मां का बच्चे के प्रति प्रेम तो जगजाहिर है लेकिन उसका स्पर्श बच्चे के लिए कितना जीवनदायनी हो सकता है इसका नाप-जोख अभी विज्ञान को भी करना बाकी है। बच्चे और मां के बीच के अनदेखे संबंध को केवल महसूस किया जा सकता है क्योंकि अभी ऐसे उपकरण नहीं बने हैं जिनसे इन्हें नापा जा सके। आवाज सुनाई नहीं देने के बावजूद मां जान जाती है कि बच्चा कहीं रो रहा है। पिछले दिनों आई एक खबर से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि क्लिनिकली 'मृत शिशु' कुछ समय मां की गोद में रहने के बाद जीवित हो उठा।
आदिकाल से माताएं अपने नवजात शिशु को छाती से चिपकाती आई हैं और स्किन टू स्किन टच से नवजात के शरीर को जीवनदायनी शक्तियां हासिल होती रही हैं। इसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान कंगारू मदर केअर के नाम से जानता है। इसे यह नाम इसलिए दिया गया है कि आस्ट्रेलिया में कंगारू नामक एक जीव की प्रजाति है जो अपने बच्चे को जन्म के दो साल बाद तक पेट में बनी एक थैली में रखती है। बच्चा उसी थैली में बड़ा होता है।
आखिर ऐसा क्या है मां के स्पर्श में
1. मां के स्पर्श से रोता हुआ बच्चा चुप हो जाता है। मां बच्चे को गोद में लेकर कुछ भी गुनगुनाती है जिससे बच्चा यह समझ लेता है कि मां से शारीरिक दूरी समाप्त हो गई है।
2.बच्चे की श्वास प्रश्वास की गति समान्य हो जाती है तथा हार्ट की रिदम नियंत्रित होने लगती है।
3. बच्चे को जन्म के तीन महीनों तक अलग नहीं लेटाना चाहिए। पहले तीन महीनों तक मां ऐसा व्यवहार करे जैसे बच्चा बाहरी गर्भ में पल रहा है। इसी अवधि में बच्चे के मस्तिष्क का विकास हो रहा होता है।
4. शोध अध्ययनों में यह पाया गया है कि जो बच्चे अपने पालकों की गोद में बैठते हैं तो उनके मस्तिष्क में ऑक्सीटोसीन नामक रसायन का स्तर बढ़ जाता है। यह रसायन सुख और संतुष्टि प्रदान करता है।
5. मां के स्पर्श और हारमोन स्राव का बच्चे के नैतिक व्यवहार से सीधा संबंध है। ऑक्सीटोसीन के स्राव के बाद आई शांति से बच्चे का माइंड सेट बदल जाता है। माइंडसेट बदलने से आपके सोच की दिशा भी बदल जाती है। वह दूसरों के प्रति अनुदार व्यवहार नहीं करता। वह सेल्फ सेंटर्ड चाइल्ड नहीं रह जाता बल्कि अधिक सोशल बनता है।