कविता : चारों तरफ आग

Webdunia
राजकुमार कुम्भज
चारों तरफ आग
चारों तरफ लोहा ही लोहा 
तप रही, तप रही, सुलग रही आग
 
गल रहा, गल रहा लोहा, ढल रही तलवार
किंतु आदमी की तलवार
किंतु आदमी की ही गरदन

किंतु आदमी ही आदमी का शिकार
किंतु नहीं आदमी, पक्ष आदमी का
 
बीच में बड़े-बड़े अद्वितीय जंगल
सभ्यता, असभ्यता, असामान्यता के
जंगल जलाए जा चुके थे
 
पशु-पक्षी सबके सब मारे जा चुके थे
विनम्रता थी कि थम चुकी थी बारिश
फिर भी चारों तरफ आग।
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

Health Alert : क्या ये मीठा फल डायबिटीज में कर सकता है चमत्कार? जानिए यहां

Style Secrets : स्मार्ट फॉर्मल लुक को पूरा करने के लिए सॉक्स पहनने का ये सही तरीका जान लें, नहीं होंगे सबके सामने शर्मिंदा

लाल चींटी काटे तो ये करें, मिलेगी तुरंत राहत

बिना महंगे प्रोडक्ट्स के टैन को करें दूर, घर पर बनाएं ये नेचुरल DIY फेस पैक

सर्दियों में रूखी त्वचा को कहें गुडबाय, घर पर इस तरह करें प्राकृतिक स्किनकेयर रूटीन को फॉलो

सभी देखें

नवीनतम

मजेदार बाल गीत : सपने सच कर डालो

सांस लेने में हो रही है परेशानी? सावधान, कहीं हो ना जाएं ब्रोंकाइटिस के शिकार

Winters : रूखी त्वचा से बचना चाहते हैं तो ये आसान घरेलू उपाय तुरंत ट्राई करें

क्या शिशु को रोजाना नहलाना सही है? जानें रोज नहाने से शिशु की हेल्थ पर क्या पड़ता है असर

आंख के नीचे चींटी का काटना क्यों बन सकता है गंभीर समस्या? जानें ये जरूरी सावधानियां

अगला लेख
More