उक्त विचार वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सतीश दुबे ने चर्चित युवा लेखिका ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह 'बिजूका' के लोकार्पण समारोह में व्यक्त किए। जाल सभागृह में आयोजित इस सुअवसर पर बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमियों ने शिरकत की।
जानेमाने कवि-कथाकार श्री पंकज सुबीर बतौर प्रमुख वार्ताकार तथा कार्यक्रम की मुख्य अतिथि के रुप में सुश्री अनुराधा शंकर शामिल हुईं। आरंभ में स्वागत संबोधन संजय पटेल ने दिया।
अतिथियों को स्मृति चिन्ह चानी, एनी और निवेदिता जैन ने प्रदान किए।
अनुराधा शंकर का स्वागत मंजूषा मेहता ने, डॉ. सतीश दुबे का स्वागत प्रताप सिंह सोढ़ी ने तथा पंकज सुबीर का स्वागत हरेराम वाजपेयी ने किया। हेमंत बड़जात्या, राजू बड़जात्या तथा कोणार्क बड़जात्या ने पुष्पगुच्छ से अतिथियों का स्वागत किया।
कार्यक्रम का आयोजन भारत विकास परिषद के तत्वावधान में हुआ। लेखिका ज्योति जैन की इससे पूर्व तीन पुस्तकें(जलतरंग(लघुकथा संग्रह), भोरवेला(कहानी संग्रह) व मेरे हिस्से का आकाश(कविता संग्रह) साहित्य जगत में दस्तक दे चुकी हैं।
पुस्तक में संकलित रचनाओं के विषय में
प्रमुख चर्चाकार पंकज सुबीर ने कहा कि ज्योतिजी की लघुकथाओं ने मुझे चौंकाया है। आमतौर पर साहित्यकार जिन विषयों को स्पर्श करने से बचते हैं ज्योति जैन ने लगभग उन सभी विषयों पर अपनी कलम चलाई है। लघुकथा संक्षिप्तता में जीवन की बड़ी बात कहती है। ‘बिजूका’ शीर्षक के विषय में पंकज सुबीर ने कहा कि वर्तमान संदर्भ में यह बड़ा प्रासंगिक है और लगता है जैसे हम सभी बिजूका बन गए हैं। उन्होंने
कमाल और
पत्थर शीर्षक की लघुकथाओं का विशेष रूप से जिक्र भी किया।
मुख्य अतिथि आईजी अनुराधा शंकर ने अपने सहज संबोधन में कहा कि पुलिस भी इन दिनों खेत में खड़ा बिजूका ही है सीधे-सादे कौवे उनसे डर जाते हैं लेकिन चतुर कौवे नहीं। ज्योति जैन की लघुकथाएं प्रयोजनयुक्त साहित्य कही जा सकती हैं। क्योंकि वे बोधगम्य है और सरलतम साहित्य के हर मानदंड पर खरी उतरती हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सतीश दुबे के अनुसार जीवन अगर पौधा है तो लघुकथा उस पौधे में लगे खूबसूरत फूल की पांखुरी है। लघुकथा ने आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। लघुकथा की सशक्त परिभाषाओं पर ज्योति जैन की लघुकथाएं उपयुक्त बैठती हैं। लघुकथा जीवन के नन्हे पल में छुपे विराट अर्थ की तात्विक अभिव्यक्ति है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. दिव्या गुप्ता ने किया।
अंत में लेखिका ज्योति जैन ने अपनी सृजन प्रक्रिया के साथ प्रतिभावना और आभार प्रकट किया।