जया एकादशी : शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, उपाय, मंत्र, कथा, नियम और पारण का समय

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शनिवार, 12 फरवरी को जया एकादशी (Jaya Ekadashi 2022) व्रत है। भगवान विष्णु का प्रिय व्रत एकादशी प्रत्येक माह में 2 बार आता है। एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में। एक वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं और जिस वर्ष अधिक मास हो उस वर्ष इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। यह व्रत माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है, जिसे जया एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी के व्रत से सभी पापों का नाश होता है।
 
यहां पढ़ें जया एकादशी कथा, मुहूर्त, महत्व, मंत्र, उपाय, पूजा विधि आदि एक ही स्थान पर- 
 
जया एकादशी पूजा मुहूर्त 2022- Jaya Ekadashi muhurat
 
जया एकादशी व्रत- 12 फरवरी 2022, शनिवार
माघ शुक्ल एकादशी तिथि- शुक्रवार, 11 फरवरी 2022, दोपहर 01.52 मिनट से का प्रारंभ होकर शनिवार, 12 फरवरी 2022 को शाम 04.27 मिनट पर एकादशी तिथि की समाप्त होगी। एकादशी पूजन का समय शनिवार को दोपहर 12.13 से 12:58 मिनट। 
 
जया एकादशी का महत्व- 
माघ मास की जया एकादशी के बारे में मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से मनुष्य ब्रह्म हत्यादि पापों से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है और इसके प्रभाव से भूत, पिशाच तथा बुरी योनियों, पाप आदि से मुक्त हो जाता है। यह एकादशी 1000 वर्ष तक स्वर्ग में वास करने का फल देती है। इस एकादशी व्रत पर विधि-विधान से पूजन करने से जीवन में खुशहाली आती है। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार एक बार इंद्रलोक की अप्सरा को श्राप के कारण पिशाच योनि में जन्म लेना पड़ा, तब उससे मुक्ति के लिए उसने जया एकादशी का व्रत किया तब उसे भगवान विष्णु की कृपा से पिशाच योनि से मुक्ति मिली तथा इंद्रलोक में स्थान प्राप्त हो गया था। 
 
पूजा विधि- 
- एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्‍नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके श्री विष्‍णु का ध्‍यान करें। 
- तत्पश्चात व्रत का संकल्‍प लें। 
- फिर घर के मंदिर में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्‍णु की प्रतिमा स्‍थापित करें। 
- एक लोटे में गंगा जल लेकर उसमें तिल, रोली और अक्षत मिलाएं।
- अब इस लोटे से जल की कुछ बूंदें लेकर चारों ओर छिड़कें।
- फिर इसी लोटे से घट स्‍थापना करें। 
- अब भगवान विष्‍णु को धूप, दीप दिखाकर उन्‍हें पुष्‍प अर्पित करें।
- अब एकादशी की कथा का पाठ पढ़ें अथवा श्रवण करें। 
- शुद्ध घी का दीया जलाएं तथा विष्‍णु जी की आरती करें।
- तत्पश्चात श्रीहरि विष्‍णु जी को तुलसी दल और तिल का भोग लगाएं। 
- विष्‍णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- शाम के समय भगवान विष्‍णु जी की पूजा करके फलाहार करें।
- अगले दिन द्वादशी तिथि को योग्य ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें। 
- इसके बाद स्‍वयं भी भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें। 
 
उपाय- Ekadashi ke Upay
 
- धार्मिक शास्त्रों के अनुसार एकादशी के दिन व्रत और उपवास रखने का बहुत महत्व है। इस दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।
 
- एकादशी के दिन तुलसी युक्त खीर भगवान विष्णु को अर्पित करें।
 
- दरिद्रता दूर करने के लिए एकादशी के दिन तिल का उपयोग तथा दान करने से पापों का नाश होकर स्वर्ग में स्थान मिलता है। 
 
- एकादशी के दिन गेंदा, आंवला या तुलसी का पौधा अवश्य ही लगाएं, यह बहुत ही शुभ माना जाता है।
 
- एकादशी के दिन असहाय लोगों की मदद करें तथा कुछ न कुछ दान अवश्य दें।
 
- एकादशी के दिन अपने घर में पीली ध्वजा अवश्य ही फहराएं।
 
- यह व्रत आरोग्‍य, सुखी दांपत्‍य जीवन तथा शांति देने वाला माना गया है, अत: इस दिन सच्चे मन से उपवास रखकर श्री विष्णु का ध्यान करना चाहिए। 
 
एकादशी के मंत्र-Ekadashi Mantra
 
1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:।
2. ॐ हूं विष्णवे नम:।
3. ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि। 
4. ॐ नारायणाय नम:।
5. ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीवासुदेवाय नमः 
6. ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
7. ॐ विष्णवे नम:।
 
कथा-Ekadashi Story 
 
जया एकादशी कथा के अनुसार देवराज इंद्र स्वर्ग में राज करते थे और अन्य सब देवगण सुखपूर्वक स्वर्ग में रहते थे। एक समय इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे और गंधर्व गान कर रहे थे। उन गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन तथा उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे। साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे। पुष्पवती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई और माल्यवान पर काम-बाण चलाने लगी। उसने अपने रूप लावण्य और हावभाव से माल्यवान को वश में कर लिया। 
 
पुष्पवती अत्यंत सुंदर थी। अब वे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गान करने लगे परंतु परस्पर मोहित हो जाने के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया था। इनके ठीक प्रकार न गाने तथा स्वर ताल ठीक नहीं होने से इंद्र इनके प्रेम को समझ गया और उन्होंने इसमें अपना अपमान समझ कर उनको शाप दे दिया। इंद्र ने कहा- हे मूर्खों! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, इसलिए तुम्हारा धिक्कार है। अब तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करो और अपने कर्म का फल भोगो। 
 
इंद्र का ऐसा शाप सुनकर वे अत्यंत दु:खी हुए और हिमालय पर्वत पर दु:खपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें गंध, रस तथा स्पर्श आदि का कुछ भी ज्ञान नहीं था। वहां उनको महान दु:ख मिल रहे थे। उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं आती थी। उस जगह अत्यंत शीत था, इससे उनके रोंगटे खड़े रहते और मारे शीत के दांत बजते रहते। एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा कि पिछले जन्म में हमने ऐसे कौन-से पाप किए थे, जिससे हमको यह दु:खदायी पिशाच योनि प्राप्त हुई। 
 
इस पिशाच योनि से तो नर्क के दु:ख सहना ही उत्तम है। अत: हमें अब किसी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए। इस प्रकार विचार करते हुए वे अपने दिन व्यतीत कर रहे थे। दैव्ययोग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी आई। उस दिन उन्होंने कुछ भी भोजन नहीं किया और न कोई पाप कर्म ही किया। केवल फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और सायंकाल के समय महान दु:ख से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस समय सूर्य भगवान अस्त हो रहे थे। 
 
उस रात को अत्यंत ठंड थी, इस कारण वे दोनों शीत के मारे अति दुखित होकर मृतक के समान आपस में चिपटे हुए पड़े रहे। उस रात्रि को उनको निद्रा भी नहीं आई। जया एकादशी के उपवास और रात्रि के जागरण से दूसरे दिन प्रभात होते ही उनकी पिशाच योनि छूट गई। अत्यंत सुंदर गंधर्व और अप्सरा की देह धारण कर सुंदर वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्गलोक को प्रस्थान किया। उस समय आकाश में देवता उनकी स्तुति करते हुए पुष्पवर्षा करने लगे। स्वर्गलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया। इंद्र इनको पहले रूप में देखकर अत्यंत आश्चर्यचकित हुए और पूछने लगे कि तुमने अपनी पिशाच योनि से किस तरह छुटकारा पाया, सो सब बतालाओ। माल्यवान बोले कि हे देवेन्द्र ! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही हमारी पिशाच देह छूटी है। 
 
तब इंद्र बोले कि हे माल्यवान! भगवान की कृपा और एकादशी का व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई, वरन् हम लोगों के भी वंदनीय हो गए क्योंकि विष्णु और शिव के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं, अत: आप धन्य है। अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो। अत: इस जया एकादशी के व्रत से बुरी योनि छूट जाती है। जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है उसने मानो सब यज्ञ, जप, दान आदि कर लिए। जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते हैं वे अवश्य ही हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करते हैं।
 
जया एकादशी के नियम-  Ekadashi ke niyam
 
- एकादशी व्रत का संकल्प दशमी तिथि को सायंकाल के पश्चात लेना चाहिए।
 
- एकादशी व्रत से एक दिन पूर्व ही तुलसी के पत्ता तोड़कर रख लेना उचित माना गया है, क्योंकि एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोड़ने से दोष लगता है।
 
- एकादशी के प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत एवं श्री विष्णु पूजा का संकल्प लेकर विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए।
 
- भगवान विष्णु की पूजा में पंचामृत एवं तुलसी के पत्तों का उपयोग अवश्य करना चाहिए।
 
- हिन्‍दू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष माघ महीने के शुक्‍ल पक्ष में जया एकादशी आती है, अत: इस दिन उपवास रखकर धूप, दीप, नैवेद्य आदि से श्रीहरि का पूजन करने का नियम है। 
 
- इस दिन तिल का दान करना अच्‍छा माना जाता है। अत: अपने सामर्थ्यनुसार तिल का दान अवश्‍य करें। 
 
पारण समय-parana time
 
- 13 फरवरी, रविवार को प्रात: 07.01 मिनट से सुबह 09.15 मिनट तक पारण करना उचित रहेगा। वैसे तो रविवार को द्वादशी तिथि शाम को 6.42 मिनट तक रहेगी, लेकिन एकादशी का पारणा सुबह के समय करना ही शास्त्रसम्मत है। 

Ekadashi Vishnu Worship

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