कविता : शील बचाने उठ अब नारी

जयति जैन 'नूतन'
चल उठ स्त्री बांध कफन अब
कोई रक्षक नहीं आएगा
हत्या-शोषण-बलात्कार से अब
कोई तुझे नहीं बचाएगा।
 
ये कलयुग है निर्ममता यहां
स्नेह की आस किससे लगाओगी?
स्तन पर नजरें टिकाए बैठे
दु:शासन से ना बच पाओगी।
 
कैसी आस लगा रखी है तुमने
जिस्म के ठेकेदारों से?
खुद की रक्षा खुद के सिर है
शस्त्र कब तक ना उठाओगी?
 
सदियों से उपभोग की वस्तु
स्वयं को कितना सताओगी?
शील बचाने खड़क उठा लो 
कब तक बेचारी कहलाओगी?
 
वस्त्र कोई खींचेगा तुम्हारा
तुम पर मर्दानगी दिखाएगा
ऐसे बलात्कारियों को तुम
कब नामर्द-नपुंसक बनाओगी?
 
छोड़ संताप उठ जा अब भोग्या 
कोई नहीं बचाने अब आएगा
'नूतन' आगाज के साथ करो सामना
मौन ईश्वर भी सर झुकाएगा।

सम्बंधित जानकारी

सेहत के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं जामुन, जानें 10 फायदे

बारिश के मौसम में ऐसे करें अपने पालतू की देखभाल, जानें ये 7 टिप्स

बारिश में ऐसे करें फल और सब्जियों की सफाई, जानें ये 10 उपाय

पैरों में खुजली और इन्फेक्शन से हैं परेशान तो आजमाएं ये 7 घरेलू उपाय

बारिश में अब नहीं होगा डेंगू मलेरिया का खतरा, मच्छर भगाने के 10 उपाय जानें

Yug purush ashram: इंदौर में बेरहमी के इस नए कारनामे से तो ईश्‍वर भी रो दिया होगा

पूजा अहिरवार ने अपने 30वें जन्मदिन पर पद्मश्री जनक दीदी से प्रेरित होकर 130 पौधे लगाए

प्रधानमंत्री मोदी मॉस्को के बाद ऑस्ट्रिया जाएंगे

सिर्फ 2 सेकंड में करें सड़े अंडे की पहचान, जानें ये आसान ट्रिक्स

अ(A) से शुरू होने वाले ये सुंदर नाम हैं आपके बेटे के नामकरण के लिए बहुत ही कल्याणकारी

अगला लेख
More