शरद पवार बोले- मनमोहन सिंह के साथ लाना चाहते थे कृषि क्षेत्र में सुधार, बताया क्यों नहीं बना पाए कानून

Webdunia
मंगलवार, 29 दिसंबर 2020 (21:43 IST)
नई दिल्ली। राकांपा प्रमुख और पूर्व कृषिमंत्री शरद पवार ने मंगलवार को आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने राज्यों से विचार-विमर्श किए बिना ही कृषि संबंधी तीन कानूनों को थोप दिया। उन्होंने कहा कि दिल्ली में बैठकर खेती के मामलों से नहीं निपटा जा सकता, क्योंकि इससे सुदूर गांव में रहने वाले किसान जुड़े होते हैं।
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दिल्ली की सीमा पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के दूसरे महीने में प्रवेश करने और समस्या का समाधान निकालने के लिए पांच दौर की बातचीत बेनतीजा रहने के बीच शरद पवार ने किसान संगठनों के साथ बातचीत के लिए गठित तीन सदस्ईय मंत्री समूह के ढांचे पर सवाल उठाया और कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी को ऐसे नेताओं को आगे करना चाहिए जिन्हें कृषि और किसानों के मुद्दों के बारे में गहराई से समझ हो।
 
शरद पवार ने कहा कि सरकार को विरोध प्रदर्शनों को गंभीरता से लेने की जरूरत है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का किसानों के आंदोलन का दोष विपक्षी दलों पर डालना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर विरोध प्रदर्शन करने वाले 40 यूनियनों के प्रतिनिधियों के साथ अगली बैठक में सरकार किसानों के मुद्दों का समाधान निकालने में विफल रहती है तब विपक्षी दल बुधवार को भविष्य के कदम के बारे में फैसला करेंगे।
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यह पूछे जाने पर कि केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्रसिंह तोमर ने दावा किया है कि मनमोहनसिंह नीत संप्रग सरकार में तत्कालीन कृषिमंत्री के रूप में पवार कृषि सुधार चाहते थे, लेकिन राजनीतिक दबाव में ऐसा नहीं कर सके। राकांपा नेता ने कहा कि वे निश्चित तौर पर इस क्षेत्र में कुछ सुधार चाहते थे लेकिन ऐसे नहीं जिस तरह से भाजपा सरकार ने किया है।
 
पवार ने कहा कि उन्होंने सुधार से पहले सभी राज्य सरकारों से संपर्क किया और उनकी आपत्तियां दूर करने से पहले आगे नहीं बढ़े। राकांपा नेता ने कहा कि मैं और मनमोहनसिंह कृषि क्षेत्र में कुछ सुधार लाना चाहते थे लेकिन वैसे नहीं जिस प्रकार से वर्तमान सरकार लाई। उस समय कृषि मंत्रालय ने प्रस्तावित सुधार के बारे में सभी राज्यों के कृषि मंत्रियों और क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ चर्चा की थी।
 
उन्होंने कहा किALSO READ: प्रदर्शनकारी किसानों को मुफ्त Wi-Fi सुविधा देगी केजरीवाल सरकार कुछ राज्यों के मंत्रियों को सुधार को लेकर काफी अपत्तियां थीं और अंतिम निर्णय लेने से पहले कृषि मंत्रालय ने राज्य सरकारों के विचार जानने के लिए कई बार पत्र लिखे। दो बार कृषि मंत्रालय का दायित्व संभालने वाले पवार ने कहा कि कृषि ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़ा होता है और इसके लिए राज्यों के साथ विचार-विमर्श करने की जरूरत होती है।
 
पवार ने कहा कि कृषि से जुड़े मामलों से दिल्ली में बैठकर नहीं निपटा जा सकता है, क्योंकि इससे गांव के परिश्रमी किसान जुड़े होते हैं और इस बारे में बड़ी जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है और इसलिए अगर बहुसंख्य कृषि मंत्रियों की कुछ आपत्तियां हैं तो आगे बढ़ने से पहले उन्हें विश्वास में लेने और मुद्दों का समाधान निकालने की जरूरत है।
 
पवार ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने इस बार न तो राज्यों से बात की और विधेयक तैयार करने से पहले राज्यों के कृषि मंत्रियों के साथ कोई बैठक बुलाई। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने कृषि संबंधी विधेयकों को संसद में अपनी ताकत की बदौलत पारित कराया और इसलिए समस्या उत्पन्न हो गई।
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पवार ने कहा कि राजनीति और लोकतंत्र में बातचीत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को इन कानूनों को लेकर किसानों की आपत्तियों को दूर करने के लिए बातचीत करनी चाहिए थी। पवार ने कहा कि लोकतंत्र में कोई सरकार यह कैसे कह सकती है कि वह नहीं सुनेगी या अपना रुख नहीं बदलेगी। एक तरह से सरकार ने इन तीन कृषि कानूनों को थोपा है। अगर सरकार ने राज्य सरकारों से विचार-विमर्श किया होता और उन्हें विश्वास में लिया होता तब ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
 
उन्होंने कहा कि किसान परेशान है, क्योंकि उन कानूनों से एमएसपी खरीद प्रणाली समाप्त हो जाएगी और सरकार को इन चिंताओं को दूर करने के लिए कुछ करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बातचीत के लिए शीर्ष से भाजपा के उन नेताओं को रखना चाहिए जिन्हें कृषि क्षेत्र के बारे में बेहतर समझ हो। कृषि क्षेत्र के बरे में गहरी समझ रखने वाले किसानों के साथ बातचीत करेंगे तब इस मुद्दे के समाधान का रास्ता निकाला जा सकता है। उन्होंने हालांकि किसी का नाम नहीं लिया।
 
पवार ने कहा कि अगर किसान सरकार की प्राथमिकता होती तब यह समस्या इतनी लम्बी नहीं खिंचती और अगर वे कहते हैं कि विरोध करने वालों में केवल हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसान हैं, तब सवाल यह है कि क्या इन्होंने देश की सम्पूर्ण खाद्य सुरक्षा में योगदान नहीं दिया है। (भाषा)

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