नए कृषि कानूनों के बारे में गलतबयानी किसानों के हितों को पहुंचा रही नुकसान

Webdunia
सोमवार, 28 दिसंबर 2020 (22:07 IST)
नई दिल्ली। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने सोमवार को कहा कि नए कृषि कानूनों के बारे में गलतबयानी से किसानों के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी काफी नुकसान हो रहा है, साथ ही उन्होंने इन नए कृषि कानूनों के बारे में कुछ अर्थशास्त्रियों द्वारा अपना रुख बदलने को लेकर निराशा भी जताई।
 
3 नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन जारी है। किसानों का एक वर्ग इन कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहा है। इस बारे में राजीव कुमार ने इस बात पर भी जोर दिया कि प्रदर्शनकारी किसानों के साथ निरंतर बातचीत ही निश्चित रूप से आगे का रास्ता हो सकता है।
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राजीव कुमार ने एक साक्षात्कार के दौरान बताया कि इन कानूनों (केंद्र के नए कृषि कानूनों) से बड़ी कंपनियों के हाथों किसानों का शोषण होने लगेगा जैसी कोई भी बहस पूरी तरह से झूठ है, क्योंकि सरकार ने तमाम फसलों के लिए सभी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का आश्वासन दिया है। नीति आयोग सरकारी नीतियों को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
 
सरकारी थिंक टैंक माने जाने वाले नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि वे पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु सहित कुछ भारतीय अर्थशास्त्रियों के बदले रवैए से क्षुब्ध हैं, क्योंकि ये लोग कृषि सुधारों का समर्थन किया करते थे लेकिन यही लोग अब पाला बदलकर दूसरी भाषा बोल रहे हैं।
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राजीव कुमार की यह टिप्पणी बसु द्वारा एक अन्य अर्थशास्त्री निर्विकार सिंह के साथ लिखे गए लेख की पृष्ठभूमि में आई है। इन अर्थशास्त्रियों ने लिखा है कि सरकार को कृषि कानूनों को वापस लेना चाहिए और नए कानूनों का मसौदा तैयार करने में जुटना चाहिए, जो कुशल और निष्पक्ष हों और जिसमें किसानों के नजरिए को भी शामिल किया जाना चाहिए।
 
कुमार ने कहा कि मैं पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (कौशिक बसु) सहित कुछ भारतीय अर्थशास्त्रियों की बेईमानी को लेकर निराशा और क्षोभ व्यक्त करता हूं जिन्होंने मुख्य आर्थिक सलाहकार के पद पर रहते हुए लगातार इन उपायों का समर्थन किया था, लेकिन अब पाला बदल लिया है और कुछ अलग ही बात करने लगे हैं। वर्तमान में कॉर्नेल विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बसु वर्ष 2009 से वर्ष 2012 के बीच मुख्य आर्थिक सलाहकार थे जब कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार सत्ता में थी।
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उनके अनुसार ऐसे अर्थशास्त्री जिन्होंने पहले कृषि सुधारों का समर्थन किया था और अब नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, वे समाधान खोजने में मदद नहीं कर रहे हैं, क्योंकि वे एक झूठी अवधारणा निर्मित करने में मदद कर रहे हैं, जो किसानों को भ्रमित कर रही है। इसलिए ये सभी झूठी कहानियां जो (केंद्र के नए कृषि कानूनों के बारे में) बनाए गए हैं, वे किसानों के हित और अर्थव्यवस्था को बड़ी हानि पहुंचा रही हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और कुछ अन्य राज्यों के हजारों किसान नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं।
 
सितंबर में लागू किए गए इन 3 कृषि कानूनों को केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों के रूप में पेश कर रही है, जो किसानों और बाजार के बीच बिचौलियों को दूर करेगा और किसानों को देश में कहीं भी बेचने की छूट देगा। 
हालांकि प्रदर्शनकारी किसानों ने आशंका व्यक्त की है कि नए कानून किसानों को सुरक्षा प्रदान करने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे और मंडी व्यवस्था को ध्वस्त करते हुए उन्हें बड़े कॉर्पोरेट्स की दया का मोहताज बना देंगे। केंद्र ने बार-बार आश्वासन दिया है कि एमएसपी और मंडी व्यवस्था जारी रहेगी। (भाषा)

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