क्या केवल मशहूर हो जाना ही काफी है? अंदर गाँवों में सड़कें नहीं हैं। बिजली दिन में तीन बजे जाती है तो रात को 11 बजे आती है। बड़े उद्योग धंधे पनप नहीं पाए। जगदीशपुर में लगे कई उद्योग बंद हो गए। अमेठी ने जो कुछ गाँधी परिवार को दिया और सरकार में रहने का जो मौका उन्हें मिला उसके हिसाब से तो अमेठी और रायबरेली दोनों को ही देश के आदर्श जिलों के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाना चाहिए था। ये सही है कि आपको पूरे देश के लिए सोचना है पर जब आप अपने लोकसभा क्षेत्र को ही नहीं संवार सकते तो देश को कैसे संवारेंगे?
कुछ छोटे-छोटे उपक्रम जरूर गाँधी परिवार ने किए हैं जैसे रामभजन के परिवार की मदद। रामभजन की झोंपड़ी दबंगों ने जला दी थी। इस मामले को लेकर प्रियंका ने खुद काफी दिलचस्पी ली, थाने का घेराव किया, पक्का घर बनवा कर दिया और उसके बेटे शंभूसिंह को दुबई में नौकरी दिलवाई। सो इस परिवार के पूरे वोट तो राहुल को मिल ही जाएँगे। पर पूरे जिले में घूमकर, वहाँ के लिए दूरदृष्टि के साथ, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर काम हो, वैसा हुआ नहीं।
एक दिलचस्प बात ये है कि पिछले चुनावों में यहाँ केवल 41 प्रतिशत ही वोट पड़े थे और उसमें से 71 प्रतिशत राहुल गाँधी को मिले थे। जो लोग पिछली बार ये सोचकर वोट देने नहीं गए थे कि राहुल को तो जीतना ही है, हमारे वोट से तो वो हारने से रहे, उनको अगर स्मृति ईरानी और कुमार विश्वास वोट डलवाने ले आए तो निश्चित ही राहुल के लिए चुनौती हो सकती है।
अमेठी के गाँव इस बात की तस्दीक भी करते हैं कि वहाँ सामंतवाद कैसे अब भी ज़िंदा है। विधायक कोटे से लगा एक हैंडपंप जिस पर लिखा है कि द्वारा रानी अमिता सिंह, विधायक अमेठी इस बात की तस्दीक करने के लिए काफी है। ऐसे में जब सवाल किए जाते हैं और अमेठी के दर्द को देश के सामने लाने की तमाम कोशिशें जनता का भला ही करेंगी। ये एक ऐसी वीआईपी सीट है जो बस नाम की ही वीआईपी है, पर अपने उद्धार की बाट जोह रही है।