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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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अमेठी : उद्धार की तलाश में वीआईपी सीट

हमें फॉलो करें अमेठी : उद्धार की तलाश में वीआईपी सीट
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जयदीप कर्णिक

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खेतों में गेहूँ की कटाई बता रही है कि फसल अच्छी हुई है। छोटे गाँवों को आपस में जोड़ने वाली सड़कें बताती हैं कि कोशिश तो हुई है। वीराने में बनी झोंपड़ी के बगल में दौड़ते अधनंगे बच्चे बताते हैं कि बचपन बेफिक्र है उस अहमियत से जो इन दिनों इन गाँवों को मिल रही है। तभी पुराने जंग लगे पाइप और सीमेंट से बना एक ढ़ाँचा ध्यान खींचता है .... पूछा ये क्या है... बोरिंग हैं, राजीव गाँधी ने करवाए थे.... अब बरसों से बंद पड़े हैं। पानी भी ख़्रराब हो रहा था। रख-रखाव नहीं हुआ। ...जी हाँ ये अमेठी है ... वो अमेठी जिसे अब तक गाँधी परिवार की जागीर माना जा रहा था। पर अब राहुल और प्रियंका दोनों को इस विरासत को कायम रखने के लिए ख़ासी मशक्कत करनी पड़ रही है।

लखनऊ से जब अमेठी के लिए चले तो सड़क बढ़िया थी। मुसाफिरख़ाना तक तो कोई दिक्कत नहीं हुई। आगे गौरीगंज तक सड़क संकरी है। फिर अमेठी मुख्यालय थोड़ा कस्बे जैसा लगता है। रास्ते में वो अस्पताल भी दिखता है जो अमेठी को गाँधी परिवार की बड़ी देन मानी जाती है। डॉक्टर लखनऊ से ही आते हैं ज्यादातर। रास्ते में खेत गवाही देते हैं कि गेहूँ इस बार ठीक हुआ है। आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास दो महीने से डेरा डाले हुए हैं और दावा करते हैं कि अमेठी के कुल 1257 राजस्व गाँवों में से 1000 गाँवों में वो हो आए हैं और वो इसे राजा और रंक या दीये और तूफान की लड़ाई बताने में लगे हैं। भाजपा ने लंबा वक्त गँवाने के बाद यहाँ से स्मृति ईरानी को मैदान में उतारा। उन्होंने भी अमेठी के गाँवों के तूफानी दौरे चालू कर दिए।




नतीजा ये है कि गाँधी परिवार की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली सीट पर अब प्रियंका गाँधी को पूरा समय देना पड़ रहा है। अमेठी में अपने प्रचार के दौरान उन्होंने नरेंद्र मोदी पर तीखे हमले भी किए हैं। प्रियंका के अमेठी में किए जा रहे आक्रामक प्रचार को देखकर तो तमाम कांग्रेसियों को ये लग रहा है कि अगर राहुल की बजाय कमान प्रियंका के हाथ में होती तो वो मोदी लहर का सामना ज़्यादा मजबूती से कर पाते। बहरहाल, अब तो बहुत देर हो चुकी है पर हाँ अमेठी में भी बड़े अंतर से जीतने के लिए गाँधी परिवार और राहुल की कोर टीम को मेहनत तो खूब करनी पड़ रही है। कांग्रेसी इसलिए भी कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं क्योंकि वो दिल्ली में शीला दीक्षित के हश्र से डरे हुए हैं। शीला दीक्षित का अरविंद केजरीवाल से 22 हजार वोटों से हार जाना कोई मामूली बात नहीं है। उसी जादू की तलाश में तो दरअसल कुमार विश्वास अमेठी आए हुए हैं।

अमेठी के गाँवों में घूमने और लोगों से मिलने पर ये तो समझ आ जाता है कि कुमार विश्वास की राह आसान नहीं है। जब एक ठाकुर बहुल गाँव का आदमी ये कहे कि- क्यों नहीं जीतेंगे राहुल गाँधी? ये तो अमेठी की इज्जत का सवाल है? तो पता लगता है कि लोग क्या सोचते हैं? राहुल की जीत आपकी इज्जत से कैसे जुड़ गई? ये पूछने पर वो कहते हैं कि राहुल ने ही तो अमेठी को इतना मशहूर किया है... अमेठी का दुनिया में नाम है तो गाँधी परिवार की वजह से।
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क्या केवल मशहूर हो जाना ही काफी है? अंदर गाँवों में सड़कें नहीं हैं। बिजली दिन में तीन बजे जाती है तो रात को 11 बजे आती है। बड़े उद्योग धंधे पनप नहीं पाए। जगदीशपुर में लगे कई उद्योग बंद हो गए। अमेठी ने जो कुछ गाँधी परिवार को दिया और सरकार में रहने का जो मौका उन्हें मिला उसके हिसाब से तो अमेठी और रायबरेली दोनों को ही देश के आदर्श जिलों के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाना चाहिए था। ये सही है कि आपको पूरे देश के लिए सोचना है पर जब आप अपने लोकसभा क्षेत्र को ही नहीं संवार सकते तो देश को कैसे संवारेंगे?

कुछ छोटे-छोटे उपक्रम जरूर गाँधी परिवार ने किए हैं जैसे रामभजन के परिवार की मदद। रामभजन की झोंपड़ी दबंगों ने जला दी थी। इस मामले को लेकर प्रियंका ने खुद काफी दिलचस्पी ली, थाने का घेराव किया, पक्का घर बनवा कर दिया और उसके बेटे शंभूसिंह को दुबई में नौकरी दिलवाई। सो इस परिवार के पूरे वोट तो राहुल को मिल ही जाएँगे। पर पूरे जिले में घूमकर, वहाँ के लिए दूरदृष्टि के साथ, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर काम हो, वैसा हुआ नहीं।

एक दिलचस्प बात ये है कि पिछले चुनावों में यहाँ केवल 41 प्रतिशत ही वोट पड़े थे और उसमें से 71 प्रतिशत राहुल गाँधी को मिले थे। जो लोग पिछली बार ये सोचकर वोट देने नहीं गए थे कि राहुल को तो जीतना ही है, हमारे वोट से तो वो हारने से रहे, उनको अगर स्मृति ईरानी और कुमार विश्वास वोट डलवाने ले आए तो निश्चित ही राहुल के लिए चुनौती हो सकती है।

अमेठी के गाँव इस बात की तस्दीक भी करते हैं कि वहाँ सामंतवाद कैसे अब भी ज़िंदा है। विधायक कोटे से लगा एक हैंडपंप जिस पर लिखा है कि द्वारा रानी अमिता सिंह, विधायक अमेठी इस बात की तस्दीक करने के लिए काफी है। ऐसे में जब सवाल किए जाते हैं और अमेठी के दर्द को देश के सामने लाने की तमाम कोशिशें जनता का भला ही करेंगी। ये एक ऐसी वीआईपी सीट है जो बस नाम की ही वीआईपी है, पर अपने उद्धार की बाट जोह रही है।

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