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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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क्या मृत्यु का पूर्वाभास हु्आ था बापू को

मैं एक झूठा महात्मा था : गाँधीजी

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राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो चुका था, जिसका संकेत वे अनेक बार दे भी चुके थे! जी हाँ, चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय मेरठ के इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्ष एवं गाँधी अध्ययन संस्थान की पूर्व निदेशक गीता श्रीवास्तव के नए शोध में ऐसे कई दृष्टांत दिए गए हैं।

मेरठ विश्वविद्यालय में ही मानद प्राध्यापक के रूप में कार्यरत डॉ. श्रीवास्तव का कहना है कि 30 जनवरी 1948 को एक हत्यारे की गोली का निशाना बनने से एक दिन पहले ही उन्होंने 'हे राम' का उच्चारण करते हुए दुनिया से विदा होने की इच्छा व्यक्त की थी। इतना ही नहीं, गाँधीजी ने अपनी मृत्यु से चंद मिनट पहले यानी अपनी अंतिम प्रार्थना सभा के दौरान काठियावा़ड़ (गुजरात) से उनसे मिलने दिल्ली आए दो नेताओं को कहलवाया था कि यदि मैं जीवित रहा तो प्रार्थना सभा के बाद आप लोग मुझसे बात कर सकेंगे। इस प्रकार मृत्यु से 24 घंटे पहले उन्होंने दो बार इसके पूर्वाभास की सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्ति कर दी थी।

कई अनछुए पहलू : डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि इस पुस्तक में ऐसे कई तथ्यों को उजागर करने की कोशिश की गई है, जो अन्यत्र प्रकाश में नहीं आ सके थे। उनका कहना है कि गाँधीजी उन भाग्यशाली महापुरुषों में माने जाएँगे, जो अपनी इच्छानुसार मृत्यु को प्राप्त हुए। मृत्यु के समय गाँधीजी की जुबान पर ' हे राम' शब्द थे। उनके निकट सहयोगी जानते थे कि यही उनके जीवन की सबसे ब़ड़ी इच्छा भी थी।

झूठा महात्मा या सच्चा महात्मा : 24 जनवरी 1948 के बाद अपनी पौत्री मनु से उन्होंने कई बार हत्यारे की गोलियाँ या गोलियों की बौछार के बारे में बातें की थीं जो बुराई की आशंका में नहीं वरन अपने सार्थक जीवन के अंत के रूप में थीं, जिसका आभास उन्हें हो चुका था। अपनी मृत्यु से एक दिन पहले 29 जनवरी को उन्होंने मनु से कहा था कि यदि मेरी मृत्यु किसी बीमारी से, चाहे वह एक मुँहासे से ही क्यों न हो, तुम घर की छत से चिल्ला-चिल्लाकर दुनिया से कहना- मैं एक झूठा महात्मा था।

अंत में 30 जनवरी 1948 को वह घड़ी भी आ पहुँची, जब गाँधीजी का पूर्वाभास सच होने वाला था। अपनी पौत्रियों मनु और आभा का सहारा लेकर वे प्रतिदिन होने वाली प्रार्थना सभा में पहुँचे। अभी उन्होंने दोनों हाथ जो़ड़कर लोगों का अभिवादन स्वीकार ही किया था कि एक नवयुवक नाथूराम गोड़से ने मनु को झटका देकर और गाँधीजी के आगे घुटनों के बल अभिवादन के अंदाज में झुककर तीन गोलियाँ दाग दीं।

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