जनमानस के प्रिय रचनाकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती

स्मृति आदित्य
Munshi Premchand
आधुनिक भारत के शीर्षस्थ साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की रचना दृष्टि साहित्य के विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हुई है। उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख संस्मरण आदि अनेक विधाओं में उन्होंने साहित्य सृजन किया।
 
अपने जीवनकाल में ही उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि मिल गई थी किंतु पाठकों के बीच आज भी उनका कहानीकार का रूप स्वीकारा, सराहा जाता है।
 
उनका जीवन जितनी गहनता लिए हुए है, साहित्य के फलक पर उतना ही व्यापक भी है। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल पुस्तकें तथा हजारों की संख्या में लेख आदि की रचना की।
 
प्रेमचंद अपनी हर कृति को इतने समर्पित भाव से रचते कि पात्र जीवंत होकर पाठक के ह्रदय में धड़कने लगते थे। यहां तक कि पात्र यदि व्यथित हैं तो पाठक की पलक की कोर भी नम हो उठती। पात्र यदि किसी समस्या का शिकार है तब उसकी मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति इतनी प्रभावी होती है कि पाठक भी समाधान मिलने तक बेताबी का अनुभव करता है।
 
वे स्वयं आजीवन जमीन से जुड़े रहे और अपने पात्रों का चयन भी हमेशा परिवेश के अनुसार ही किया। उनके द्वारा रचित पात्र होरी किसानों का प्रतिनिधि चरित्र बन गया।
 
प्रेमचंद एक सच्चे भारतीय थे। एक सामान्य भारतीय की तरह उनकी आवश्यकताएं भी सीमित थी। उनके कथाकार पुत्र अमृतराय ने एक जगह लिखा है ‘क्या तो उनका हुलिया था, घुटनों से जरा नीचे तक पहुंचने वाली मिल की धोती, उसके ऊपर कुर्ता और पैरों में बन्ददार जूते। आप शायद उन्हें प्रेमचंद मानने से इंकार कर दें लेकिन तब भी वही प्रेमचंद था क्योंकि वही हिन्दुस्तान हैं।‘
 
प्रेमचंद हिंदी के पहले साहित्यकार थे जिन्होंने पश्चिमी पूंजीवादी एवं औद्योगिक सभ्यता के संकट को पहचाना और देश की मूल कृषि संस्कृति तथा भारतीय जीवन दृष्टि की रक्षा की।
 
सुमित्रानन्दन पंत के शब्दों में -प्रेमचंद ने नवीन भारतीयता एवं नवीन राष्ट्रीयता का समुज्ज्वल आदर्श प्रस्तुत कर गांधी जी के समान ही देश का पथ प्रदर्शन किया।
 
प्रेमचंद भारतीयता के सच्चे प्रतीक थे। सशक्त प्रतिनिधि थे किंतु यह हमारी वैचारिक दरिद्रता है कि हम उस युगपुरुष को याद भी करते हैं तो तब जब किसी स्तरहीन विवाद के चलते गोदान की प्रतियां जलाई जाती है। 

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