नए अध्ययन से खुल सकती है पार्किंसन के उपचार की राह

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नई दिल्ली, पार्किंसन जैसी मानसिक व्याधि का आज भी पूरी तरह कारगर उपचार तलाशा नहीं जा सका है। इस दिशा में विज्ञान जगत में नित नये प्रयोग हो रहे हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास के शोधार्थियों को इस दिशा में एक महत्वपूर्ण जानकारी मिली है। शोधार्थियों ने अपनी खोज में पाया है कि मानव मस्तिष्क की कुछ विशिष्ट कोशिकाओं में ऊर्जा की कमी भी पार्किंसन का एक प्रमुख कारण है।

इस शोध के आधार पर वैज्ञानिकों एवं इस पूरे मामले से जुड़े अंशभागियों को इन कोशिकाओं में ऊर्जा के आवश्यक प्रवाह की पूर्ति का कोई मार्ग मिल सकता है। यह उपलब्धि इस घातक बीमारी के प्रभावी उपचार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकती है।

पूरे विश्व में अल्जाइमर के बाद पार्किंसन को दूसरी सबसे बड़ी मानसिक रोग माना जाता है। करीब 200 साल पहले डॉ जेम्स पार्किंसन द्वारा इस बीमारी की खोज के बाद से अभी तक इसका प्रभावी उपचार ढूंढा नहीं जा सका है।
फिलहाल इस बीमारी के संदर्भ में मेडिकल साइंस का मुख्य जोर उपचार के बजाय इसके प्रबंधन पर ही केंद्रित है। ऐसे में, आईआईटी मद्रास की यह खोज पार्किंसन के उपचार की जमीन तैयार करने में सहायक सिद्ध हो सकती है।

इसके लिए शोधार्थियों ने एक कंप्यूटेशनल मॉडल विकसित किया है, जो मानव मस्तिष्क की कोशिकाओं में ऊर्जा स्तर के आकलन से बीमारी की पड़ताल करने में मददगार हो सकता है। इस शोध के निष्कर्ष शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किए गए हैं।

इस अध्ययन की महत्ता को समझाते हुए आईआईटी मद्रास में जैव-प्रौद्योगिकी (बायोटेक्नोलॉजी) विभाग के प्रोफेसर वी. श्रीनिवास चक्रवर्ती ने कहा है कि “आमतौर पर, पार्किंसन के लक्षणों के उपचार पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिससे कई बार आशाजनक परिणाम मिलते हैं।

लेकिन, बेहतर उपचार के लिए बीमारी की आधारभूत समझ बेहद आवश्यक है कि ‘सब्सटैंशिया निग्रा पार्स कॉम्पैक्टा’ कोशिकाओं को क्षति पहुँचने का मुख्य कारण क्या है। हमारे अध्ययन के मूल में यही प्रश्न है कि पार्किंसन में इन कोशिकाओं की क्षति का अंतर्निहित कारण क्या हैं?”

माना जा रहा है कि ऐसे अध्ययन के सहारे अगले पाँच वर्षों के दौरान पार्किंसन मरीजों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप उपचार उपलब्ध कराने का ढांचा विकसित करने में बड़ी मदद मिलेगी। अभी तक इसमें परीक्षणों के आधार पर प्राप्त अनुभवजन्य साक्ष्यों के सहारे ही इलाज किया जाता है। (इंडिया साइंस वायर)

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