दद्दूजी, अदालतों में लोग सच बोलें इसके लिए उन्हें गीता की कसम खिलाई जाती है। इसके विपरीत स्कूलों में गीता पढ़ाई नहीं जाती। यह विरोधाभास क्यों?
देखिए, यदि गीता का ज्ञान स्कूलों के स्तर पर दे दिया गया तो लोग गीता की झूठी कसमें कैसे खाएंगे? और नहीं खाएंगे तो सबसे ज्यादा पेट संविधान के तथाकथित रक्षकों और नीति-निर्धारकों का दुखेगा।