श्री गणेश को क्यों चढ़ाते हैं दूर्वा, जानिए क्या है कारण, नियम और मंत्र

Webdunia
मंगलवार, 30 अगस्त 2022 (11:19 IST)
Ganesh Chaturthi 2022 : 31 अगस्त 2022 बुधवार से शुभ योग में गणेश उत्सव प्रारंभ हो रहे हैं। शुक्ल पक्ष वाली चतुर्थी को दूर्वा गणपति चौथ कहा जाता है। गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेशजी की प्रतिमा का मंगल प्रवेश, स्थापना और पूजा होती है। गणेशजी की पूजा में मोदक, जनेऊ के साथ ही दूर्वा विशेष रूप से अर्पित की जाती है। आओ जानते हैं कि गणपतिजी को क्यों चढ़ाते हैं दूर्वा। दूर्वा अर्पित करने के नियम और मंत्र।
 
क्यों चढ़ाते हैं दूर्वा : अन्य पौराणिक कथा के अनुसार अनलासुर नाम के राक्षस ने बहुत उत्पात मचा रखा था। अनलासुर ऋषियों और आम लोगों को जिंदा निगल जाता था। दैत्य से परेशान होकर देवी-देवता और ऋषि-मुनि महादेव से प्रार्थना करने पहुंचे। शिवजी ने कहा कि अनलासुर को सिर्फ गणेशजी ही मार सकते हैं। सभी देवताओं ने गणेशजी की आराधना की। देवताओं की आराधना से प्रसन्न होकर गणेशजी उस राक्षस से युद्ध करते हुए उसे निगल गए थे और तब दैत्य के मुंह से तीव्र अग्नि निकली जिससे गणेश के पेट में बहुत जलन होने लगी। इस जल को शांत करने के लिए कश्यप ऋषि ने उन्हें दूर्वा की 21 गांठें बनाकर खाने के लिए दी। दूर्वा को खाते ही गणेश जी के पेट की जलन शांत हो गई और गणेशजी प्रसन्न हुए। कहा जाता है तभी से भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई। हालांकि इस संबंध में और भी कथाएं प्रचलित हैं।
 
दूर्वा चढ़ाने का नियम : प्रात:काल उठकर गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठकर व्रत और पूजा का संकल्प लें। फिर ऊं गं गणपतयै नम: मंत्र बोलते हुए जितनी पूजा सामग्री उपलब्ध हो उनसे भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर लगाएं। फिर उन्हें 21 गुड़ की ढेली के साथ 21 दूर्वा चढ़ाएं। मतलब 21 बार 21 दूर्वा की गाठें अर्पित करना चाहिए। इसके अलावा गणेशजी को मोदक और मोदीचूर के 21 लड्डू भी अर्पित करें। इसके बाद आरती करें और फिर प्रसाद बांट दें।
दूर्वा अर्पित करने का मंत्र : 'श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि।' इस मंत्र के साथ श्रीगणेशजी को दूर्वा चढ़ाने से जीवन की सभी विघ्न समाप्त हो जाते हैं और श्रीगणेशजी प्रसन्न होकर सुख एवं समृद्धि प्रदान करते हैं।
 
क्या होगा दूर्वा अर्पित करने से : इस दिन गणेशजी को दूर्वा चढ़ाकर विशेष पूजा की जाती है। ऐसा करने से परिवार में समृद्धि बढ़ती है और मनोकामना भी पूरी होती है। इस व्रत का जिक्र स्कंद, शिव और गणेश पुराण में किया गया है।
 
दूर्वा की उत्पत्ति : दूर्वा एक प्रकार की घास है जिसे प्रचलित भाषा में दूब भी कहा जाता है, संस्कृत में इसे दूर्वा, अमृता, अनंता, गौरी, महौषधि, शतपर्वा, भार्गवी आदि नामों से जाना जाता है। दूर्वा कई महत्वपूर्ण औषधीय गुणों से युक्त है। इसका वैज्ञानिक नाम साइनोडान डेक्टीलान है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय जब समुद्र से अमृत-कलश निकला तो देवताओं से इसे पाने के लिए दैत्यों ने खूब छीना-झपटी की जिससे अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर भी गिर गईं थी जिससे ही इस विशेष घास दूर्वा की उत्पत्ति हुई।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

पढ़ाई में सफलता के दरवाजे खोल देगा ये रत्न, पहनने से पहले जानें ये जरूरी नियम

Yearly Horoscope 2025: नए वर्ष 2025 की सबसे शक्तिशाली राशि कौन सी है?

Astrology 2025: वर्ष 2025 में इन 4 राशियों का सितारा रहेगा बुलंदी पर, जानिए अचूक उपाय

बुध वृश्चिक में वक्री: 3 राशियों के बिगड़ जाएंगे आर्थिक हालात, नुकसान से बचकर रहें

ज्योतिष की नजर में क्यों है 2025 सबसे खतरनाक वर्ष?

सभी देखें

धर्म संसार

25 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

25 नवंबर 2024, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Weekly Horoscope: साप्ताहिक राशिफल 25 नवंबर से 1 दिसंबर 2024, जानें इस बार क्या है खास

Saptahik Panchang : नवंबर 2024 के अंतिम सप्ताह के शुभ मुहूर्त, जानें 25-01 दिसंबर 2024 तक

Aaj Ka Rashifal: 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन, पढ़ें 24 नवंबर का राशिफल

अगला लेख
More