कविता : रोते हुए तमाशा

संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'
आतंकवादी कैसे पा जाते है बारूद
क्या ढोकर लाते या चुराकर 
और तो और वे 
बना लेते हैं बम 
 
जब धमाका होता 
तभी मालूम होता है 
उनका आतंकीपन 









 











छिन जाते है बच्चों से मां-बाप 
मां-बाप से उनके बच्चे 
और हम गिनने लग जाते हैं 
हर दूसरे दिन 
मरने या घायल होने वाले
बेकसूर लोगों संख्या 
 
जिनकी सांसों में बारूदी गंध 
आंखों में है खून
कानों में धमाकों की गूंज 
जो पाक की शह पर चल रहे
कठपुतलियों की तरह 
 
जहां-तहां खौफ पैदा रहे 
क्यों नहीं खत्म कर पा रहे
उनके आतंकीपन को 
शायद हम बुजदिल हो गए हैं 
तभी तो वे निर्दोषों की 
हर बार जान ले रहे है
 
और हम दहशत भरी 
भीड़ में देख रहे हैं
रोते हुए तमाशा 
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

दीपावली पर बनाएं ये 5 खास मिठाइयां

10 लाइन नरक चतुर्दशी पर निबंध हिंदी में

पुष्य नक्षत्र पर पत्नी को दें ये उपहार, लक्ष्मी माता की कृपा से कभी नहीं होगी धन की कमी

दीपावली पर 10 लाइन कैसे लिखें? Essay on Diwali in Hindi

क्या प्यूबिक एरिया में शेविंग क्रीम से बढ़ती है डार्कनेस

सभी देखें

नवीनतम

पेट्रोलियम जेली के फायदे : सिर्फ ड्राय स्किन ही नहीं, जानें इसके छुपे हुए कई ब्यूटी सीक्रेट्स

एंटी एजिंग मेकअप से दिवाली पर दिखें 10 साल छोटी, जानिए ये असरदार ब्यूटी सीक्रेट्स

इस Festive Season, इन DIY Ubtans के साथ घर पर आसानी से बनाएं अपनी स्किन को खूबसूरत

कमला हैरिस को वोट देने से हिचकिचा रहे भारतीय अमेरिकी नागरिक, जानें क्यों

दिवाली पर कम मेहनत में चमकाएं काले पड़ चुके तांबे के बर्तन, आजमाएं ये 5 आसान ट्रिक्स

अगला लेख
More