क्या भारत को कोहिनूर हीरा लौटाने की तैयारी कर रहा ब्रिटेन राजघराना?

Webdunia
शनिवार, 6 मई 2023 (14:10 IST)
Kohinoor diamond : आज शनिवार 6 मई 2023 को चार्ल्स तृतीय और उनकी पत्नी कैमिला औपचारिक रूप से ब्रिटेन के राजा और रानी बनने जा रहे हैं। लेकिन ताजपोशी की परंपरा इस बार कुछ अलग होने जा रही है। दरअसल, रिपोर्ट के मुताबिक रानी ने अपने ताज में कोहिनूर हीरा नहीं पहनने का फैसला किया है। ऐसा पहली बार होगा जब रानी के ताज में कोहिनूर नजर नहीं आएगा।

शनिवार को राज्यारोहण के अवसर पर रानी कैमिला ने कोहिनूर हीरे को ताज में नहीं जड़वाने का फैसला किया है। अब पूरी दुनिया में चर्चा है कि जब अब तक सभी रानियां अपने ताज में कोहिनूर पहनती आई हैं तो इस बार कैमिला ने ताज में कोहिनूर नहीं पहनने का फैसला लेकर सभी को चौंका दिया है। दुनियाभर की मीडिया में इस बात को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं।

क्‍या कोहिनूर लौटाएगा ब्रिटिश राजघराना?
ब्रिटेन में शाही ताजपोशी के दौरान कोहिनूर का इस्‍तेमाल एक परंपरा है। ऐसे में इस बार इसे ताज में नहीं लगवाया जाने के पीछे कई तरह की अटकलें लगाईं जा रही हैं। कुछ ब्रिटिश मीडिया के मुताबिक ये फैसला परंपराओं और आज के मुद्दों के प्रति संवेदनशील के लिए किया गया है। डेली मेल की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बार क्वीन कॉन्सोर्ट के मुकुट में हीरा नहीं होगा, लेकिन कोहिनूर हीरे की जगह क्वीन के मुकुट में कुलिनन हीरे जड़े होंगे। इन्‍हें दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था। ऐसे में  ये हीरे भी ब्रिटिश उपनिवेश के ही प्रतीक माने जा रहे हैं।

अब तक किस किस ने पहना हीरा
क्वीन विक्टोरिया ने सबसे पहली बार कोहिनूर को अपने मुकुट में जड़वा कर इसे पहना था। 1901 में क्वीन विक्टोरिया के निधन के बाद क्वीन कॉन्सोर्ट मैरी ने कोहिनूर जड़ा ताज पहना था। महारानी अलेक्जैंड्रा ने भी  इसे अपने ताज में जड़वाया था। 1953 में एलिजाबेथ द्वितीय ने कोहिनूर को अपने ताज में जड़वाया।

क्‍या है कोहिनूर का इतिहास?
कोहिनूर कहां से आया, इसका कोई साफ जिक्र कहीं नहीं है। दक्षिण भारत में, हीरों से जुड़ी कई कहानियां रहीं हैं, लेकिन कौन सी कहानी सही है, ये कहना मुश्किल है। वहीं बहुत मोटे तौर पर हीरे का इतिहास बहुत पुराना माना गया है। करीब 5000 वर्ष पहले संस्कृत भाषा में सबसे पहले हीरे का उल्लेख किया गया था। इसे ‘स्यामंतक’ मणि के नाम से जाना गया। हालांकि स्यामंतक को कोहिनूर से अलग माना जाता था। सबसे पहले 13वीं शताब्दी में सन 1304 में यह मालवा के राजा की निगरानी में सबसे प्राचीनतम हीरा था।

हिन्दू कथाओं में जिक्र मिलता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं यह मणि, जाम्वंत से ली थी, जिसकी पुत्री जामवंती ने बाद में श्री कृष्ण से विवाह भी किया था। एक दूसरी कथा के मुताबिक यह हीरा नदी की तली में करीब 3200 ई.पू. मिला था।

ऐतिहासिक प्रमाणों में यह भी कहा गया है कि यह गोलकुंडा की खान से निकला था, जो आंध्रप्रदेश में है और दुनिया की सबसे पुरानी खानों में से एक हैं। सन 1730 तक यह दुनिया का एकमात्र हीरा उत्पादक क्षेत्र माना जाता रहा है। इसके बाद ब्राजील में भी हीरों की खोज हुई। लेकिन दक्षिण भारतीय कथा कुछ ज्‍यादा पुख्ता लगती है। सम्भव है कि हीरा आंध्रप्रदेश की कोल्लर खान, जो इस वक्‍त गुंटूर जिले में है, वहां से निकला था।

दुनिया में कोहिनूर का सफर : कहा जाता है कि 1339 में कोहिनूर हीरे को समरकन्द के नगर में लगभग 300 सालों तक रखा गया। इसके बाद कोहिनूर कई मुग़ल शासक के अधीन रहा। 14वीं शताब्दी में दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी के पास कोहिनूर रहा। इसके बाद 1526 में मुगल शासक बाबर ने अपने लेख ‘बाबरनामा’ में हीरे का जिक्र करते हुए कहा था कि उन्हें यह हीरा सुल्तान इब्राहीम लोधी ने भेंट किया। इसे उन्‍होंने ‘बाबर का हीरा’बताया था।

बाबर के वंशज औरंगजेब और हुमायूं ने कोहिनूर हीरे को अपने वंशज महमद (औरंगजेब का पोता) को सौंप दिया। औरंगजेब इसे लाहोर की बादशाही मस्जिद में ले आया।

इसके बाद 1739 में परसिया के राजा नादिर शाह भारत आए। वे सुल्तान महमद के राज्य पर शासन करना चाहते थे। उन्होंने सुल्तान महमद को हराया और उनके राज्य और धरोहरों पर कब्‍जा कर लिया। कहा जाता है कि इसी दौरान नादिर शाह ने ही इस हीरे को ‘कोहिनूर’ नाम दिया था। जिसे कई सालों तक उन्‍होंने परसिया में अपनी कैद में रखा।

1747 में नादिर शाह की हत्या कर दी गई और जनरल अहमद शाह दुर्रानी ने कोहिनूर को अपने कब्जे में ले लिया। अहमद शाह दुर्रानी के वंशज शाह शुजा दुर्रानी कोहिनूर को 1813 में वापस भारत ले आए। लंबे समय तक उन्होंने इसे अपने हाथ के कड़े में जड़वा कर पहना। इसके बाद शुजा दुर्रानी ने यह कोहिनूर सिक्ख समुदाय के संस्थापक राजा रंजीत सिंह को सौंप दिया। जिसके बदले में राजा रंजीत सिंह ने शाह शुजा दुर्रानी को अफ़ग़ानिस्तान से लड़ने एवं राजगद्दी वापस दिलाने में मदद की थी।

बता दें कि महाराज रंजीत सिंह के एक घोड़े का नाम भी कोहिनूर था। राजा रंजीत सिंह ने एक वसीयत में कोहिनूर हीरे को उनकी मृत्यु के बाद जगन्नाथपूरी (उड़ीसा) के मंदिर में देने की बात कही थी, लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने उनकी यह वसीयत नहीं मानी। 29 मार्च 1849 को द्वितीय एंग्लो– सिक्ख युद्ध में ब्रिटिश फोर्स ने राजा रंजीत सिंह को हरा दिया था और उनकी सारी धनसंपदा और राज्‍य पर कब्जा कर लिया। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने लाहोर की संधि लागू करते हुए कोहिनूर को ब्रिटिश (इंग्लैंड) की महारानी विक्टोरिया को सौंपने की बात कही। हर कालखंड में कई देशों का सफर करते हुए कोहिनूर वर्तमान में लंदन के टॉवर में ज्‍वेल हाउस में रखा गया है।

कोहिनूर के बारे में अंधविश्‍वास : दुनिया में कोहिनूर के प्रति जितना ज्‍यादा है, उतना ही उसे लेकर अंधविश्‍वास भी है। कोहिनूर के बारे में कहा जाता है कि कुछ लोगों के लिए यह एक श्राप की तरह है। हिन्दी भाषा का साहित्य भी इस हीरे को लेकर रोचक कहानियों और अंधविश्वास से भरा पडा है। कई किस्‍सों और कहानियों में कहा गया है कि अगर कोई पुरुष इस हीरे को पहनता है तो उसे श्राप लग सकता है और वो कई तरह के दोषों से घिर जाएगा। कोहिनूर के बारे में कहा गया है कि इसे सिर्फ कोई औरत या भगवानस्‍वरूप कोई संत ही पहन सकते हैं।
Written & Edited: By Navin Rangiyal

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