हिन्दी जैसे घर में बना मां के हाथ का खाना

अनन्या मिश्रा
सम्राट अकबर के दरबार में एक व्यक्ति आया जो अनेक भाषाओं का विद्वान् था। उसने दरबार में आ कर चुनौती दी कि कौन व्यक्ति मेरी मातृभाषा का पता लगा सकता है। अकबर के दरबार में भी दुनिया की सभी भाषाओं को जानने वाले लोग थे। सभी ने उस विदूषक से अलग-अलग भाषाओं में बात की और सभी भाषाओं में वह धाराप्रवाह उत्तर देता गया। पराजय के भय से घबराए हुए अकबर ने बीरबल की तरफ देखा। बीरबल ने कहा कि मुझे एक दिन का समय दे दीजिए। अकबर और उस विद्वान् ने सहमति दे दी। 
 
रात में जब वह विद्वान् सो रहा था, तो बीरबल ने एक बाल्टी में ठंडा पानी लिया और उसके ऊपर डाल दिया। उस समय वह हड़बड़ा कर उठा, और उसके मुंह से जिस भाषा में शब्द निकले, वह बीरबल को समझ आ गए। अगले दिन बीरबल ने दरबार में उसे उसकी मातृभाषा बता दी। 
 
विद्वान् को समझ ही नहीं आया कि बीरबल ने कैसे पता लगाया। बीरबल ने चूंकि छुप कर पानी डाला था, उसने सिर्फ इतना कहा, कि जब व्यक्ति मुसीबत में होता है तो या तो अपनी मां को याद करता है या अपनी मातृभाषा को। 
हमारी मां अपने-अपने लिए पूज्य है, देवताओं से भी बढ़ कर है और करीब-करीब वही स्थान हमारी मातृभाषा का ही है। हम जब भी संकट में होंगे तो अपनी माँ को याद करेंगे, अपनी मातृभाषा में याद करेंगे और यही भाव हमारा हिंदी के साथ भी होना चाहिए। 
 
हम कितने भी ग्लोबल हो जाएं, लेकिन हम सपने अपनी मातृभाषा में देखेंगे, संकल्प अपनी मातृभाषा में करेंगे और आगे बढ़ने की योजना भी मातृभाषा में बनाएँगे। हम सभी में एक स्वचालित व्यवस्था उपस्थित है। हम अंग्रेजी या अन्य भाषाओं में चाहे जितने प्रवीण हो जाएँ, हम सोचते अपनी मातृभाषा में हैं और यही हमारी स्वचालित व्यवस्था से तुरंत अनुवाद कर के उस क्षण उसे अन्य भाषाओं में प्रेक्षित करती है। हमारा मस्तिष्क, विशेषकर बच्चों का दिमाग मातृभाषा को ग्रहण करने में अधिक सक्षम होता है इसलिए हम अपनी मातृभाषा, देश की राजभाषा को अधिक से अधिक बढाने का प्रयत्न करें। यह तभी संभव हो सकता है जब हम अन्य भाषाओं में भी निष्णात तो हों, लेकिन अपनी माँ और मातृभाषा को न भूलें। शुरुआत हम अपने हस्ताक्षर हिंदी में करने से कर सकते हैं और दिन प्रतिदिन के व्यव्हार में इस्तेमाल से कर सकते हैं। समय लगेगा, किन्तु निश्चित ही वह दिन आएगा, ठीक वैसे, जैसे  इजराइल में हिब्रू नाम की भाषा मृतप्राय होने के बाद पुनः प्रचलन में आ गई है। 
 
निस्संदेह अंग्रेजी का साम्राज्य दुनिया के आठ से अधिक देशों में है। अंतरराष्ट्रीय संपर्क भाषा के रूप से उसे सिर्फ इसलिए प्रतिष्ठा और ख्याति मिली क्योंकि अंग्रेजों ने आधी दुनिया पर राज किया। हिंदी दुनिया में अंग्रेजी, चीनी और मंदारिन के बाद सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है। यह अंतर्राष्ट्रीय संपर्क की भाषा बनें, इसके लिए हमें इसे अपने देश में अधिक प्रतिष्ठा और सम्मान दिलाना होगा। हिंदी दिवस पर यही संकल्प हमारे जीवन का पाथेय बने, यही शुभकामना! आइए, हिंदी सीखें, लिखें, पढ़ें और बोलें – क्योंकि हिंदी बोलना, लिखना, पढ़ना और सीखना ठीक वैसा है, जैसा घर में बना मां के हाथ का खाना! 
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