गौरवशाली भारत और उसके नए समय को परिभाषित करती श्रेष्‍ठ कृति

स्मृति शुक्ल
प्रो. स्मृति शुक्‍ल
हिन्दी पत्रकारिता भारत के नवजागरण, नवचेतना, सांस्कृतिक चेतना और राष्‍ट्रीय चेतना की संवाहक है। इतिहास बताता है कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों में साहित्यकारों और पत्रकारों का महत्वपूर्ण योगदान है। हिन्दी पत्रकारिता ने देशवासियों के हृदय में राष्‍ट्रीयता का संचार किया, राष्‍ट्र के प्रति प्रेम, भक्ति और समर्पण की भावना को बल दिया और अंग्रेजों के अन्याय का प्रतिरोध करने का साहस दिया।

लोगों को यह बताया कि उठो! यह देश तुम्हारा है, इस देश की रत्नगर्भा भूमि और प्रकृति तुम्हारी है। पंडित जुगलकिशोर शुक्ल, प्रतापनारायण मिश्र, गणेश शंकर विद्यार्थी, माधवराव सप्रे, बालकृश्ण भट्ट, पंडित मदनमोहन मालवीय और माखनलाल चतुर्वेदी जैसे अनेक राष्‍ट्रभक्त पत्रकारों ने राष्‍ट्रीय आंदोलनों की गति दी। स्वतंत्रता के बाद हिन्दी पत्रकारिता की मूल्यपरक और गौरवशाली परंपरा में अनेक पत्रकारों ने अपना योगदान दिया और प्रो. संजय द्विवेदी इस परंपरा की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में सतत् सक्रिय है।

संजय द्विवेदी ने अब तक 26 महत्वपूर्ण पुस्तकों का लेखन और संपादन किया है। आप वर्तमान में भारतीय जनसंचार स्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक हैं। ‘भारत बोध का नया समय’ प्रो. संजय द्विवेदी की ऐसी पुस्तक है जो भारत के स्वर्णिम अतीत की गौरवशाली परंपरा और मूल्यों को प्रकट करने के साथ ही आज के नए समय को प्रखरता, प्रांजलता और जाग्रत विवेक और सूक्ष्म दृष्‍टि के साथ उद्भासित करती है।

इस पुस्तक में भारतबोध एक नई दीप्ति के साथ आलोकित है। भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को समर्पित इस पुस्तक की भूमिका में प्रो. बल्देव भाई शर्मा ने लिखा है- ‘संजय द्विवेदी जैसे लेखक पत्रकार निरंतर अपनी शब्द उर्जा से भारत की आत्मिक शक्ति को दृढ़ करने में संलग्न हैं। वे वास्तव में भारतबोध के रचनाकार हैं। उनके शब्द-शब्द में भारतीयता व राष्‍ट्रीयता की अलख जगाने की शक्ति सन्निहित है। उनकी यह नई पुस्तक ‘भारतबोध का नया समय’ लोकजागरण का दस्तावेज कही जा सकती है।’

प्रो. बल्देव भाई शर्मा की इस बात से सभी पाठकों की सहमति है कि पुस्तक वर्तमान सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक परिदृष्य का गहन और व्यापक मूल्यांकन करने के साथ भारत के गौरवशाली अतीत और उस अतीत को पुनर्स्थापित करने वाले नेतृत्व के लोकमंगलकारी स्वरूप को मूर्त करने वाली है। पुस्तक ‘विमर्ष’ और ‘प्रेरक’ शीर्षक से दो खंडों में विभक्त है। पुस्तक में सम्मिलित 34 आलेख समसामयिक जीवन दृष्‍टि, जीवनमूल्य, भारतीयता, भारतदेश की सामाजिक, सांस्कृतिक चेतना से आप्लावित और वैष्विक दृष्‍टि से सम्पन्न होने के कारण ऐतिहासिक महत्व के हैं। पुस्तक का संपादकीय लेख ‘आत्मदैन्य से मुक्त हो रहा नया भारत’ में भारत की एक सशक्त छवि को प्रस्तुत करता है। संजय द्विवेदी लिखते हैं - ‘भारत जाग रहा है और नए रास्तों की तरफ देख रहा है। यह लहर परिवर्तन के साथ संसाधनों के विकास की लहर है, जो नई सोच पैदा हो रही है वह आर्थिक सम्पन्नता कमजोरों की आय बढ़ाने, गरीबी हटाओ और अंत्योदय जैसे नारों के आगे मानवता को सुखी करने का विचार करने लगी है। भारत एक नेतृत्वकारी भूमिका के लिए आतुर है और उसका लक्ष्य विश्‍व मानवता को सुखी करना है। संपादकीय में संजय द्विवेदी ने ‘विचारों से भरा पूरा देश’ उपशीर्षक में महर्सि अरविंद, स्वामी विवेकानंद, जे. कृष्‍णमूर्ति, मनीषी धर्मपाल और महात्मा गांधी जैसे चिंतक मनीषियों को याद करते हुए कहा है कि ‘‘मनुष्‍य का भीतरी परिवर्तन ही बाह्य संसाधनों की शुद्धि में सहायक बन सकता है। हमें संघर्ष की बजाय समन्वय के सूत्र तलाशने होंगे।

संजय द्विवेदी ने समग्रता से सोचने और राह निकालने की बात की है। उन्होंने हमारी प्राचीन ज्ञान पंरपरा का स्मरण कराते हुए आत्मदैन्य से मुक्त होने का मार्ग सुझाया है। भारत के नवनिर्माण में जो चुनौतियां हैं उससे निपटने के लिए मानवीय करूणा की आवश्‍यकता है। विकास की चमक को आध्यात्मिकता की चमक से भी रंगना आवश्‍यक है।

उन्होंने 2014 में मिले नए नेतृत्व और पीएम नरेन्द्र मोदी के नायकत्व में भारतीय चेतना को नया आकाश और नया विहान मिलने की बात की है जो सच है। अब भारत खंड-खंड सोचने की बजाय अखंडता में सोच रहा है, भारतीयता के सूत्रों का पाठ कर रहा है, सनातन मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। आजादी के अमृत महोत्सव वर्श में प्रकाशित पुस्तक भारतबोध को नई दृष्‍टि से समझते हुए लोकमंगल की भावना से प्रेरित होकर लिखी गई है। संजय द्विवेदी के लेखन का वैश्विक यह है कि उनका लेखन पाठकों से आत्मीय संवाद स्थापित करता है। भारत भूमि की ऋषि परंपरा और ज्ञान परंपरा से लेकर अधुनातन राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय प्रसंगों को समेटते हुए वे बताते हैं कि राजसत्ता का मानवतावादी होना आवश्‍यक है।

संजय द्विवेदी एक बुद्धिजीवी पत्रकार होने के नाते जानते हैं कि आज कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने हिन्दू हिंदुत्व और राष्‍ट्रवाद को संकीर्णता की चौहद्दियों में बांधकर गलत व्याख्याएं की है। इसलिए संजय द्विवेदी राष्‍ट्रवाद की अपेक्षा ‘राष्‍ट्रीयता’ और ‘भारतीयता’ जैसे शब्दों के उपयोग पर बल देते हैं। भारत की वर्णव्यवस्था पर विचार करते हुए उन्होंने कहा है कि यह एक वृत्ति थी, टेम्परामेंट थी। प्रो. संजय द्विवेदी आगे इसे ‘जॉब गारंटी’ और सामाजिक सुरक्षा से जोड़ते हैं। उनके अनुसार बढ़ई, लोहार, सुनार, केवट और माली जैसी जातियां केवल जातियां नहीं थी बल्कि इनके साथ व्यावसायिक दक्षता और हुनर भी जुड़ा हुआ था। अपने हुनर के कारण ये आत्मनिर्भर थी।

‘आजादी की उर्जा का अमृत महोत्सव’ ऐसा लेख है जो स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास को संपूर्ण भारत के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करता है। आजादी के इतिहास के साथ ही प्रो. संजय द्विवेदी ने एक शोधपरक इतिहास दृष्‍टि रखते हुए स्वतंत्रता के ज्ञात इतिहास से अज्ञात इतिहास की यात्रा सफलतापूर्वक पूर्ण की है, उन्होंने उन आंदोलनों के साथ उन अज्ञात और अल्पज्ञात नायकों को सामने रखा जिन्हें प्रायः जाना नहीं गया। स्वतंत्रता के बाद के पच्चहत्तर सालों में और खासतौर से मोदी के नेतृत्व के आठ वर्षों में भारत ने किस तरह विश्‍व पटल पर अपना वर्चस्व कायम किया इसकी एक स्‍पष्‍ट तस्वीर पाठकों के सामने रखी है। उन्होंने भारत के स्‍टार्टअप, इकोसिस्टम, आईटी सेक्टर, स्पेस टेक्नोलॉजी, मिसाइल टेक्नोलॉजी, तकनीकी उपलब्धियों की बात करते हुए कहा है कि माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में भारत की आत्मनिर्भरता से ओतप्रोत विकास यात्रा पूरी दुनिया की विकास यात्रा को गति देने वाली है।

इस पुस्तक में ‘जय-विजय के बीच हम सबके राम’ एक ऐसा लेख है कि जो प्रत्येक भारतवासी को पढ़कर गुनना चाहिए। राम मंदिर के निर्माण की बहुप्रतीक्षित आशा की कार्य रूप में परिणति एक कालजयी घटना है। तुलसी के राम ने मध्यकाल के विश्रृंखल और विदेषी सत्ताओं के आतातायी व्यवहार ने टूटे हुए हिन्दू जनमानस को आशा और विश्‍वास का संबल प्रदान किया था। तुलसी रामचरित मानस में राम के नाम को सांसारिक और आत्मिक उन्नयन दोनों के लिये एक प्रकाषवान मणि के समान मानते हैं-

राम नाम मनि देहि धरि, जीह देहरि द्वार।
तुलसी भीतर बाहिरौ, जस चाहिस उजयार।

त्रेता युग में अवतरित राम सदियों से करोड़ों हिन्दुओं के आराध्य रहे हैं। मध्यकाल में आतातायी विदेशी आक्रांताओं ने अपना वर्चस्व और सत्ता स्थापित करने के लिये हमारे आराध्य और जनमानस की आस्था के केन्द्र मंदिरों को नष्‍ट करने का प्रयास किया। यह बात किसी से छिपी नहीं है। अनेक इतिहासकारों ने इस बात का उल्लेख किया है। कन्नड़ उपन्यासकार भैरप्पा ने अपने उपन्यास ‘आवरण’ में इतिहास की उन पुस्तकों का संदर्भ दिया है, जिनमें ये सारी घटनाएं सप्रमाण दर्ज हैं। प्रो. संजय द्विवेदी ने लिखा कि दुनिया के किसी देश में यह संभव नहीं है कि उसके आराध्य इतने लम्बे समय तक मुकदमों का सामना करें। किन्तु यह हुआ और सारी दुनिया ने इसे देखा। यह भारत के लोकतंत्र, उसके न्यायिक-सामाजिक मूल्यों की स्थापना का समय भी है। यह मंदिर नहीं है जन्मभूमि है, हमें इसे कभी नहीं भूलना चाहिये।

उन्होंने राम शब्द की व्युत्पत्तिमूलक व्याख्या करते हुए लिखा है कि  ‘प्रत्येक मनुष्‍य के अंदर रमण करने वाला जो चैतन्य स्वरूप आत्मा का प्रकाश विद्यमान है, वही राम है।.... राम का होना मर्यादाओं को होना है, संवेदना का होना है, सामाजिक न्याय का होना है, करूणा का होना है। वे सही मायनों में भारतीयता के उच्चादर्शों को स्थापित करने वाले नायक है। उन्हें ईश्‍वर कहकर हम अपने से उन्हें दूर करते हैं। प्रो. संजय द्विवेदी ने इस लेख में राम के अनेक रूपों, अनेक गुणों का ऐसा मोहक और लोकहितकारी चित्रण किया है, जिसमें पाठक आकंठ डूबता है और राम के जीवन के उच्चादर्शों को सहजता से आत्मसात कर लेता है।

गौ संरक्षण और गौसंवर्द्धन प्रसंग पर प्रो. संजय द्विवेदी ने ‘कर्मवीर’ के संपादक माखनलाल चतुर्वेदी जी और उनके कर्मवीर को कृतज्ञता पूर्वक स्मरण किया है। चतुर्वेदी जी ने ‘कर्मवीर’ के माध्यम से अंग्रेजों की रतौना कसाईखाना आंदोलन की क्रूर योजना को ध्वस्त किया था। इस पत्र के अग्रलेखों के कारण अंग्रेजों को अपनी इस योजना को वापिस लेना पड़ा था। हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में यह एक महान विजय थी। प्रो. संजय द्विवेदी ने गाय को धार्मिक नजरिये से न देखते हुए एक मूल्यवान पशु के रूप देखने की बात की है। प्रो. संजय द्विवेदी के लेखन की विशिष्‍ट बात यह है कि वे किसी भी विषय को एकांगी दृष्‍टिकोण से नहीं देखते बरन विविध कोणों से देखते-परखते हैं, तभी तो वे इस लेख में वे मांस उद्योग को एक क्रूर उद्योग के रूप में देखते हैं क्योंकि यह एक ऐसा उद्योग है जो वायुमंडल में बहुत अधिक कार्बन उत्सर्जिज कर रहा है।

प्रो. संजय द्विवेदी गौर संरक्षण को पूर्णरूप से राष्‍ट्रहित के लिए अनिवार्य मानते हैं। गाय भारत के विकास का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। गौशक्ति से सम्पन्न भारत वास्तव में एक खुशहाल और संपोषित भारत होगा।

प्रो. संजय द्विवेदी लंबे समय तक माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता वि.वि. में प्राध्यापक रहे हैं, अतः उन्हें शिक्षा जगत में आने वाली चुनौतियों का व्यावहारिक अनुभव है। वे आज सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रभुत्व और वर्चस्व वाले युग में शिक्षकों और युवा विद्यार्थियों के संबंधों की गहन पड़ता करते हैं। इस सुचितित लेख में प्रो. संजय द्विवेदी ने एक ओर जहां समाज में शिक्षकों के प्रति सम्मान घटने के कारणों की उचित पड़ताल की है तो दूसरी ओर आज के युवाओं की बहुत जल्दी और ज्यादा पा लेने की प्रतिस्पर्धा वाली सोच को भी रेखांकित किया है। परिसरों में संवाद और विमर्ष की धारा सूख सी रही है। परीक्षा पास कर नौकरी पाना ही शिक्षा का लक्ष्य बन गया है। वस्तुतः शिक्षा का मूल उद्देष्य विद्यार्थी एक बेहतर एक इंसान बनना होना चाहिए। वह ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्‍ठ और सच्चरित्र बनकर राष्‍ट्रनिर्माण में अपना योगदान दे उसका दायित्व शिक्षक पर ही होता है। एक शिक्षक अपनी योग्यता अपने नैतिक गुणों और मधुर व्यवहार से अपने विद्यार्थी को सही दिशा दे सकते हैं। ‘नया भारत बनाने की चुनौती’ शीर्षक से यह लेख नये भारत में शिक्षा संस्थानों और गुरु-शिष्‍य संबंधों की बारीकी से पड़ताल करते हुए एक ऐसा मार्ग सुझाता है, जिससे अकादमिक संस्थानों में शैक्षणिक गुणवत्ता और नैतिक ईमानदारी कायम रह सके।

माननीय प्रधानमंत्री मोदी की संवाद कला जिस पर पूरा विश्‍व मोहित है और प्रशंसा करता है, उस संवाद कला के एक-एक पक्ष और मोदी जी की देह भाषा का जैसा बारीक विश्‍लेषण प्रो. संजय द्विवेदी ने किया है, वह अपूर्वानुमेय है। मोदी जी की वक्तृत्व-कला का एक-एक पक्ष इस लेख में उद्घाटित है।

दरअसल मोदी जी एक विवेक सम्पन्न और आत्मीय संवाद करने की कला में निश्णात हैं। प्रो. संजय द्विवेदी लिखते हैं कि ‘जिंदगी के रास्ते में उन पर फेंके पत्थरों से कैसे उन्होंने सफलता की सीढ़ियों का निर्माण किया, उनका जीवन और उनके भाषण इसका जीते-जागते प्रमाण हैं। वे जब देश के युवाओं में आस भरते हैं तो खिलखिला कर हंसते हैं। मुट्ठी बांधकर आसमान में देश की ताकत का परचम फहराते हैं, तो दोनों हाथ उठाकर करोड़ों भारतीयों के आत्‍मविश्‍वास को आवाज देते हैं।’ प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी ने मन की बात के माध्यम से देश की सवा सौ करोड़ जनता के साथ आत्मीय संवाद स्थापित किया है। प्रधानमंत्री जी ने मन की बात गृहणियों से की है, विद्यार्थियों से की है, आम आदमी से की है और केन्द्र सरकार ने जनकल्याण के लिये जितनी भी योजनाएं बनायी उन सभी पर मन की बात है। प्रो. द्विवेदी लिखते हैं कि ‘मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री कभी मार्गदर्शक, कभी सलाहकार, कभी बड़े भाई, कभी घर के बुजुर्ग, कभी दोस्त तो कभी बच्चों और युवाओं के बराबर खड़े दिखाई देते हैं। संजय द्विवेदी जानते हैं कि शिक्षा ही विकास की वाहिका है समाज में जितने भी बड़े परिवर्तन हुए है उनमें शिक्षा की अहम भूमिका है। इसलिए उन्होंने मोदी द्वारा लागू राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की गहन समीक्षा करते हुए लिखा है कि- ‘‘जब देश में बड़ा परिवर्तन करना हो तो शुरूआत शिक्षा से ही होती है। भारत की नयी राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति राष्‍ट्र निर्माण के महायज्ञ में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी।’

इस पुस्तक का एक महत्वपूर्ण लेख ‘एकात्म मानव दर्शन और मीडिया दृष्‍टि’ शीर्षक से है। हम सभी जानते हैं कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय मानववादी दृष्‍टि के विचारक थे। वे संपूर्ण सृष्‍टि रचना के विविध घटकों में समन्वय और एकात्म स्थापित करने पर बल देते थे क्योंकि वे यह मानते थे कि एकात्म मानव वाद के सर्वांगीण विकास और अभ्युदय के लक्ष्य भारत के वैदिक ज्ञान और सनातन परंपरा से ही प्राप्त किए जा सकते हैं। दीनदयाल उपाध्याय जी की पत्रकारिता भी लोकमंगल से जुड़ी हुई थी। वे प्रारंभ में ‘पॉलिटिकल डायरी’ शीर्षक से एक स्तंभ लिखते थे जो राजनैतिक होते हुए भी मूल्यपरक स्तंभ लेखन था। इस कारण समसामयिक विषयों पर केन्द्रित होते हुए भी इसका दीर्घकालिक महत्व है। एकात्म मानवता पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने मुंबई में 22 से 25 अप्रेल 1965 को चार व्याख्यान दिये थे जो अपनी विषयवस्तु और तीव्र संवाद के कारण लोकप्रिय हुए थे और बाद में एकात्म मानववाद दर्शन के आधार बने थे।

प्रो संजय द्विवेदी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय के लोकोपकारी विचारों को पत्रकारिता के लिए भी आदर्श माना है। संवाद और संचार हमारी ज्ञान परंपरा के अभिन्न अंग हैं। ऋग्वेद में विष्वामित्र नदी संवाद, सूक्त, पुरुरवा उर्वशी संवाद, सरमा-मणि संवाद आदि अनेक संवाद सूत्र हैं। वस्तुतः संवाद संप्रेशण का अत्यंत प्रभावी माध्यम है। मीडिया भी समाज से एक ऐसा संवाद कर सकता है जो उसे प्रेरणा और सही दिशा दे सकता है। किन्तु इसके लिए स्वयं मीडिया को मूल्य परक होना चाहिए। भारत के योग दर्शन की पूरे विश्‍व में प्रतिष्‍ठा पीएम मोदी की पहल पर हुई। योग की अन्तरराष्‍ट्रीय योग दिवस मान्यता मिलने के बाद भारत के योग दर्शन की तरफ पूरे विश्‍व का झुकाव हुआ।

प्रो. संजय द्विवेदी ने ‘अद्भुत अनुभव है योग शीर्षक से जो लेख लिखा वह भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा को वर्तमान समय में प्रासंगिक और वैश्‍विक स्तर पर प्रतिष्‍ठित करने वाला लेख है।

प्रो. संजय द्विवेदी की पुस्तक ‘भारत बोध का नया समय’ में हिन्दी पत्रकारिता पर कई विश्‍लेषणात्‍मक लेख हैं जो उनके गहन अध्येता और मीडिया समालोचक होने की गवाही देते हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करने वाले लेखों के अलावा आज के संदर्भ में मीडिया की लोकमंगलकारी भूमिका को प्रकट करने वाले लेखों के साथ पत्रकारिता की चुनौतियों को प्रकट करने वाले लेख भी हैं।

पत्रकारिता में नैतिकता क्यों आवश्‍यक है। प्रिंट मीडिया में आये बदलावों को प्रो. द्विवेदी ने ‘‘खुद को बदल रहे हैं अखबार’’ शीर्षक लेख में बड़े सुंदर ढंग से अभिव्यक्त किया हैं- ‘‘अखबार भी चाहते हैं कि वे भी आदमी की तरह स्मार्ट बने और स्मार्ट पाठकों के बीच पढ़े जाएं। इसलिए पाठक ही नहीं अखबार भी अपने पाठकों को चुन रहे हैं। अखबार अब सिर्फ प्रसारित नहीं होना चाहते, वे क्लास के बीच में पढ़े जाना चाहते हैं।

भारतबोध का नया समय किस तरह से सकारत्मक परिवर्तनों और जनाकांक्षाओं के अनुरूप है। विज्ञान तकनीक कृत्रिम मेघा का शिक्षा एवं अन्य क्षेत्रों में प्रयोग, कोरोना संकट और इससे निपटने के प्रभावी इंतजाम, वेक्सीनेशन, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सड़क सुरक्षा जागरूकता अभियान, जल संचय, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना, राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 की समाप्ति, स्वच्छता अभियान, राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति सभी आत्मनिर्भर भारत स्किल इंडिया सभी भारत का नवनिर्माण और उत्थान की दिशा में बढ़ते चरण के प्रमाण है।

प्रो. संजय द्विवेदी की इस पुस्तक का दूसरा खंड भारत के नायकों, चिन्तकों और महान व्यक्तियों पर केन्द्रित है। पत्रकारिता के पितृ पुरुष ब्रम्हर्शि नारद से जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी तक दस प्रेरक व्यक्तियों को रेखांकित करने वाले लेख पुस्तक की महत्ता को बढ़ाने वाले है। स्वामी विवेकानंद, माधवराव सप्रे, महात्मा गांधी, पंडित मदनमोहन मालवीय, माखनलाल चतुर्वेदी, बाबा साहब अम्बेडकर, वीर सावरकर के व्यक्तित्व और कृतित्व को गहराई से मूल्यांकित करने वाले ये लेख अपनी विशयवस्तु और भाषिक सामर्थ्य के कारण महत्वपूर्ण हैं। सबसे बड़ी बात है कि इन सभी महान व्यक्तियों का मूल्यांकन प्रो.  संजय द्विवेदी अपनी सूक्ष्म दृष्‍टि से बिना किसी पूर्वाग्रह के करते है। अपनी तलस्पर्शी मेघा और सूक्ष्म दृष्‍टि के आलोक में आपने इन महापुरुषों की जीवन दृष्‍टि का आंकलन किया है। प्रो. संजय द्विवेदी ने भारतीय संस्कृति की पारिवारिक व्यवस्था के महत्व को भी रेखांकित किया है। इस पुस्तक में निहित उनका चिंतन अतीत वर्तमान और भविष्‍य के संष्लिश्ट विवेक के सार और आत्ममंथन से परिपूर्ण एक अनुमेय प्रमेय से उपजा है जो हमें भारतबोध के नये समय का दिग्दर्शन करा रहा है। यह लेखन पाठक में सक्रियता का सृजन करता है, उसकी चेतना को जाग्रत करता है। ‘भारतबोध का नया समय’ में प्रो. संजय द्विवेदी के पत्रकार व्यक्तित्व के साथ साहित्यकार रूप के भी दर्शन होते हैं। वे भारत की आस्था विश्‍वासमूलक चेतना से समृद्ध विशिष्‍ट लेखक हैं। भारतीय संस्कृति के मंथन एवं आधुनिक चिंतन के सारभूत तत्वों के व्यावहारिक परीक्षण से उन्होंने कर्मयोगी प्रधानमंत्री मोदी के कार्यों की सराहना करते हुए ‘भारतबोध का नया समय’ अपनी पुस्तक में समग्रता से उद्घाटित किया है।

पुस्तक में संकलित सभी लेखों में मूल्यों का गहरा अन्वेषण है। आज के समय और भविष्‍य संभावनाओं का मंथन है, आधुनिक जीवनबोध है। एक सजग और विवेकवान पत्रकार का संवेदनशील व्यक्तित्व भी इसमें झलकता है। प्रो. द्विवेदी का भाषा पर पूर्ण अधिकार है, उनके पास समृद्ध भाषा है जो हिन्दी संस्कृत, देशज और विदेशी भाषा के बहुप्रचलित शब्द भंडार से समृद्ध है। प्रो. संजय द्विवेदी के पास लेखन की ऐसी कला है जो पाठक को अपनी ओर खींचती है। वस्तुतः उनकी लेखनशैली में उनके व्यक्तित्व की सौम्यता और बौद्धिकता एक साथ परिलक्षित है। एक अध्ययनशील, अन्वेशी, चिंतक के अनुभवों और भाषा शैली की सहजता और नवीन तथ्यों तथा वैश्‍विक संदर्भों को आत्मसात किए हुए उनका लेखन गहरे तक प्रभावित करता है।

भारतबोध का नया समय न केवल जनसंचार पाठ्यक्रमों में पढ़ाये जाने योग्य पुस्तक है वरन कला, वाणिज्य और विज्ञान संकाय के विद्यार्थियों के लिए चयन आधारित पाठ्यक्रमों के संदर्भ ग्रंथ के रूप में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। ‘भारतबोध का नया समय’ पुस्तक के लेख पत्रकारिता लेखन के जो नये मानदण्ड स्थापित करते हैं वे स्पृहणीय हैं।

पुस्तक - भारतबोध का नया समय
लेखक- प्रो. संजय द्विवेदी
प्रकाशक – यश पब्लिकेशन, नई दिल्ली
पृष्‍ठ - 324
मूल्य - 500 रुपए  
समीक्षक : प्रो. स्मृति शुक्ल
ए-10, पंचशील नगर
जबलपुर-482001
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