मधुपुर के घनश्याम अगर कुछ पूछे हाल दु:खी गोकुल क ा उनसे कहना पथिक कि अब तक उनकी याद हमें आती है ।
बालापन की प्रीति भुलाक र वे तो हुए महल के वास ी, जपते उनका नाम यहाँ ह म यौवन में बनकर संन्यास ी सावन बिना मल्हार बीतत ा, फागुन बिना फाग कट जात ा, जो भी रितु आती है बृज में वह बस आँसू ही लाती है । मधुपुर के घनश्याम...
बिना दिए की दीवट जैस ा सूना लगे डगर का मेल ा, सुलगे जैसे गीली लकड़ ी सुलगे प्राण साँझ की बेल ा, धूप न भाए छाँह न भा ए, हँसी-खुशी कुछ नहीं सुहा ए, अर्थी जैसे गुज़रे पथ से ऐसे आयु कटी जाती है । मधुपुर के घनश्याम...
पछुआ बन लौटी पुरवा ई, टिहू-टिहू कर उठी टिटहर ी, पर न सिराई तनिक हमार े, जीवन की जलती दोपहर ी, घर बैठूँ तो चैन न आ ए, बाहर जाऊँ भीड़ सता ए, इतना रोग बढ़ा है ऊधो ! कोई दवा न लग पाती है । मधुपुर के घनश्याम...
लुट जाए बारात कि जैसे... लुटी-लुटी है हर अभिलाष ा, थका-थका त न, बुझा-बुझा म न, मरुथल बीच पथिक ज्यों प्यास ा, दिन कटता दुर्गम पहाड़-सा जनम कैद-सी रात गुज़रत ी, जीवन वहाँ रुका है आते जहाँ ख़ुशी हर शरमाती है । मधुपुर के घनश्याम...
क़लम तोड़ते बचपन बीत ा, पाती लिखते गई जवान ी, लेकिन पूरी हुई न अब त क, दो आखर की प्रेम-कहान ी, और न बिसराओ-तरसा ओ, जो भी हो उत्तर भिजवा ओ, स्याही की हर बूँद कि अब शोणित की बूँद बनी जाती है । मधुपुर के घनश्याम...