Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

हिंदी भाषा आलोचना के प्रति असहिष्णु है

हमें फॉलो करें हिंदी भाषा आलोचना के प्रति असहिष्णु है

सीमा पांडे

WD
हिंदी आलोचना के प्रति असहिष्णु भाषा है और आमतौर पर हिंदी का लेखक आलोचना के प्रति सहिष्णु नहीं है इसलिए इसलिए साहसपूर्ण लेखन से भी बचा जाता है तथा आलोचना को रचनाकार तरजीह नहीं देते हैं।

ये विचार व्यक्त किए मुख्य अतिथि श्री प्रभाकर श्रोत्रिय ने, अवसर था प्रसिद्ध साहित्यकार श्री सूर्यकांत नागर के आलेख संग्रह 'सड़क जो है, सेक्यूलर है' के लोकार्पण का। उन्होंने कहा कि छोटा प्रयास भी यदि मौलिक हो तो वह मायने रखता है तथा सहज लेखन अत्यंत कठिन है और यह काम नागरजी ने अत्यधिक सहजता और गहराई के साथ किया है। वे समाज में व्याप्त होने वाले लेखक हैं अत: विभिन्न पक्षों पर लिखने की शक्ति उनमें है।

इस अवसर पर मंचासीन अतिथियों में सर्वश्री सरोज कुमार, नर्मदा प्रसाद उपाध्याय, महेश दुबे व संजय पटेल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सर्वप्रथम नागरजी ने संग्रह परिचय देते हुए कुछ अंशों का पाठन किया। इसके पश्चात श्री संजय पटेल ने अपने उद्‍बोधन में कहा कि संग्रह में भाषा का प्रवाह बेहतरीन है जिससे शब्द व पाठकों के बीच जीवंत राफ्ता बना है। श्री महेश दुबे ने कहा कि संग्रह पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे लेखक पाठक के साथ बातें करते-गुनगुनाते हुए चल रहा है। श्री नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने संग्रह को गंगा की तरह बताया जिसमें साक्षात्कार, रिर्पोताज, धर्म, दर्शन आदि धाराओं का संगम हुआ है। श्री सरोज कुमार ने नागरजी की समग्रग्राहिता की प्रशंसा करते हुए कहा कि संग्रह में सकारात्मक लेखन के दर्शन होते हैं। उन्होंने छूट गए कुछ प्रसिद्ध नामों तथा विषयों की ओर भी ध्यान दिलाया।

अंत में श्री कृष्णकांत दुबे ने समस्त अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया और कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन देवपुत्र के संपादक विकास दवे ने किया।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi