इन 4 नगरों और 3 नदियों में गिरी थीं अमृत की बूंदें, जहां लगता है मेला

अनिरुद्ध जोशी
कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृति और धार्मिक मेला है। इस दौरान संपूर्ण भारत के लोग एक जगह एकत्रित होकर नदी में स्नान करते हैं, संतों के प्रवचन सुनते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के साथ ही अपने जीवन को सुंदर बनाने के सूत्र साथ ले जाते हैं। आओ जानते हैं कि किन 4 नगर की 3 नदियों के किनारे लगता है कुंभ मेला जहां गिरी थीं अमृत की बूंदें।
 
 
देवताओं और दैत्यों ने मिलकर जब समुद्र मंथन किया तो सबसे पहले निकला कालकूट नामक विष, जिसे भगवान शंकर ने पीकर अपने कंठ में रोक लिया था, इसीलिए वे निलकंठ कहलाए। समुद्र मंथन के अंत में निकला था अमृत भरा घड़ा। इसी के लिए हुआ था समुद्र मंथन। देवताओं और दैत्यों में अमृत पान करने के लिए होड़ लग गई। 
 
देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत बंटवारे को लेकर जब झगड़ा हो रहा था तथा देवराज इंद्र के संकेत पर उनका पुत्र जयंत जब अमृत कुंभ लेकर भागने की चेष्टा कर रहा था, तब कुछ दैत्यों ने उसका पीछा किया।
 
अमृत-कुंभ के लिए स्वर्ग में 12 दिन तक संघर्ष चलता रहा और उस कुंभ से 4 स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गईं। यह स्थान पृथ्वी पर 1.हरिद्वार, 2.प्रयाग, 3.उज्जैन और 4.नासिक थे। यहीं कारण है कि यहीं पर प्रत्येक 12 वर्ष में कुंभ का आयोजन होता है। कहते हैं कि इस दौरान कुंभ की नदियों का जल अमृत के समान हो जाता है। इसीलिए इसमें स्नान और आचमन करने का महत्व बढ़ जाता है।
 
इन चार स्थानों पर 3 नदियां हैं:- हरिद्वार और प्रयाग में गंगा नदी, उज्जैन में क्षिप्रा नदी और नासिक में गोदावरी नदी। प्रयाग में संगम होने के कारण यमुना नदी भी है।
 
पौराणिक ग्रंथों जैसे नारदीय पुराण (2/66/44), शिव पुराण (1/12/22/-23) एवं वाराह पुराण(1/71/47/48) और ब्रह्मा पुराण आदि में भी कुम्भ एवं अर्ध कुम्भ के आयोजन को लेकर ज्योतिषीय विश्लेषण उपलब्ध है। कुम्भ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है। हरिद्वार के बाद कुम्भ पर्व प्रयाग नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है। प्रयाग और हरिद्वार में मनाए जानें वाले कुम्भ पर्व में एवं प्रयाग और नासिक में मनाए जाने वाले कुम्भ पर्व के बीच में 3 सालों का अंतर होता है।
 
मान्यता है कि अमृत कलश की प्राप्ति हेतु देवता और राक्षसों में बारह दिन तक निरंतर युद्ध चला था। हिंदू पंचांग के अनुसार देवताओं के बारह दिन अर्थात मनुष्यों के बारह वर्ष माने गए हैं इसीलिए कुंभ का आयोजन भी प्रत्येक बारह वर्ष में ही होता है। मान्यता यह भी है कि कुंभ भी बारह होते हैं जिनमें से चार का आयोजन धरती पर होता है शेष आठ का देवलोक में। इसी मान्यता अनुसार प्रत्येक 144 वर्ष बाद महाकुंभ का आयोजन होता है जिसका महत्व अन्य कुंभों की अपेक्षा और बढ़ जाता है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Bhai dooj katha: भाई दूज की पौराणिक कथा

Govardhan Puja 2024: गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन सामग्री सहित सरल विधि

Diwali Laxmi Pujan Timing: दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के शुभ मुहूर्त और चौघड़िया

Narak chaturdashi 2024: नरक चतुर्दशी पर हनुमानजी की पूजा क्यों करते हैं, क्या है इसका खास महत्व?

दिवाली के पांच दिनी उत्सव में किस दिन क्या करते हैं, जानिए इंफोग्राफिक्स में

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: भाई दूज के दिन किन राशियों पर होगी ईश्वर की विशेष कृपा, पढ़ें 03 नवंबर का राशिफल

03 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

03 नवंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Chhath Puja 2024: छठ पर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की सामग्री एवं पूजन विधि

Chhath Puja katha: छठ पूजा की 4 पौराणिक कथाएं

अगला लेख
More