हमारे देश भारत के नामकरण के विषय में 2019 में प्रकाशित हुई महत्वपूर्ण पुस्तक "भारतनामा भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित होने के कारण देश-विदेश में खास चर्चा का केन्द्र बन चुकी है। लेकिन इसी पुस्तक भारतनामा में 105 पृष्ठों को अतिरिक्त जोड़कर इसका तीसरा संस्करण इसी वर्ष 2023 में प्रकाशित किया गया है जिसमें नए परिवर्धित महत्वपूर्ण लेखों को शामिल किया गया है।
डॉ. प्रभाकिरण जैन द्वारा संपादित इस पुस्तक के तीसरे संस्करण में देश के अनेक संख्याबद्ध विद्वानों ने हिन्दी, अंग्रेजी और अन्य अलग-अलग भाषाओं में अपने-अपने प्रमाण देकर हमारे देश का नाम ऋषभपुत्र भरत से ही भारत होने का दावा किया है जिनमें ढेर सारे नए प्रमाणों और नामकरण से संबंधित विशेष नयी बातों को पढ़कर इस विषय को और भी गहनता से समझा जा सकता है कि हमारे देश का नाम दुष्यंत पुत्र भरत से नहीं बल्कि ऋषभपुत्र भरत से भारत पड़ा है।
इस पुस्तक भारतनामा में कई विद्वानों ने अपने-अपने लेखों में प्रमाणों के साथ स्पष्ट किया है कि टीवी सीरियल शकुंतला और महाभारत की प्रसिद्धि के कारण देश के आम नागरिकों में यह भ्रान्ति बैठ गई थी कि हमारे देश का नाम "भारत" दुष्यंत-शकुंतला के पुत्र भरत पर पड़ा होगा। लेकिन भारतीय संस्कृति के सभी ग्रंथ और पुराण ऋषभ पुत्र भरत से ही देश के नामकरण को प्रमाणित करते हैं।
दरअसल महाभारत के आदिपर्व के २-३ श्लोकों के वास्तविक अर्थ नही समझ पाने के कारण भी दुष्यंत पुत्र भरत से भारत होने का भ्रम जनता में फैला था। वे श्लोक इस प्रकार है-
भर्तव्योऽयं त्वया यस्मादस्माकं वचनादपि।
तस्माद्भवत्वयं नाम्ना भरतो नाम ते सुतः॥ १/६९/३३ ॥
अर्थ- हमारे वचनों से तुम्हें इसका भरण पोषण करना हैं इसलिए तुम्हारे पुत्र का नाम भरत हो।(पुत्र के नामकरण की बात लिखी हैं देश या भूखंड की नहीं)
भरताद्धारती कीर्तिर्येनेदं भारतं कुलम्।
अपेरे ये च पूर्वै च भारता इति विश्रुता:॥ १/६९/४९
अर्थ -भरत से भरत वंश की किर्ती हुई। अन्य जिन राजाओं को अतीत में भारत वंशी के नाम से भी जाना जाता है।(मात्र वंश की बात की हैं।भारता शब्द बहुवचन हैं। कौरव और अर्जुन आदि राजा भारत कहे गए थे।)
शकुन्तलायां दुष्यन्ताद् भरतश्चापि जज्ञिवान,
यस्य लोकेषु नाम्नेदं प्रथितं भारतं कुलम्।(१६)
अर्थ-शकुंतला और दुष्यन्त ने भरत को जन्म दिया ।जिनके नाम से भारत का यह राजवंश दुनिया भर में जाना जाता है। (इसमें भी भरत कुल की बात कही हैं, आप गुगल ट्रांसलेशन में भी इन श्लोकों के सही अर्थ पढ़ सकते हैं।)
महाभारत के इन सभी श्लोकों से यह बात तो स्पष्ट हैं कि महाभारत में देश के नामकरण का कोई उल्लेख नहीं है। वास्तव में किसी भी ग्रंथ चाहे वह कालिदास रचित अभिज्ञान शाकुन्तलम् हो या महाकाव्य महाभारत, कही भी दुष्यंत-शकुंतला पुत्र भरत से देश के नामकरण का एक भी प्रमाण नहीं मिलता हैं। वैसे भी महाभारत का वास्तविक नाम 'जया' था, जो बाद के कुछ विद्वानों ने श्लोकों की संख्या बढ़ाकर भरत वंशियों का युद्ध ऐसा महाभारत कर दिया।
हमारे देश में किसी को इसलिए महान् नहीं माना जाता कि उसने कितना बड़ा राज्य किया, बल्कि इसलिए महान् माना जाता है कि उसने कितना बड़ा त्याग किया। ऋषभपुत्र भरत देश के प्रथम चक्रवर्ती और सूर्यवंश के जनक थे,भरत चक्रवर्ती जब एक बार स्नान कर स्वयं को आइने में देखते हैं तो मुकुट आभूषणों रहित स्वयं को देखकर वैरागी बनते हैं जिससे उन्हें तत्क्षण कैवल्य की प्राप्ति होती है। वे अपने पिता श्री ऋषभदेव और सभी भाईयों की तरह शासन का त्याग कर दिक्षा ले मुनि बनते हैं।
पुस्तक भारतनामा में अनेक माननीय विद्वजनों द्वारा भारतीय सनातन संस्कृति के ढेर सारे प्राचीन ग्रंथों और पुराणों से प्राप्त अनेकों प्रमाणों को उपलब्ध करवाकर यह भलीभांति प्रमाणित किया है कि हमारे देश का नाम तीर्थंकर ऋषभदेव के बड़े पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर भारत पड़ा। वे प्रमाण इस प्रकार हैं -
श्रीमद्भागवत में-
येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठ: श्रेष्ठ गुण आसीद येनेदं वर्षं भारतमिति व्यपदिशन्ति। (५/४/९)
अर्थ- उनमें से सबसे बड़े पुत्र, महान योगी भरत में सर्वोत्तम गुण थे, जिसके कारण इस वर्ष को भारत कहा जाता है।
अर्थ -तब ऋषभ ने पुत्र स्नेह करते हुए भरत की ओर ध्यान किया। ज्ञान और वैराग्य पर आश्रित हुए। राग और इन्द्रियों को जीत जीतेन्द्रिय बने। इसलिए विद्वान लोग भारत देश को इनके नाम से जानते हैं।
अर्थ-ऋषभ ने भरत नामक एक वीर पुत्र को जन्म दिया जो सौ भाईयों में बड़ा भाई था। इसके बाद अपने पुत्र भरत को स्थापित किया और वनवास के लिए निकल पड़े।भरत को हिमालय का दक्षिणवर्ष सौंपा। इसीलिए विद्वान लोग इस देश को इनके नाम से भारत नाम से जानते हैं।
अर्थ -हिमालय पर्वत महात्मा नाभि से नाभिवर्ष था।महाधुति मरूदेवी से उन्हें ऋषभ नामक पुत्र हुआ।
ऋषभ ने सौ पुत्रों में वीर बड़े भाई भरत को जन्म दिया।
ऋषभ ने अपने पुत्र भरत को पृथ्वी का स्वामी नियुक्त किया।
वराहपुराण में-
नाभिर्मरुदेव्या पुत्रजनयत् ऋषभनामानं तस्य भरत:।
पुत्रश्च तावदग्रज: तस्य भरतस्य पिता ऋषभ:
हेमाद्रेर्दक्षिणं वर्ष महद् भारतं नाम शशास।(अध्याय ७४)
अर्थ - नाभि-मरुदेवी से ऋषभ और ऋषभ से भरत नामक पुत्र का जन्म हुआ। उनका पुत्र भरत सभी में बड़ा भाई था और उनके पिता ऋषभ थे। उन्होंने हेमाद्रि के दक्षिणवर्ष जिसका महान भारत नाम हैं पर शासन किया।
अर्थ- ऋषभ से सौ पुत्रों में बड़े भाई वीर भरत का जन्म हुआ।मनुष्यों में ऋषभ ने अपने पुत्र का अभिषेक किया और महान निर्वासन दीक्षा ग्रहण की । उन्होंने भरत को हिमालय के दक्षिणवर्ष के बारे में बताया। इसलिये विद्वान लोग भारत देश को इसी नाम से जानते हैं।
अर्थ -मरूदेवी से ऋषभ और ऋषभ से भरत हुए।भरत से भारतवर्ष हुआ।सुमति उनके पुत्र थे।
मार्कंडेयपुराण अध्याय ५३ में-
ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीर: पुत्रशताद् वर:।
हिमाह्वं दक्षिणं वर्षं भरताय पिता ददौ।
तस्मात्तु भारतं वर्षं तस्य नाम्ना महात्मन:।।(३९ से ४१)
अर्थ -ऋषभ से सौ पुत्रों में सर्वश्रेष्ठ वीर भरत का जन्म हुआ। उनके पिता ने भरत को हिमाहवा नामक दक्षिणी वर्ष दिया। इसलिए उस महात्मा के देश का नाम भारत पड़ा।
अग्नि पुराण में अध्याय १०७ में-
ऋषभो मरूदेव्यां श्री पुत्रो भाद्भरतोऽवत्।
ऋषभोदत्तश्री: पुत्रो शाल्यग्रामे हरिर्गत:।।(११)
भरताद्भारतं वर्ष भरतात्सुमतिस्त्वभूत।
भरतां दत्त लक्ष्मीक: शालिग्रामे हरिर्मत:।।(१२)
अर्थ -मरूदेवी से ऋषभ और ऋषभ से पुत्र भरत उद्भव हुएं। श्री ऋषभोदत्त के पुत्र भरत हरि शाल्यग्राम गये।(11)
भरत से भारतवर्ष हुआ और भरत से सुमति पुत्र उत्पन्न हुआ।
भरत को भाग्य की देवी दी गई और हरि को शालिग्राम में माना गया।(12)
शिवपुराण में-
नाभे: पुत्रश्च वृषभो वृषभात् भरतोऽभवत्।
तस्य नाम्ना त्विदं वर्षं भारतं चेति कीर्त्यते।।
अर्थ -नाभि से पुत्र वृषभ (ऋषभ) और वृषभ से पुत्र भरत का जन्म हुआ। इन्हीं के नाम पर इस वर्ष का नाम भारतवर्ष रखा गया।
अर्थ-भरत क्षेत्र में भरत नामक देवता निवास करते हैं जो महान ऋद्धिशाली, परम धुतिमान, पल्योपम आयुष वाले हैं। इसलिए हे गौतम! इस क्षेत्र को भरत क्षेत्र कहा जाता है।
जैनाचार्य जिनसेन रचित महापुराण(आदिपुराण) में,
ततोऽभिषिच्य साम्राज्ये भरतं सुनुमग्रिमम्।
भगवान् भारतं वर्षं तत्सनाथं व्ययादिदम्।।(१७/७६)
अर्थ -तब उनके(ऋषभदेव के) पुत्रों में सबसे प्रमुख 'भरत' को राजा बनाया गया। भगवान ने उन नाथ के साथ यहां भारत वर्ष व्यतीत किया।
अर्थ -तब तक राजा भरत चक्रवर्ती का वैभव प्राप्त कर चुके थे। जिनके नाम से यह क्षेत्र जगत में प्रकट हुआ है।
सार्थ एकनाथजी भागवत में,
ऐसा तो रिषभाचा पुत्र,
जयासी नांव भरत।
ज्याच्या नामाची कीर्ति विचित्र,
परम पवित्र जगामाजी।
तो भरतु राहिला भूमिकेसी,
म्होणोनि भरतवर्ष म्हणती यासी।
सकल कर्मारम्मी करिता संकल्पासी,
ज्याचिया नामासी स्मरतासी
(अध्याय २ में १४४/१४५ )
अर्थ-ऐसे हैं ऋषभ के पुत्र जिनका नाम भरत हैं। जिसकी प्रसिद्धी आश्चर्यजनक है, जगत् में वे परम पवित्र ।
वे एक आदर्श बने रहे। ऐसी भूमि को भारतवर्ष कहते है।। सकल कर्मों के आरंभ करते समय, भरत जी का नाम स्मरण किया जाता है।।
पुस्तक भारतनामा में इस प्रकार ढेर सारे प्रमाणों के साथ विभिन्न भाषाओं में, विभिन्न विद्वानों द्वारा विस्तार से चर्चा की गई है। देश के नामकरण के विषय में इस पुस्तक में अपने महत्वपूर्ण लेखों द्वारा हमें तथ्यपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाने वाले जाने-माने पचास से भी अधिक विद्वान लेखकों में से कई महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थानों के कुलपति आचार्य, प्रोफेसर, पुरातत्ववेत्ता, पद्मभूषण प्राप्त और राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित हैं, जिनमें पंडित बलदेव उपाध्याय जी, शिक्षा मंत्रालय के नेशनल प्रोफेसर और नवभारत टाइम्स के पूर्व संपादक सूर्यकांत बाली जी, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्री प्रकाशमणि त्रिपाठी, प्रो.दामोदर शास्त्री, पुरातत्ववेत्ता बृजेश रावत, राष्ट्रकवि डॉ. रामधारी सिंह दिनकर, आर्कोलोजिकल डिपार्टमेंट के रिटायर्ड डायरेक्टर M.C. जोशी, डॉ. रिजवाना जमाल,डॉ. संकटाप्रसाद शुक्ल, प्रो.यशवंतसिंह, डॉ. आनिता पंडा, वीरेंद्र परमार, पंडित जानकीनाथ शर्मा, डॉ. श्याम नरेन पाण्डे,प्रो. हाजिमे नाकामुरा, डॉ. एम. महादेवप्पा जैसे सुप्रसिद्ध विद्वान लेखक भी शामिल हैं।
इन सभी विद्वानों के महत्वपूर्ण लेखों से युक्त पुस्तक "भारतनामा" जिज्ञासुओं के लिए अवश्य पठनीय हैं। इसी पुस्तक में गुजराती भाषा में आप मेरा लेख भी पढ़ सकते हैं। पुस्तक में भारतवर्ष के नामकरण से संबंधित सत्य का निरीक्षण होने से आसाम राज्य में डिब्रुगढ़ विश्वविद्यालय के NEP फर्स्ट यर के सिलेबस में understanding India नामक पाठ्यपुस्तक में ऋषभपुत्र भरत से भारत देश के नामकरण का सत्य शामिल कर दिया गया है और जल्द हीं देश के अन्य विभिन्न राज्यों के पाठ्यपुस्तकों में भी यह सत्य शामिल किया जायेगा, इसी बात की आशा में...