Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

भाषादूत सम्मान विवाद : पढ़ें राहुल देव की टिप्पणी

हमें फॉलो करें भाषादूत सम्मान विवाद : पढ़ें राहुल देव की टिप्पणी
हिन्दी दिवस पर दिए गए भाषादूत सम्मान को लेकर विवाद सामने आया है। दरअसल, पहले कुछ लेखकों को सम्मान के लिए आमंत्र‍ण भेजा गया, लेकिन बाद उन्हें यह कहकर खेद जताया गया कि उनके पास भूलवश आमंत्रण पत्र पहुंच गया। इस विवाद पर पर वरिष्ठ लेखक और पत्रकार राहुल देव ने अपनी फेसबुक वॉल पर टिप्पणी की है....


भाषादूत सम्मान ग्रहण करने वाली नित्या देव मेरी ही बेटी है। मेरी ओर से सम्मान उसने ग्रहण किया क्योंकि मुझे दो महीने पहले तय हिन्दी दिवस के ही दो कार्यक्रमों के लिए बंगाल में आईआईटी खड़गपुर और कोलकाता जाना था। यह सूचना मैंने अकादमी को फोन और ईमेल से पहले ही दे दी थी।

राहुल देव नाम के एक युवा लेखक हैं और मेरी तरह लखनऊ के ही हैं, यह मैंने इस विवाद से ही जाना। सम्मान के लिए मेरे चयन के बारे में पहले आम आदमी पार्टी के एक वरिष्ठ मित्र ने मुझे फोन पर बताया और कहा कि मैं उसे स्वीकार करूं। मैंने पहले इंकार किया और कहा कि मेरी रुचि किसी सम्मान में नहीं बल्कि इसमें है कि दिल्ली सरकार भाषाओं के बारे में गहराई से विचार विमर्श करें और उसमें मैं एक भूमिका निभा सकूं। यह भी बताया कि मैं उस दिन दिल्ली में नहीं रहूंगा। मित्र भी भाषा-अनुरागी हैं। तुरंत तैयार हो गए और कहा कि वह इस बारे में संबंधित मंत्रियों से बात करेंगे, कराएंगे।

उन्होंने कुछ वैकल्पिक नाम सुझाने को कहा। तब तक चुने गए नाम बताए। एक पर मैंने आश्चर्य जताया, बाकी को जिनके बारे में मैं जानता था, योग्य बताया। तब तक मुझे नहीं मालूम था कि ये सम्मान केवल डिजिटल माध्यम में योगदान पर केन्द्रित हैं। इसलिए मैंने दो विदेशी हिन्दी विद्वानों के नाम सुझाए।

इस बातचीत के कुछ पल बाद ही मैंने मित्र को फोन किया कि मुझे एक विचार आया है- विचार यह था कि मेरी जगह मेरी बेटी यह सम्मान ग्रहण कर सके तो मैं इसे स्वीकार करना चाहूंगा। अब आपको ईमानदारी से बताता हूं इसके पीछे मेरा एक स्वार्थ था। वह मैंने मित्र को भी बता दिया।

स्वार्थ था कि दिल्ली जैसे बड़े शहरों में रहने वाले हिन्दीसेवियों, प्रेमियों, पत्रकारों, लेखकों की तरह मेरे बच्चे भी सहज हिन्दी अनुरागी नहीं है, पाठक नहीं हैं क्योंकि अंग्रेजी माध्यम में पढ़े हैं। सारी कोशिशों के बावजूद मैं उनमें उतना हिन्दी-प्रेम नहीं जगा सका हूं, जितना चाहता हूं। भले ही उनके साथी-मित्र उनकी बेहतर हिन्दी पर मजाक भी उड़ाते हैं पर मैं चाहता था और हूं कि मेरे बच्चे हिन्दी पर गर्व भी करें, ज्यादा गहराई से जुड़ें। इसलिए पहली फोन वार्ता के तुरंत बाद विचार यह आया था कि अगर मेरी बेटी हिन्दी के इतने अच्छे मंच से हिन्दी के लिए पिता के लिए सम्मान ग्रहण करेगी तो इस बात का उस पर असर होगा, मन में हिन्दी की महिमा, गरिमा, सौन्दर्य और प्रासंगिकता का एक नया, सकारात्मक अनुभव होगा और उसका मन हिन्दी की ओर कुछ बढ़ेगा।

मित्र तुरंत तैयार हुए। आखिर किसी भी तरह के सम्मानितों- पुरस्कृतों की ओर से उनके करीबियों द्वारा ग्रहण करना आम बात है।

एकाध दिन बाद अकादमी से फोन आया। फिर ईमेल पर अकादमी का वही पत्र जो सबको भेजा गया था, जिसमें अब पता चला है कि हम सब श्रद्धेय थे। मेरा पता उसमें गलत था- गुड़गांव नहीं, सरिता विहार, दिल्ली। मैंने अपने उत्तर में उसे दुरुस्त करने को भी लिखा। यह भी कि मेरी बेटी सम्मान ग्रहण करेगी।

फिर मैं 13 को बंगाल चला गया। वहीं रात को एक जागरण संवाददाता का फोन आया कि क्या मुझे सम्मान मिल रहा है, तीन चयनित लोगों के सम्मान लौटाने पर मेरी क्या प्रतिक्रिया है। मुझे इस प्रकरण के बारे में यह पहली सूचना थी। मैंने कहा इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। बस।

फिर खड़गपुर से लौटकर भारतीय कांच एवं सेरेमिक शोध संस्थान में उसके हीरक जयंती व्याख्यान के चक्कर में अपने निमंत्रक मित्र, हिन्दी लेखक और संस्थान के वरिष्ठ हिन्दी अधिकारी प्रियंकर पालीवाल जी से मिला तो उन्होंने यह दो राहुलों वाले विवाद के बारे में बताया। फेसबुक देखने का समय नहीं था। उसे दिल्ली आकर ही देखा।

तो यह रहा किस्सा नित्या देव और दो राहुलों के रहस्य पर मेरे पक्ष का। अब कुछ अपनी बात विवाद पर।

निश्चय ही हिन्दी अकादमी से बड़ी और अक्षम्य चूक हुई है। इसके लिए कौन लोग, कौन सी प्रक्रियात्मक खामियां जिम्मेदार हैं इसकी मुझे ज्यादा जानकारी नहीं मिली है। पर स्पष्टतः संस्कृति मंत्री, अकादमी उपाध्यक्ष, सचिव और वे सब जो इस प्रकरण में किसी भी रूप में शामिल रहे हैं, जवाबदेह हैं। उपाध्यक्ष ने संचालन समिति से विमर्श किया था या नहीं, नहीं तो क्यों नहीं, इसका जवाब उन्हें देना चाहिए। उनकी बनाई, मंत्रालय भेजी सूची में वहां बदलाव क्यों किया गया इसका जवाब उन्हें और मंत्री को देना चाहिए।

सम्मानाकांक्षी रहे हों या नहीं लेकिन फोन और ईमेल से विधिवत सूचित किए जाने के बाद उन्हें बताना कि गलती से पत्र चला गया, घोर और अक्षम्य दुर्व्यवहार है। माफी मांगना काफी नहीं। दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। उनका अपमानित महसूस करना वाजिब है। कोई भी यही महसूस करेगा। यह सरकारी अकादमी का मामला है, किसी गली-छाप निजी संस्था का नहीं।

अंत में, साहित्यिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता का क्षरण व हरण केवल इस या उस पार्टी, विचारधारा, सरकार की बपौती नहीं, हमारे सत्ता-चरित्र का सार्वभौमिक हिस्सा बन चुका है। इससे लड़ना, सुधारना सबकी साझा जिम्मेदारी है। इस जिम्मेदारी को निभाना अपनी अपनी विचारधाराओं, खेमों, पार्टियों को किनारे रखकर ही किया जा सकता है। पर यह सचमुच हो सकता है इसका प्रमाण हमारा इतिहास नहीं देता।

और हां, बेटी को कार्यक्रम में जाकर सचमुच अच्छा लगा, वहां वक्ताओं के वक्तव्यों पर उसने सोचा, राय बनाई और हमें बताई। लगा वह बीज पड़ा है जो मैं चाहता था।

अपनी स्वीकारोक्ति और बात पर बाणों की प्रतीक्षा में....
-राहुल देव


क्या है विवाद : दिल्ली के मुख्‍यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की अध्यक्षता वाली हिन्दी अकादमी का ताजा विवाद भाषादूत सम्मान को लेकर है। अकादमी ने पहले तीन लेखकों को डिजिटल माध्यम में हिन्दी संगोष्ठी एवं भाषा दूत सम्मान ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया। बाद में यह कहकर खेद जताया कि उन्हें गलती से आमंत्रण चला गया था और इसे मानवीय भूल समझा जाए। इसके लिए दिल्‍ली के लेखक अशोक कुमार पांडेय, यूपी के नजीबाबाद से अरुण देव और इलाहाबाद से संतोष चतुर्वेदी को 10 सितंबर को पत्र और फोन के जरिये सूचना भेजी गई थी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

ऐसे करें प्लास्टिक चावल की पहचान...