लता मंगेशकर पर लिखी गई 2 पुस्तकों पर एक नज़र

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पुस्तक :'लता दीदीः अजीब दास्तां है ये...' 
समीक्षक :- अखिलेश पुरोहित
 
स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के विराट व्यक्तित्व के बारे में हरीश भिमानी की लिखी यह किताब निस्संदेह बहुत-से ऐसे पहलुओं और तथ्यों से रूबरू कराती है जिनके बारे में कुछ गिने-चुने लोग ही जानते हैं। इसे लता-यात्रा कहना ज्यादा मुनासिब होगा। लता मंगेशकर का ऊर्जा स्रोत क्या है, इस पर भी प्रकाश डाला गया है। लेकिन हर आदमी को यह जानने की ललक रहती है कि आखिर वह कौन-सी बात है जिसने उनके सुरों को साधकर सफलता के कीर्तिमान रचे। 
 
उनकी विनम्रता, भाषा, उनका समूचा व्यक्तित्व अलग ही गरिमा और मर्यादा में लिपटा है जिसे किंवदंती ही कहा जा सकता है। इस किताब में बताया गया है कि लताजी के बचपन से शुरू हुए सफर पर उनके पिता, भाई, बहनों आदि का साथ कब और किस तरह मिलता रहा।
 
यह किताब खासकर लताजी द्वारा विदेशों में किए गए स्टेज शो के दौरान बीते समय पर है जिसमें छोटी-छोटी बातें भी बड़ी गहराई से लिखी गई हैं। लताजी के बोलने का ढंग, उनकी आदतें, वे बातें जिनसे उन्हें परेशानी होती है जैसे शराब आदि कई बातों का पुस्तक में जिक्र किया गया है। इतनी बड़ी शख्सियत के बारे में आखिर कौन है जो नहीं पढ़ना चाहेगा, वह भी तब जबकि कोई ऐसा व्यक्ति लिखे जिसने इतने नजदीक से उनकी मौजूदगी को महसूस किया हो? बीच-बीच में लेखक ने कई हिन्दी और अंगरेजी मुहावरों का भी प्रयोग किया है।

भाषा के लिहाज से देखें तो यह परिपक्व और संभली हुई है। जाहिर-सी बात है कि जब लता मंगेशकर जैसे व्यक्तित्व के बारे में लिखें तो इतनी सावधानी रखनी पड़ती है। परंतु जो घटनाक्रम इस रचना में प्रस्तुत किया गया है, वह पाठक की जिज्ञासा को पूरी तरह शांत तो नहीं करता, एक संतोष से जरूर भर देता है।
 
बहरहाल, तथ्यों की दृष्टि से देखा जाए तो यह रचना लाजवाब है। भाषा के लिहाज से भी लेखक ने लता मंगेशकर के साथ उनके कार्यक्रमों के दौरान स्वाभाविक तौर पर जो भी महसूस किया है, वह उड़ेल दिया है। 21 देशों, 53 शहरों और 139 कार्यक्रमों में से खास संगीत समारोहों को चुनना और फिर एक लड़ी में पिरोना भी काफी कठिन था, क्योंकि सामने स्वर साम्राज्ञी लता थीं परंतु हरीशजी ने यह काम बखूबी किया है। अंत में बड़े-बड़े दिग्गजों ने लताजी के बारे में जो कथन दिए हैं, वे एक सूची में प्रस्तुत किए गए हैं। लताजी को मिले पुरस्कार और उनके गाए गीतों के कुछ आँकड़े भी हैं, जो किताब को खास बनाते हैं। 
 
पुस्तक :'लता दीदीः अजीब दास्तां है ये...' 
लेखक : हरीश भिमानी 
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन, 4695, 
21-ए दरियागंज, नई दिल्ली 110002 
मूल्य : 495 रुपए। 



पुस्तक : बाबा तेरी सोनचिरैया
समीक्षक : डॉ. केके चौबे
 
दिव्य स्वर साम्राज्ञी सुश्री लता मंगेशकर अब हमारे बीच नहीं हैं....जाने-माने स्तंभकार व लेखक अजातशत्रु की पुस्तक बाबा तेरी सोनचिरैया समस्त संगीत प्रेमियों के लिए बड़ी सौगात है जिसमें लताजी के 80 अश्रुत अनजान गीतों का संकलन व समीक्षा है। वास्तव में यह सुमन चौरसिया व अजातशत्रु की प्रिंट मीडिया जगत को समर्पित एक जुगलबंदी है।
 
लेखक ने अपनी आराध्य गायिका के प्रति ग्रंथ का उद्देश्य स्पष्ट दिया है कि 'न शब्दों के पास दिल होता है और न साजों के पास आत्मा' सिर्फ गायक ही इन 'बेजान लफ्जो में, ऊंघती हुई धुन में, जीवन का प्रकाश डाल देता है।'
 
वैसे तो अनेक समीक्षकों ने चित्रपट संगीत की समीक्षा की है, परंतु गीतों की समीक्षा केवल अजातशत्रु ही बड़ी रोचक शैली में सफलतापूर्वक कर पाए हैं जिसमें उन्होंने 50/55 वर्षों की अवधि की गोल्डन मेलोडी से लताजी द्वारा गाए गए गीतों का ऐसा गहन अध्ययन किया है कि हर पंक्ति, हर शब्द की खूबियों को निचोड़कर रख दिया है।
 
यदि इन दुर्लभ गीतों का भारत का एकमात्र सुरीला दरबार लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफोन रिकॉर्ड संग्रहालय न होता तो इन गीतों की उपलब्धता शायद अन्यत्र नहीं हो पाती। इस पुस्तक के प्रेरक प्रणेता होने का श्रेय संग्रहालय के सचिव श्री चौरसिया को ही जाता है।
 
 वास्तव में यह सुमन चौरसिया व अजातशत्रु की प्रिंट मीडिया जगत को समर्पित एक जुगलबंदी है।
 
लेखक ने अपनी आराध्य गायिका के प्रति ग्रंथ का उद्देश्य स्पष्ट दिया है कि 'न शब्दों के पास दिल होता है और न साजों के पास आत्मा' 
 
इल्म और फिल्म इस देश की पहचान हैं। हिन्दी फिल्म संगीत न होता तो 'हम जीते हुए भी सांस्कृतिक मौत' के आगोश में होते। अजातशत्रु ने पुस्तक में कई बार कहा है कि उन्हें संगीत का कोई तकनीकी ज्ञान नहीं है। बस एक दिल और कान है। वैसे भी संवेदना से श्रवण करना संगीत की पहली शर्त होती है। आज के पिंग-पोंग वार्तालाप में सुनने की किसे फुरसत और श्रद्धा कहां? अजात के लिए सुनना एक लर्निंग स्किल है। वे सुनते ही नहीं एप्रिशिएट भी करते हैं। समझ का यह बौद्धिक तत्व हृदय से जुड़ता है।
 
गीतों की मीमांसा के दौरान लगता है कि लेखक ने हर गीत के शहद में सराबोर माइक्रो इनपुट को अलग-अलग कर धोया, निचोड़ा और दिया है। यहां तक कि 'तेरे इस जहां से हम बाज आए' (परवरिश) के इस गीत में 'हम' शब्द पर हल्के-से उच्छवास को भी पकड़ा है जिससे गीत की वेदना और उदासी संप्रेषित होती है। अजात ने कानों की अजर को हमेशा चौकन्ना व तेज रखा है।
 
(एस्थेटिक्स) सौंदर्य-सरोवर का दर्शन बा्हय होता है और आंतरिक भी। बाह्य दर्शन में उसकी पृष्ठभूमि, स्रोत, विस्तार आदि के दर्शन होते हैं और आंतरिक आकलन तब तक संभव नहीं है जब तक कि उसमें डूबकर अवगाहन न किया जाए। लेखक ने जहां संगीतकारों का तथ्यात्मक परंतु विषद ज्ञानार्जित विवरण ग्रंथ में दिया है, वहीं आलोच्य गीतों के लालित्यपूर्ण रेशे-रेशे पर अपने 'रिस्पॉन्स' दिए हैं।
 
वास्तव में अजात को दोपहर के पर्दों को भेदते हुए कोहसार के पार देखने हेतु काली बीनाई मिली है। ऑस्कर वाइल्ड ने भी लिखा है 'art is the lie which leads to truth' और हम भी अक्ल से पल्ला झाड़कर इस मस्ती के आलम में खो जाना चाहते हैं।
 
पुस्तक : बाबा तेरी सोनचिरैया 
लेखक : प्रो. आरएस यादव 'अजातशत्रु' 
प्रकाशक : लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफोन रिकॉर्ड संग्रहालय, पिगडंबर, जिला इंदौर(म.प्र.) 
सहयोग राशि : 1000 रु. 

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