गणेश चतुर्थी उत्सव : गणपतिजी के संबंध में 25 रोचक बातें

अनिरुद्ध जोशी
भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को गणेशजी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक 10 दिवसीय गणेश उत्सव की धूम रहती है और अंतिम दिन गणेश विसर्जन किया जाता है। आओ जानते हैं गणेशजी के संबंध में 25 रोचक बातें।
 
 
1. गणेशजी ने कई जन्म लिए थे। सतयुग में कश्यप व अदिति के यहां महोत्कट विनायक नाम से जन्म लेकर देवांतक और नरांतक का वध किया। त्रेतायुग में उन्होंने उमा के गर्भ जन्म लिया और उनका नाम गुणेश रखा गया। सिंधु नामक दैत्य का विनाश करने के बाद वे मयुरेश्वर नाम से विख्‍यात हुए। द्वापर में माता पार्वती के यहां पुन: जन्म लिया और वे गणेश कहलाए। ऋषि पराशर ने उनका पालन पोषण किया और उन्होंने वेदव्यास के विनय करने पर सशर्त महाभारत लिखी।
 
2. एक समय माता पार्तवी ने कहा कि सर्वप्रथम सभी तीर्थों का भ्रमण कर आएगा, उसी को मैं यह मोदक दूंगी। माता की ऐसी बात सुनकर कार्तिकेय ने मयूर पर आरूढ़ होकर मुहूर्तभर में ही सब तीर्थों का स्नान कर लिया। इधर गणेश जी का वाहन मूषक होने के कारण वे तीर्थ भ्रमण में असमर्थ थे। तब गणेशजी श्रद्धापूर्वक माता-पिता की परिक्रमा करके पिताजी के सम्मुख खड़े हो गए। माता पिता की भक्ति देख माता ने उन्हें मोदक दे दिया और उनकी सबसे पहले पूजा होने का वरदान भी दिया।
 
3. गणेशजी की दो पत्नियां हैं रिद्धि और सिद्धि। यह दोनों ही भगवान विश्‍वकर्मा की पुत्रियां हैं। रिद्धि से शुभ और सिद्धि से लाभ का जन्म हुआ।
 
4. कार्तिकेय के अलावा गणेशजी के अन्य भाइयों के नाम हैं- सुकेश, जलंधर, अयप्पा, भूमा, अंधक और खुजा।
 
5. गणेशजी की बहन का नाम अशोक सुंदरी, ज्योति (मां ज्वालामुखी) और मनसादेवी हैं।
 
6. र्मशात्रों के अनुसार गणपति ने 64 अवतार लिए, लेकिन 12 अवतार प्रख्यात माने जाते हैं जिसकी पूजा की जाती है। अष्ट विनायक की भी प्रसिद्धि है।
 
7. माना जाता है कि गणेशजी का प्रथम नाम विनायक है। इसे ही असली नाम माना जाता है।
Ganesha Mantra
8. यह भी कहा जाता है कि गणेशजी के हर अवतार का रंग भी अलग ही था। उनके 12 प्रमुख नाम हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन। उनके प्रत्येक नाम के पीछे एक कथा है और प्रत्येक अवतार का रंग अलग अलग है।
 
9. गणेशजी के प्रत्येक अवतार का रंग अलग अलग है परंतु शिवपुराण के अनुसार गणेशजी के शरीर का मुख्य रंग लाल तथा हरा है। इसमें लाल रंग शक्ति और हरा रंग समृद्ध‍ि का प्रतीक माना जाता है। इसका आशय है कि जहां गणेशजी हैं, वहां शक्ति और समृद्ध‍ि दोनों का वास है।
 
10. गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। गणेशजी सतयुग में सिंह, त्रेता में मयूर, द्वापर में मूषक और कलिकाल में घोड़े पर सवार बताए जाते हैं।
 
11. कहते हैं कि द्वापर युग में वे ऋषि पराशर के यहां गजमुख नाम से जन्मे थे। उनका वाहन मूषक था, जो कि अपने पूर्व जन्म में एक गंधर्व था। इस गंधर्व ने सौभरि ऋषि की पत्नी पर कुदृष्टि डाली थी जिसके चलते इसको मूषक योनि में रहने का श्राप मिला था। इस मूषक का नाम डिंक है। 
 
12. गणेशजी को सभी देवताओं की शक्तियां प्राप्त हैं। जिस तरह हनुमानजी को सभी देवताओं ने अपनी अपनी शक्तियां दी थीं उसी तरह गणेशजी को भी सभी देवताओं की शक्तियां प्राप्त हैं। इसके बावजूद उनके पास अपनी खुद की शक्तियां भी हैं।
 
13. गणेश जी को तुलसी, टूटे सूखे अक्षत, केतकी का फूल, सफेद फूल, सफेद जनेऊ, सफेद वस्त्र और सफेद चंदन अर्पित नहीं किए जाते हैं।
 
14. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गणेशजी को केतु के रूप में जाना जाता है। गणेश पूजा से बुध और केतु ग्रह का बुरा असर नहीं होता। प्र
Ganesha n Vastu
15. गणेशजी के पोते आमोद और प्रमोद हैं। आमोद एवं प्रमोद जातक के जीवन में सर्वत्र सुख समृद्धि एवं हर्ष-उल्लास का वातावरण बनाते हैं।
 
16. मान्यता के अनुसार गणेशजी की एक पुत्री भी है जिसका नाम संतोषी है। संतोषी माता की महिमा के बारे में सभी जानते हैं।
 
17. चतुर्थी, बुधवार, अनंत चतुर्दशी, धनतेरस और दिवाली के दिन गणेशजी की विशेष पूजा होती है।
 
18. गणेशजी का सिर हाथी के समान है। उनका मस्तक शनिदेव के देखने से भस्म हो गया था या शिवजी ने उनका मस्तक काट दिया था। इनमें से सबसे प्रचलित कथा शिवजी द्वारा मस्तक काट देने की कथा है। इसके बाद उनके धड़ पर हाथी का मस्तक लगाने के बाद वे गजमुख और गजानन कहलाए।
 
19. हिन्दुओं के लगभग सभी देवी और देवताओं के पास अपना एक अलग वाद्य यंत्र है। गणेशजी को मूर्ति और उनके चित्रों में वीणा, सितार और ढोल बाजाते हुए दर्शाया जाता है। कहीं कहीं पर उन्हें बांसुरी बजाते हुए भी चित्रित किया गया है।
 
20. गणेशजी ने देवतान्तक, नरान्तक, सिंधुरासुर, मत्सरासुर, मदासुर, मोहासुर, कामासुर, लोभासुर, क्रोधासुर, ममासुर, अहंतासुर आदि असुरों का वध किया था।
 
21. गणेशजी की चार भुजाएं हैं- पहले हाथ में अंकुश, दूसरी भुजा में पाश, तीसरी भुजा में मोदक और चौथी भुजा से वे आशीर्वाद दे रहे हैं। 
22. कहते हैं कि श्रीगणेशजी कलियुग के अंत में अवतार लेंगे। इस युग में उनका नाम धूम्रवर्ण या शूर्पकर्ण होगा। वे देवदत्त नाम के नीले रंग के घोड़े पर चारभुजा से युक्त होकर सवार होंगे और उनके हाथ में खड्ग होगा। वे अपनी सेना के द्वारा पापियों का नाश करेंगे और सतयुग का सूत्रपात करेंगे। इस दौरान वे कल्कि अवतार का साथ देंगे।
 
23. जल तत्व के अधिपति गणेशजी का सिर हाथी का है। उनकी प्रिय वस्तु दूर्वा, लाल रंग के फूल, अस्त्र पाश और अंकुश, प्रिय भोजन बेसन और मोदक का लड्डू, केला आदि हैं। शिव महापुराण के अनुसार श्री गणेश को जो दूर्वा चढ़ाई जाती है, वह जड़रहित 4 अंगुल लंबी और 3 गांठों वाली होनी चाहिए।
 
24. भगवान श्री गणेश के सिर कटने की घटना के पीछे भी एक प्रमुख किस्सा है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार किसी कारणवश भगवान शिव ने क्रोध में आकर सूर्य पर त्रिशूल से प्रहार कर दिया था। इस प्रहार से सूर्यदेव चेतनाहीन हो गए। सूर्यदेव के पिता कश्यप ने जब यह देखा तो उन्होंने क्रोध में आकर शिवजी को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुम्हारे त्रिशूल से मेरे पुत्र का शरीर नष्ट हुआ है, उसी प्रकार तुम्हारे पुत्र का मस्तक भी कट जाएगा। इसी श्राप के फलस्वरूप भगवान श्री गणेश के मस्तक कटने की घटना हुई।
 
25. गणेशजी को पौराणिक पत्रकार या लेखक भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने ही 'महाभारत' का लेखन किया था। इस ग्रंथ के रचयिता तो वेदव्यास थे, परंतु इसे लिखने का दायित्व गणेशजी को दिया गया। इसे लिखने के लिए गणेशजी ने शर्त रखी कि उनकी लेखनी बीच में न रुके। इसके लिए वेदव्यास ने उनसे कहा कि वे हर श्लोक को समझने के बाद ही लिखें। श्लोक का अर्थ समझने में गणेशजी को थोड़ा समय लगता था और उसी दौरान वेदव्यासजी अपने कुछ जरूरी कार्य पूर्ण कर लेते थे।

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