कविता : भावनाओं का अपलोड

तरसेम कौर
डिलीट होती जा रही 
भावनाओं और संवेदनाओं
का बैकअप शायद 
किसी ने भी नहीं रखा है
 
जीवन की स्क्रीन से 
धीरे-धीरे इरेस होती जा रही
संवेदनाओं को रिस्टोर 
करना शायद अब
नामुमकिन-सा ही लगता है
 
रूप बदलता जा रहा है 
और बिखरी पड़ी मिलती हैं
जीवन की स्क्रीन के एक कोने में
 
इश्क ने 
डेटिंग का रूप ले लिया है
और नाराजगी ने 
क्रोध का चोला पहन लिया है
 
मां की ममता तो है 
पर बच्चों में आज्ञाकारिता, 
सम्मान, डर, लिहाज, धैर्य नहीं दिखते
मॉम यू जस्ट चिल्ल...
 
इश्क भी वही बचा है 
जो कभी परवान नहीं चढ़ा
आज की इश्कबाजी 
बीएफ और जीएफ के चक्कर में खो गई है
 
पॉकेटमनी अब पापा से 
जि‍द करके मांगनी नहीं पड़ती
क्यूंकि एटीएम कार्ड ने 
पापा की जगह ले ली है
 
अब मम्मी पापा को 
फि‍क्र नहीं होती बच्चे की
व्हाट्सअप से कनेक्ट 
जो रहते हैं अब हरदम
 
पापा को अब चिंता नहीं होती 
बच्चा देर से आए 
क्यूंकि पापा के स्कूटर की जगह 
ओला और उबर कैब्स ने ले ली है
 
नई भावनाओं और संवेदनाओं को
बनाने की जरूरत है नए-नए एप्स की तरह
ताकि उनको अपने जीवन की स्क्रीन पर
हम फिर से अपलोड कर सकें..!!
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