्ण संसार मात्र से प्रेम कर लेना पर्याप्त है।

आपकी नजर में काव्य के सप्तर्षि कौन है?

अशोक वाजपेयी : निराला, प्रसाद, अज्ञेय, मुक्तिबोध, शमशेर, रघुवीर सहाय और भवानीप्रसाद मिश्र।

काव्य लेखन के लिए नवोदित कवियों में क्या खास होना आवश्यक है?

अशोक वाजपेयी : आजकल ज्यादातर अपढ़ कवि हैं। अपढ़ इस अर्थ में कि वे दूसरे कवियों को नहीं पढ़ते और स्वयं को जन्मजात कवि मानते हैं जबकि कवि जन्मजात नहीं होते। निरंतर अध्यययन और संसार के प्रति चैतन्यता श्रेष्ठ कवि होने की शर्ते हैं।

आपके काव्य-सृजन की प्रक्रिया क्या होती है?

अशोक वाजपेयी : कुछ खास नहीं। नहीं लिखता हूं तो म हीनों नहीं लिखता लेकिन जब लिखने को प्रेरित होता हूं तो निरंतर लिखना पसंद करता हूं। कोई एक शब्द, कोई एक वाक्य या वाकया जब मन को अभिस्पर्शित करता है तो काव्य या साहित्य स्वत: सृजित होता है।

साहित्य में स्त्री और स्त्री द्वारा रचा साहित्य क्यों अक्सर चर्चा में रहता है?

अशोक वाजपेयी : मैं मानता हूं कि स्त्री सदियों से चुप रही है पर अब स्त्री का साहित्य में मुखर होना शुभ है। इससे साहित्य को लोकतांत्रिक बनाने की प्रक्रिया मजबूत हुई है।

क्या इंटरनेट के आगमन से साहित्य सशक्त हुआ है?

अशोक वाजपेयी : इंटरनेट ने साहित्य के आकाश को लोकतांत्रिक बनाया है।

इन दिनों आप क्या पढ़ रहे हैं?

अशोक वाजपेयी : कल ही मैंने अमेरिकी कवि पॉल अस्टर और कोएत्जी के बीच पत्राचार को पढ़कर पूरा किया।

आपकी संभावित पुस्तक जान सकते हैं?

अशोक वाजपेयी : बिलकुल। मल्लिकार्जुन मंसूर पर लिखने का मन है। कबीर और गालिब पर काफी समय से अधूरा काम है उसे पूरा करना है।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

विज्ञापन
जीवनसंगी की तलाश है? भारत मैट्रिमोनी पर रजिस्टर करें - निःशुल्क रजिस्ट्रेशन!